अन्नकूटोत्सव | गोवर्द्धन पूजा ।
गोवर्धन पूजा, अन्नकूट महोत्सव
अन्नकूट कोटिन भांतनसो भोजन करत गोपाल ।
आपही कहत तात अपनेसों गिरि मूरति देखो तत्काल ।।१।।
सुरपति से सेवक इनही के शिव विरंची गुण गावे ।
इनहीते अष्ट महा सिध्धि नवनिधि परम पदारथ पावे ।।२।।
हम गृह बसत गोधन बन चारत गोधन ही कुलदेव ।
इने छांड जो करत यज्ञ विधि मानो भींतको लेव ।।३।।
यह सुन आनंदे ब्रजवासी आनंद दुंदुभी बाजे ।।
घरघर गोपी मंगल गावे गोकुल आन बिराजे ।।४।।
मंगला दर्शन उपरांत डोल-तिबारी में अन्नकूट भोग सजाये जाने प्रारंभ हो जाते हैं अतः अन्य सभी समां के दर्शन भीतर होते हैं. दिन भर का पूरा सेवाक्रम भीतर होता रहता है.
राजभोग दर्शन –
साज – श्रीजी में सर्व साज दीपावली के दिवस धरा हुआ ही आज भी धराया जाता है.
वस्त्र – श्रीजी को आज दीपावली के दिवस धरे गये श्वेत ज़री के वस्त्र ही धराये जाते हैं.
श्रृंगार वृद्धि में राजभोग के पश्चात ऊर्ध्व भुजा की ओर लाल रंग का ज़री का बिना तुईलैस किनारी बिना का पीताम्बर धराया जाता है जिनके दो अन्य छोर चौखटे के ऊपर रहते हैं.
ऐसा पीताम्बर वर्ष में दो बार (आज के दिन व जन्माष्टमी, नन्दोत्सव के दिन) धराया जाता है.
जन्माष्टमी, नन्दोत्सव के दिन यह केवल चौखटे पर धराया जाता है परन्तु आज यह श्रीहस्त में भी धराया जाता है.
प्रभु यह पीताम्बर गायों, ग्वालों और निजजनों पर फिरातें हैं जिससे उनको नज़र ना लगे.
चतुर्भुजदास जी ने इस भाव का एक पद भी गाया है.
खेली बहु खेली गाय, बुलाई घुमर घोरी ।
बछरा ऊपर ‘ऊपरना फेरत’ दाढ़ मेल के डोरी ।।
आप गोपाल फ़ूक मारत है गौ सुत भरत अंकोरी ।
घों घों करत लकुट कर लीने ‘मुख फेरत पिछोरी’ ।।
श्रृंगार – आज अभ्यंग नहीं होता. सर्व श्रृंगार दीपावली के दिवस के ही रहते हैं.
आज दो जोड़ी के एक माणक और एक पन्ना की प्रधानता वाले शृंगार धरे जाते हैं. दोनो हालरा नहीं धराये जाते हैं.
केवल श्रीमस्तक के ऊपर लाल रंग की ज़री की तुई की किनारी वाला गौकर्ण धराया जाता है.
इसी प्रकार कुल्हे के ऊपर सिरपैंच बड़ा कर दिया जाता है और इसके बदले जड़ाव पान धराया जाता है.
कमलछड़ी एवं पुष्प मालाजी दीपावली के दिवस के होते हैं अतः बदले जाते हैं.
श्रीहस्त में जड़ाव सोने के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
राजभोग आरती होवे पीछे तिलकायतश्री मिड्ढा (चाँवल रखने का घास निर्मित कुआ) में सेव,घी,बुरा पधराय के महूर्त करते हैं फिर अन्नकूट के भोग धराना शुरू होते हैं.
आज राजभोग पश्चात अनोसर नहीं होते. दोपहर लगभग 3 बजे श्रीजी के छड़ीदारजी, समाधानीजी, श्री कृष्ण-भण्डार के अधिकारीजी, मुख्य निष्पादन अधिकारी, गौशाला के ग्वाल-बाल आदि विशिष्टजन कीर्तन समाज के साथ द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी को पधराने उनके घर (मंदिर) जाते हैं.
श्रीजी के ग्वालबाल श्रीजी मंदिर की सात परिक्रमा कर गीत गाते हुए श्री विट्ठलनाथजी के घर उन्हें गोवर्धनपूजा में आने का आमंत्रण देते हैं.
तदुपरांत द्वितीय गृहाधीश श्री कल्याणरायजी महाराज अन्य गुसाई बालकों की अगुआई में श्री ठाकुरजी को सुखपाल में विराजित कर वैष्णवों के संग कीर्तन की स्वर लहरियों के मध्य श्रीजी में अन्नकूट अरोगाने पधराते हैं.
श्री विट्ठलनाथजी को श्रीजी सम्मुख विराजित कर पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री श्रीजी से आज्ञा लेकर चिरंजीवी श्री विशालबावा, पूज्य श्री कल्याणरायजी, श्री हरिरायजी, श्री वागीशजी एवं उपस्थित अन्य गौस्वामी बालकों और श्रीजी के सभी मुख्य सेवकों के साथ श्री नवनीतप्रियाजी को पधारने जाते हैं.
वहां श्री नवनीतप्रियाजी के मुखियाजी पूज्य तिलकायत व चिरंजीव विशाल बावा को टोरा बाँधते हैं.
खासा-भण्डार के सेवक हल्दी, गुलाल एवं अबीर से रंगोली छांटते चलते हैं जिसपर होकर पूज्य तिलकायत एवं चिरंजीव श्री विशालबावा श्री नवनीतप्रियाजी व श्रीजी के सेवकों के संग प्रभु को बीड़ा अरोगाते खुली स्वर्ण की चकडोल में विराजित कर गोवर्धन-पूजा के चौक में सूरजपोल के पावन सोपानों पर विराजित करते हैं.
दोनों स्वरूपों के पधारने और गोवर्धन पूजन के दौरान किर्तनिया ‘चले रे गोपाल…गोवर्धन पूजन’ कीर्तन गाते रहते हैं.
तदुपरांत गौ-माताएँ कानजगाई के दिवस की भांति ही धूमधाम से क्रीड़ा करती हुई मंदिर मार्ग को अपनी रुनझुन से निनादित करती हुई श्रीजीमंदिर के गोवर्धन-पूजा के चौक में पधारती हैं.
प्रभु श्री नवनीतप्रियाजी को विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध केशर मिश्रित दूध की दो चपटिया (मटकी) का भोग अरोगाया जाता है और गोवर्धन-पूजा शुरु हो जाती है.
चिरंजीव श्री विशालबावा गोवर्धन-पूजा के मध्य प्रभु को शिरा-विहीन पान अरोगाते रहते हैं.
इस पूर्व दोपहर में गोवर्धन पूजा के चौक में गोबर से गोवर्धन का निर्माण किया जाता है जिसे सिन्दूर से रंगी लकड़ी के जाली से ढंका गया होता है.
पूज्य तिलकायत मानसी-गंगा के जल, दूध, चंदन, कूमकुम आदि विविध सामग्रियों से से लगभग पौन घंटे तक गोवर्धन-पूजा करते हैं.
तदुपरांत टेरा लेकर श्रीगोवर्धन को विशाल टोकरों में रखे महाप्रशाद का भोग अरोगाया जाता है.
भोग के पश्चात झालर-घण्टों और शंख की ध्वनि के मध्य आरती की जाती है.
इसके बाद श्रीजी के दूधघर के ग्वाल, गौशाला के बड़े ग्वाल तथा सातों घरों के ग्वालों, पानघरिया, फूल-घरिया, ख़ासाभंडारी, परछना मुखिया आदि मंदिर के विविध विभागों के प्रमुखों को तिलकायत श्री ‘टौना’ बाँध कर मठड़ी, पान का बीड़ा व सेव लड्डू का नेग देते हैं.
गोवर्धन-पूजा के पूर्ण होने पर श्रीनवनीतप्रियाजी बगीचे के रास्ते से होते हुए श्रीजी के सम्मुख अन्नकूट अरोगने पधारते हैं. इधर गोबर के गोवर्धन पर गौएँ चढ़ाई जाती हैं.
गौधूली वेला में गायें अपने अस्थायी विश्रामस्थल पर ले जायी जाती हैं जहाँ पर श्रीजी की ओर से गायों को गेहूं दलिया व गुड की थूली खिलाई जाती है.
इसके तुरन्त बाद सभी गायें नगर के प्राचीन मार्ग गुर्जरपुरा से खेलते हुए नाथूवास स्थित गौशाला में चली जाती हैं.
नगरवासी व वैष्णव गोबर के गोवर्धन की परिक्रमा करते हैं. अन्नकूट उत्सव गोवर्धन-पूजा के पश्चात श्री नवनीतप्रियाजी भीतर पधार श्रीजी के सम्मुख विराजित होकर अन्नकूट अरोगते हैं.
अन्नकूट
डोलतिवारी के पिछले दो खण्डों में घास का ‘मिढ़ा’ (चाँवल रखने का घास निर्मित कुआ) बनाया जाता है जिस में अन्नकूट के डेढ़ सौ मण से अधिक भात (चांवल) का ढेर लगा अन्नकूट (अर्थात अन्न का शिखर) बनाया जाता है.
उसके ऊपर चारों दिशाओं में घी में सेके हुए कसार के चार बड़े गुंजे और मध्य में एक गुंजा चक्र का आधा भीतर व आधा बाहर रखा जाता है.
चारों दिशाओं के गुंजों पर क्रमशः शंख, चक्र, गदा व पद्म उकेरे जाते हैं.
शिखर पर तुलसी की मोटी माला धराई जाती है. इसके चारों ओर सखड़ी की सामग्रियां रखी जाती हैं.
इन सामग्रियों से पौना रतनचौक और पूरी डोलतिवारी भर जाती है.
इसके अतिरिक्त दूधघर तथा बालभोग की सामग्री निज मंदिर, मणिकोठा एवं छठीकोठा में चार-चार टोकरे में एक के ऊपर एक करके रखी जाती है.
प्रभु समक्ष भोग धरकर अन्नकूट के सेवक चिरंजीवी श्री विशाल बावा के संग अन्नकूट के मुखिया की अगुआई में श्रीजी मंदिर की बाहर की परिक्रमा करते हैं.
लगभग डेढ़ घंटे के पश्चात भोग सरने प्रारंभ हो जाते हैं. अनसखड़ी की सभी सामग्रियां हटा ली जाती है जबकि सखड़ी की केवल शाक, दाल आदि की मटकियाँ रहने दी जाती हैं. लगभग 8.30 बजे दर्शन खुल जाते हैं.
इन दर्शनों में थोड़ी-थोड़ी देर में विभिन्न भावों से नौ बार आरती होती है.
चौथी आरती के बाद रात्रि लगभग 11.30 बजे भीलों को चाँवल लूटने दिया जाता है. भोग सरने के बाद भी दर्शनों में श्रीजी के सम्मुख निज मंदिर में आठ-आठ टोकरे रखे रहते हैं परन्तु इन्हें प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर पधारने के पूर्व हटा लिया जाता है.
पाँचवीं आरती के बाद द्वितीय पीठाधीश श्री कल्याणरायजी अपने सेवकों सहित पधार कर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी को अपने घर पधरा ले जाते हैं.
नवीं और अंतिम आरती के पश्चात श्री नवनीतप्रियाजी बगीचे से होकर अपने घर पधार जाते हैं.
श्री नवनीतप्रियाजी व श्री विट्ठलनाथजी अन्नकूट पश्चात घर पधारें तब यह कीर्तन गाया जाता है.
पूज के घर आये गोवर्धन, पूज के घर आये l
जननी जसोदा करत आरती, मोतिन चौक पुराये…ll 1 ll
मंगल कलश विराजत द्वारे, वन्दनमाल बंधाये…ll 2 ll लालदास गीरवर गीर पूज्यो, भये भक्तन मन भाये…ll 3 ll
उत्थापन के बाद का सेवाक्रम सभी तीन मंदिरों में इसके बाद होता है व लगभग 4 बजे शयन के अनोसर होते हैं.
Source : Source : Shrinathji Temple Management
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