श्री गिरिराजधार्याष्टकम्
भक्ताभिलाषा -चरितानुसारी, दुग्धादि-चौर्यण यशोविसारी ।
कुमारिता नन्दित -घोषनारि, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी ॥ १॥
ब्रजांगना-वृन्द सदा-बिहारी, अंगैर्गुहागार तमोपहारी ।
क्रीडा रसावेश -तमो(ड)भिसारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी ॥ २॥
वेणु-स्वनानन्दित-पन्नगारी, रसातलानृत्य पद प्रचारी ।
क्रीडन्वयस्या कृति-दैत्यमारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी ॥३॥
पुलिन्द-दारा-हित-शम्बरारी, रमा-सदोदार- दयाप्रकारी ।
गोवर्धने कन्द- फलोपहारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी ॥ ४॥
कलिंदजा -कूल- दुकूलहारी, कुमारिका- काम- कलावितारी ।
वृन्दावने गोधनवृन्दचारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी ॥ ५॥
व्रजेन्द्र सर्वाधिक शर्मकारी, महेन्द्र गर्वाधिक गर्वहारी ।
वृन्दावने कन्दफलोपहारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी ॥ ६॥
मनः कला-नाथ तमोविहारी, वंशी-रवाकारित -तत्कुमारी ।
रासोत्सवोद्वेल्ल -रसाब्धिसारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी || ७||
मत्त-द्विपोद्द्दाम- गतानुकारी, लुण्ठ्त्प्रसुना प्रपदीनहारी ।
रामो-रस-स्पर्श कर-प्रसारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी ॥ ८॥
|| इति श्रीमद्वल्लभाचार्य श्री गिरिराजधार्याष्टकम सम्पूर्णम् ॥