राधाष्टमी

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तिथि : भाद्रपद शुक्लपक्ष अष्टमी

हमारे प्रभु श्री कृष्ण की स्वामीनिजी श्री राधारानी के प्राकट्य उत्सव की खूब खूब मंगल बधाई |

राधारानीजी भी प्रभु के भाति अजन्मा है |

-एक मत यह है की जब वृषभानु जी यज्ञ के लिए भूमि स्वच्छ कर रहे थे तब आपको वहा राधजी बाल कन्या के रूप मे मिली थी |

-एक मत के अनुसार वृषभानुजी की पत्नी कीर्ति जी गर्भ से थी | वास्तविकता मे गर्भ मे वायु था | जब कीर्तिजी ने गर्भ से वायु को जन्म दिया तब दिव्य ज्योति मे राधारानी प्रकट हुई थी | इस तरह राधारानी वृषभानुजी एवं कीर्तिजी की पुत्री हुई |

-एक मत यह है की जब वृषभानुजी भ्रमण के लिए पधारे थे तब आपको एक सरोवर मे खिले हुए कमल के पुष्प मे एक बाल कन्या के दर्शन हुए | तब उन्हे अपने साथ लाए थे | इस तरह राधारानी वृषभानुजी के पुत्री के रूप मे जानी गई |

राधाष्टमी व्रत कथा , राधारानी जन्म कथा

श्री राधारानी के प्रकट्य के समय अलौकिल बालिका के दर्शन करने हेतु नारद मुनि, गर्गाचार्यजी, शांडिल्य मुनि आदि पधारे थे |

श्री राधारानी प्रभु की अलौकिल आनंदमयी शक्ति का प्राकट्य है | श्री राधारानी ने प्रभु के साथ समग्र व्रज कमल मे दान लीला, मानलीला, चीरहरण लीला, रास लीला, जैसी कई अनेकों लीलाए की है | एक निश्चल निस्वार्थ अलौकिक प्रेम का जीवंत उदाहरण स्थापित किया है |

आज का उत्सव भी जन्माष्टमी की भाति ही महत्व पूर्ण एवं उसी आनंद, अत्यंत हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है |

राधाष्टमी व्रत कथा , राधारानी जन्म कथा

श्रीनवनागरी प्यारी तू वृंदावनकी रानी

श्रीनाथजी दर्शन – राधाष्टमी

राधाष्टमी व्रत कथा , राधारानी जन्म कथा , श्रीनाथजी दर्शन

विशेष :- भोग आरती में ढाढ़ी,ढाढन नाचे।

सभी द्वार में हल्दी से डेली मंढे,बंदरवाल बंधे।सभी समय जमना जल की झरीजी आवे।चारो समय थाली की आरती उतरे।गेंद चौगान,दिवला सोना के।अभ्यंग ।चौखटा हीरा को जड़ाऊ ।तकिया साज सब जड़ाऊ।

वस्त्र:- चागदार बाग,चोली,पटका किनारी के फूल वालो, कूल्हे सब केसरी जामदानी के।सुथन लाल रेशमी सुनहरी छापा की।ठाड़े वस्त्र मेघ स्याम दरियाई के।पिछवाई लाल दरियाई के ,बड़े लप्पा की,जन्माष्टमी वाली।

आभरण:- सब उत्सव के।दो जोड़ी को श्रृंगार हीरा, माणक को।चोटीजी हीरा की।श्रीमस्तक पे पाँच चन्द्रिका को जोड़ धरावे।वेणु वेत्र तीनो हीरा के।मोती को कमल आवे।पट गोटी जड़ाऊ।आरसी जड़ाऊ व राजभोग में सोना के डाँड़ी की।

गोपी वल्लभ के भोग सराय के,स्वामिनीजी के श्रृंगार होवे।माला को जोड़ नयो धरावे।श्रीजी के उबटना से कमल पत्र मढ़े,गुलाल अबीर चन्दन,चोवा से सूक्ष्म खेल होवे। फिर जड़ाऊ आरसी दिखा के तिलक,आरती होवे। शंख, झालर, घंटानाद के द्वारा स्वामिनीजी के आगमन का स्वागत किया जाता हैं |

विशेष भोग में बूंदी,सकरपारा,पंजीरी के नग, श्रीखंड बड़ी,खीर,दूध घर को साज,कच्चर,चालनी,शीतल,आदी अरोगे।गोपी वल्लभ में मनोहर के नग, फीका में चालनी अरोगे।सकड़ी में केसरी पेठा,मीठी सेव,पाँच भात ,सुरन को कच्चर आदी अरोगे।

शयन समय डोल-तिबारी में ध्रुव-बारी के पास में प्रिया-प्रीतम के भाव से बिछायत होती है | कांच का बंगला धरा जाता है |  एवं विविध सज्जा की जाती है | जो कि अनोसर में भी रहती है | और अगले दिन शंखनाद पश्चात हटा ली जाती है |

मंगला – बधाई है बरसाने आज 

राजभोग आय (भीतर तिलक) -रावल राधा प्रकट भई 

आरती – श्री व्रखभान राय ज़ू के आँगन 

शयन – भादो की उजियारी

Seva kram  courtesy: Shrinathji Temple Nathdwara Management | Shrinathji Nitya Darshan

श्री राधाजी की बधाई एवं बाललीला, ढाढ़ीलीला  के पद आप नीचे दी गई ई-बुक मे से प्राप्त कर शकते है |

Badhai – Palna k Pad kirtan

यह बुक पध्य साहित्य शेकशन मे भी उपलब्ध है |

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