श्री महाप्रभुजी उत्सव

पुष्टिमार्ग संस्थापक श्री कृष्ण के वदनावतार जगतगुरु श्री वल्लभाचार्यजी महाप्रभुजी प्राकट्य उत्सव माहात्म्य, सेवा क्रम , बधाई के पद |

  • वैशाख कृष्ण पक्ष ग्यारस •

सर्वत्र डेली मंढे, बंदरवाल बंधे। सभी समय जमना जल की झरीजी आवे। ‘चारो समय थाली की आरती उतरे। सब साज जड़ाऊ आवे, तकिया जड़ाऊ आवे। गेंद चौगान, दिवला सोना के। टेरा (पर्दा), केसरी, जन्माष्टमी के। कंदराजी पे मोती को चौखटा आवे। अभ्यंग। महाप्रभुजी के भी अभ्यंग।

वस्त्रः-खुले बन्ध (तनी बाँध के धरावे) सुथन, पटका किनारी के फुल वालो, कूल्हे सब केसरी मलमल के। ठाड़े वस्त्र स्वेत मलमल के। पिछवाई केसरी किनारी के फूल वाली, उत्सव की।

आभरणः-सब उत्सव के। बनमाला को श्रृंगार। माणक की प्रधानता। कली, कस्तूरी आदी सब आवे। बघनखा धरें। श्रीमस्तक पे पाँच चन्द्रिका को जोड़। वेणु वेत्र हीरा के। पट उत्सव को, गोटी जड़ाऊ। आरसी जड़ाऊ।

श्री के तिलक होवे, बीड़ा पधरावे, मुठिया वार के चुन की आरती आवे। फिर महाप्रभुजी के मुठिया वार के आरती होवे। आज मंगला से जलेबी को वारा अरोगे। राजभोग के संग महाप्रभुजी के विशेष भोग आवे। दूध घर को साज, बासोदि की हांडी, सिखरण बड़ी, जलेबी के टोकरा, शीतल, खोआ, मलाई, चालनी, संधाना, सखड़ी में केसरी पेठा, मीठी सेव, पाँच भात आदी अरोगे।

मंगला – आज बड़ो दरबार देख्यो

अभ्यंग – ६ पद नियम के 

राजभोग –  सो दिन नीको आज बधाई

आरती- यह धन धर्म ही ते पायो

शयन – प्रगट व्हे मारग रीत दिखाई

पोढवे – सुभग सेज पोढे श्री वल्लभ

Mahaprabhuji utsav Shrinathji Darshan

Seva kram  courtesy: Shrinathji Temple Nathdwara Management | 

एक समय श्री ठाकोरजि निज धाम- गोलोक धाम में स्वामिनी जी का स्मरण कर रहे थे | आप के रोम रोम में श्री स्वामिनीजी थे | जब श्री स्वामिनीजी वहा पधारे और देखा तो आप को एसा लगा कि ठाकोरजि हमारे होते हुए किसी और सखी का स्मरण कर रहे हैं |

और आप मान कर बैठी | जब श्री ठाकोरजि को ज्ञात हुआ कि वे श्री स्वामिनीजी का ही स्मरण कर रहे थे फिर भी श्री स्वामिनीजी उनसे मान कर बैठी है | तो श्री ठाकोरजि ने भी मान धारण कर लिया | दोनों में से कोई भी मान छोड ने के लिए तैयार ही नहीं  |

साथ साथ दौ स्वरूप को एक दूसरे के प्रति अथः प्रेम है |  तो दौ के भीतर विरह जागृत हुआ और वह विरह अग्नि धीरे धीरे बढ़ने लगी | अत्याधिक विरह अग्नि के कारण श्री स्वामिनीजु के हृदय से पुं भाव अग्नि स्वरूप और श्री ठाकोरजि के ह्रदय से स्त्री भाव अग्नि स्वरूप एवं श्री ठाकोरजि का मुखार्विंद स्वरूप प्रकट हुए |

इस तरह तीन स्वरूप का मिलन हो के एक अग्निपुंज प्रकट हुआ और वह पुंजमे एक अति अलौकिक त्रिरुपं स्वरूप का प्राकट्य हुआ |

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वह स्वरूप ने श्री स्वामीनिजी से कहा कि श्री ठाकोरजि आप का ही स्मरण कर रहे थे तब श्री स्वामीनिजी को एहसास हुआ और वे श्री ठाकोरजि से क्षमा याचना करके श्री ठाकोरजि का मान दूर किया |”

महाप्रभुजी प्राकट्य प्रसंग नित्य लीला गोलोक धाम
महाप्रभुजी प्राकट्य प्रसंग नित्य लीला गोलोक धाम

तब जुगलजोड़ी सरकार ने वह अग्नि पुंज में से प्रकट हुए स्वरूप को कहा कि आप तो हम दोनों के प्रिय हो, वहाले हो,

“आप हमारे वल्लभ हो…..”

तो कुछ इस तरह श्री वल्लभ महाप्रभुजी का नित्य लीला मे प्राकट्य हुआ |”

महाप्रभुजी प्राकट्य प्रसंग नित्य लीला गोलोक धाम

वह समय श्री वल्लभ  ने दोनों स्वरूप को नमन करके अष्टाक्षर मंत्र

  ” श्री (स्वामीनिजी) कृष्ण: (प्रभु) शरणं मम ”

की रचना की |

जब युगल सरकार व्याकुल भाव से गोलोक धाम मे बिराजमान थे | तब श्रि महाप्रभुजी व्याकुलता का कारण पूछते है तब श्रीजी आज्ञा करते है के “हमारे जीव हमसे विमुख हो कर भूतल पर भटक रहे है हमे उनकी चिंता है | है वल्लभ आप भूतल पर जाकर हमारा कृपा मार्ग स्थापित करके जीव को हमारे सन्मुख कीजिए “|

भगवद आज्ञा से श्री वल्लभ भूतल पर पधारते है | दक्षिण मे एक तैलंग कुल मे यज्ञ नारायण भट्ट को यज्ञ कार्य मे रुचि थी | हर साल अपनी पत्नी के साथ सोमयज्ञ करते | जब उन्होंने 35 सोमयज्ञ किए तब प्रभु ने श्री मदन मोहन अवतार मे प्रकट हो कर आज्ञा की आपके कुल मे सो सोमयज्ञ पूर्ण होने पर पुत्र के रूप मे स्वयं अवतार लूँगा |

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यज्ञ नारायणभट्टजी के वंशमे श्रीलक्ष्मण भट्टजीने सो वा सोमयज्ञ किया |श्री लक्ष्मण भट्टजी अपनी पत्नी और गाववासी के साथ तीर्थ यात्रा के लिए गए | तब चंपा के वनों के विस्तार “चंपारण” मे श्री लक्ष्मणभट्टजी की पत्नी ने पुत्र को जन्म दिया |

परंतु पुत्र मृत था | यह देख दोनों बहुत दुखी हुए और अपने मृत पुत्र के देह को वही रख के आगे बढ़े | तब रात्री को लक्ष्मण भट्टजी के सपने मे प्रभु ने दर्शन दिए और कहा जहा आप अपने पुत्र को छोड़ आए है वहा वापिस जाइए |

जब लक्ष्मणभट्टजी अपनी पत्नी और यात्रा वासियों के साथ पुनः उस स्थान पर लौटे और देखा तो आश्चर्य चकित रह गए | देखते है वृक्ष की नीचे अग्नि की ज्वाला प्रकट है और उस अग्नि कुंड के मध्य मे एक नन्हा सा बालक खेल रहा है |

यह द्रश्य सभी देवतागणभी देखने आए थे | यही अग्निकुंड मे खेल रहे बालक साक्षात अग्नि स्वरूप श्री महाप्रभुजी भूतल पर पधारे थे |

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श्रीनाथजी ने श्रावण सूद पाँचम के दिन व्रजवासी को ऊर्ध्व भुजा का दर्शन कराया | फिर 69 साल तक पूजन का क्रम रहा | फिर जब श्री महाप्रभुजी भूतल पर पधारे तब इसी दिन श्रीजी ने अपने मुखारविंद के दर्शन बृजवासी को कराए |

મહાપ્રભુજી ઉત્સવ , શ્રીનાથજી મુખારવિંદ દર્શન

श्री महाप्रभुजी के जीवन चरित्र के सूक्ष्म दर्शन करने हेतु नीचे दीए गए ई-बुक को पढे |

PushtiMarg Aacharyas

श्री महाप्रभुजी के उत्सव की बधाई के पद के लिए नीचे दी गई ई-बुक को पढे |

Badhai – Palna k Pad kirtan