शरद पूर्णिमा – महारास
शरद पूर्णिमा – रासोत्सव पुष्टिमार्ग के मुख्य उत्सवों मे से माना गया है | यह जीव का परंब्रम्ह से मिलन का उत्सव है | शरद पूर्णिमा महा रास श्री कृष्ण लीला प्रसंग, शरद पूनम श्रीनाथजी सेवा क्रम , शरद पूर्णिमा के पद, महारास के कीर्तन, रासोत्सव, शरदोत्सव जानकारी |
तिथि : अश्विन शुक्लपक्ष पूर्णिमा |
शरद पूर्णिमा मे महारास हुआ था | पर कैसे हुआ था ?, कहा हुआ था ?, क्या समग्र लीला है ? लघुरास क्या है ? महारास क्या है ? |
आइए इन सभी प्रश्नों के उत्तर को समजने की कोशिश करते है | इन उत्तरों मे पुष्टिमार्ग कुछ मुख्य निधि स्वरूपों की लीला ए जुड़ी हुई है |
श्री कृष्ण महारास लीला
गोपिजन के परमफल स्वरूप प्रभु श्री कृष्ण ने उनके महारास का मनोरथ पूर्ण किया है | स्वयं आपका सानिध्य की कृपा उन पर बरसाई है | इस समग्र महारास लीला का आरंभ कुछ एसे होता है की सर्व प्रथम प्रभु श्री कृष्ण कोटी कंदर्प लावण्य युक्त स्वरूप श्री मदन मोहन जी बनकर अश्विन शुक्ल अष्टमी को घने वन मे सर्व प्रथम बार वेणुनाद करते है | तब सभी गोपिया अपनी सुध बुध खो बैठती है और अपना सब लौकिक छोड़ अलौकिक परम फल स्वरूप प्रभु श्री कृष्ण की ओर घने वन मे आती है | वहा गोपियों के प्रश्न , उपदेश और प्रणयगीत होते है |
फिर अश्विन शुक्लपक्ष एकादशी को प्रभु श्री कृष्ण श्री कल्याणराइजी स्वरूप से गोपिजन के साथ लघुरास लीला करते है | द्वे द्वे गोपी बीच बीच माधो
तद पश्चात अश्विन शुक्लपक्ष चतुर्दशी को प्रभु श्री विठ्ठलनाथजी गोपियों के प्रश्न का उत्तर देते है |
फिर अश्विन शुक्ल पूर्णिमा – शरद पूर्णिमा के दिन प्रभु श्री कृष्ण समग्र गोकुल के चंद्रमा श्री गोकुल चंद्रमाजी (चाँद बाबा) स्वरूप से गोपिजनों के साथ महारास लीला रचते है |
इस तरह बहुत ही रसप्रद, मधुर, मनोहक प्रभु की लीला महारास लीला का यह उत्सव शरदोत्सव के रूप बड़े आनंद उल्लास से समग्र पुष्टि श्रुष्टी मे मनाया जाता है |
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