श्री नृसिंह जयन्ती व्रतम् ।
नृसिंह जयंती सेवा क्रम
डेली मंढे, बंदरवाल बंधे। सभी समय जमनाजल की झरीजी। थाली की आरती। अभ्यंग। गेंद चौगान, दिवाला चाँदी के। आज से राजभोग में जमनाजी को थाल नित्य आवे । गुलाब जल को छिड़काव ।
वस्त्रः-पिछोड़ा, कूल्हे सब केसरी मलमल के पिछवाई केसरी ।
आभरणः-सब मोती के व उत्सव के मिलमा। बनमाला को श्रृंगार। श्रीकर्ण में कुंडल आवे आज पायल, चोटीजी व हास नहीं आवे। वेणु वेत्र मोती के। आरसी हरे मखमल की, राजभोग में सोना के डाँड़ी की।
पट उष्ण काल को, गोटी सोना के कूदती भई बाघ बकरी की। आज शृंगार मे श्री मस्तक पर केसर से रंगी हुई मलमल की कुलहे | विशेष रूप से आज बघनखा धराया जाता है | कडा सिहमुखी एवं एक और वेत्रजी सिहमुखी धराए जाते है |
आज आरती तक सब नित्य क्रम से सेवा होवे। फिर जन्म के दर्शन खुले। पंचामृत होवे। तिलक करके तुलसीजी समर्पे। दर्शन बंद होवे। श्रृंगार बड़े होवे। उत्सवभोग आवे। भोग में दुधघर की बासोदी, केसरी पेठा, मीठी सेव, शीतल। शिखरंभात, दहीभात, सतुआ इत्यादि। गोपी वल्लभ में मनोर, फीका हु में चालनी, वारा में सतुआ के बड़े नग अरोगे।
आज से उष्णकाल सेवा क्रम मे प्रभु सुखार्थ फेरफार
आज से राजभोग से संध्या-आरती तक प्रभु के सम्मुख जल का थाल रखा जाता है | जिसमें छतरी, बतख, कछुआ, नाव आदि चांदी के इक्कीस खिलौने और कमल आदि पुष्प तैराये जाते हैं | प्रभु ऊष्णकाल में नित्य श्री यमुनाजी में जलविहार करने पधारते हैं | इस भाव से यह थाल प्रभु के सम्मुख रखा जाता है |
पद :
मंगला – गोविन्द तिहारो स्वरूप निगम
राजभोग – ऐरी जाको वेद रटत ब्रह्म रटत
आरती – पद्म धर्यो जन ताप निवारण
जन्म – यह व्रत माधो प्रथम लियो
शयन – वंदो चरण सरोज तिहारे
जैसेकी हम सब जानते है , भगवान नृसिंह का प्राकट्य संध्या काल मे हुआ था | इस कारण से संध्या आरती के दर्शन पश्चात शयन से पूर्व भगवान नृसिंह के जन्म के दर्शन होते है | इस समय मे प्रभु के सन्मुख संख , झांझ , जालर , घंटा की मधुर ध्वनि के साथ शालिग्राम जी को पधराकर पंचामृत स्नान होता है , फिर तिलक और तुलसी समर्पित करके पुष्प माला धराई जाती है |
नृसिह जयंती ; भगवान नृसिंह जन्म दर्शन नाथद्वारा – शालिग्रामजी पूजन
प्रभु को जन्म के उपरांत जयंती फलाहार के रूप में दूधघर में सिद्ध खोवा (मिश्री-मावे का चूरा) एवं मलाई (रबड़ी) का भोग अरोगाया जाता है |
जब श्रीजी ब्रिज मे बिराजमान थे तब आपको मथुरा मे गुसाईजी के घर सतघरा देखने का मनोरथ हुआ था | इसलिए गिरधरजी ने श्रीजी को सतघरा मे 2 माह 21 दिन तक सेवा की | फिर भक्त वत्सल श्रीनाथजी ने चतुर्भुजदास की विरही दशा देख कर नृसिंह चतुर्दशी के दिन पुनः गिरीराजजी के ऊपर मंदिर मे पधारे थे | और उस दिवस राजभोग एवं शयन भोग एक साथ धराया गया था | वह अवसर की स्मृति मे आज भी इस दिवस आधा राजभोग जितनी सखड़ी सामग्री प्रभु को आरोगाई जाती है |
श्री नृसिंह भगवान उग्र अवतार हैं और उनके क्रोध का शमन करने के भाव से शयन की सखड़ी में आज विशेष रूप से शीतल सामग्रियां – खरबूजा का पना, आम का बिलसारू, घोला हुआ सतुवा, शीतल, दही-भात, श्रीखण्ड-भात आदि अरोगाये जाते हैं |