Loading...

मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष 9

Loading Events

श्री मत्प्रभुचरण श्री विट्ठलनाथजी को उत्सव (1572) । जलेबी उत्सव |

श्री गुसाइजी के महान जीवन चरित्र के दर्शन के लिए नीचे दी गई ई-बुक अवश्य पढे |

PushtiMarg Aacharyas

जलेबी उत्सव क्या है ? : 
एक समय की बात है पोष कृष्ण अष्टमी जिसे बड़ी आठम भी कहा जाता है | श्री गुसाईंजी प्रभु चरण गोकुल मे बिराज रहे थे | श्री गिरिराज जी पर श्री रामदास जी श्रीजी की श्रींगार सेवा कर रहे थे और श्री कुंभनदासजी कीर्तन गा रहे थे। तब हमारे लाडले श्रीजी बावा ने दोनों को संबोधित करते हुए आज्ञा की “रामदास जी, कुंभनदासजी आप जानते हो कि काकाजी (श्रीजी श्री गुसाईंजी को काका जी नाम से पुकारते) मेरो प्राकट्य उत्सव कितनी धूम धाम से मनाते हैं और कल काकाजी को जन्मदिन है वा को उत्सव हर्ष एवं उल्लास मनाना चाहते हैं सो कोई सुन्दर सी सामग्री सिद्ध करी के हमकु धराव” तब रामदास जी और कुंभनदासजी ने पूछा ” कौनसी सामग्री आरोगो गे? ” तब श्रीजी ने आज्ञा की ” हमकु काकाजी के स्वरूप अनुसार रस रूप जलेबी धरो” तब दोनों ने कहा” जो आज्ञा ” फिर सभी वैष्णवन को एकत्रित करी के श्रीजी के मनोरथ (इच्छा) से अवगत कराया |तब वहा पर उपस्थित श्री सदुपांडे ने कहा कि सामग्री सिद्ध करने के लिए जो सामग्री मेंदा इत्यादि हम पथरावेंगे ।

कुंभनदासजी ने अपने दो पाडे एवं दो पाड़ी बैच कर 5 रूपए रामदास जी को सामग्री के लिए दिए | रामदास जी ने उस पैसों से खांड (चीनी) पधाराई | फिर सभी वैष्णवन ने मिलकर रात को गिरिराज जी पर पूरी रात मिलके टोकरियां भर भर के जलेबी की सामग्री सिद्ध की | फिर सवेरे श्रीजी की सेवा में जलेबी की सामग्री धराई | तब वहा पे श्री गुसाईंजी गोवर्धन पधारे और राजभोग मे श्रीजी की सेवा में इतनी सारी जलेबी देख कर रामदास जी को पूछा कि “आज इतनी सारी जलेबी धरने का कोई विशेष कारण?” तब राम दास जी ने श्री गुसाईंजी को प्राकट्य उत्सव की बधाई दी और श्रीजी के मनोरथ के बारे में जानकारी दी | तब सब वैष्णवन ने आपश्री को खूब खूब मंगल बधाई दी । श्री गुसाईंजी और श्रीजी बावा खूब प्रसन्न भये । तब से श्री गुसाईंजी के प्राकट्य उत्सव को हर साल “जलेबी उत्सव” के रूप में मनाया जाता है ।

सेवा क्रम :

सभी द्वार में डेली मढ़े,बंदरवाल बंधे।पुरे दिन जमना जल की झारीजी आवे। थाली की आरती आवे। अभ्यंग होवे।महाप्रभुजी के अभ्यंग,श्रृंगार होवे।निजमंदिर को सब साज जडाऊ आवे।तकिया जडाऊ।गाडी,खंड आदि पे मखमल को साज आवे।गेंद,चौगान,दिवला सोना के।राजभोग में बीड़ा सिकोरी में आवे।

वस्त्र:- चागदार बागा,चोली,सुथन सब केसरी साटन,अड़तू के,बिना किनारी के।पटका केसरी किनारी के फूल को।कूल्हे केसरी।मोजाजी टकमा हीरा के।ठाड़े वस्त्र मेघस्याम। पिछवाई जन्माष्टमी वाली।

आभरण:- सब उत्सव के।तीन जोड़ी को श्रृंगार,बनमाला को त्रवल,टोडर दोनों आवे।दो हालरा,बघनखा धरावे।कली, कस्तूरी आदी सब आवे।चोटीजी हीरा की।कंदरा जी पे प्राचीन जडाऊ चौखटा आवे।वेणु वेत्र हीरा के।पट उत्सव को,गोटी जडाऊ।श्रीमस्तक पे पाच मोर चन्द्रिका को जोड़ आवे।आरसी जडाऊ व सोना के डाँड़ी की।

आज मंगला से जलेबी अरोगे।श्रृंगार में पण्ड्याजी वर्ष बाचे।उत्सव भोग में जलेबी के टोकरा,दूध घर को दोहरा साज,व हांडी,श्रीखंडबड़ी को डबरा,केसर युक्त पेठा व मीठी सेव,पाच भात,शीतल,बादाम की बर्फी तले हुवे सूखे मेवे आदि आवे ।महाप्रभुजी के सब अनंसकड़ी भोग आवे।

राजभोग समय उस्ताजी की बड़ी आरसी देखे,सब स्वरूप के तिलक होवे फिर मुठिया वार के आरती होवे।

मंगला – अचल बधायो है

अभ्यंग – आपुन मंगल गावो, चिरजियो यह लाल, मंगल गावो माई, उच्छव हो बड़ कीजे

श्रृंगार – आनंद आज नंदजु के

राजभोग – (तिलक) बधाई को दिन नीको आज

आरती – धर्म हीते पायो यह धन

शयन – सुभग सहेली

Seva kram courtesy: Shrinathji Temple Nathdwara Management |

बधाई के पद :

Badhai – Palna k Pad kirtan

Share with the other Beloved Vaishnavs...!

Go to Top