वामन द्वादशी

वामन द्वादशी पुष्टिमार्ग भाव , श्रीनाथजी दर्शन , वामन जयंती सेवा क्रम , महात्म्य , वामन द्वादशी के पद ,  कथा |

तिथि : भाद्रपद शुक्ल द्वादशी

श्री महाप्रभुजी ने पुष्टिमार्ग मे  भगवान विष्णु के 10 अवतार मे से चार अवतार

  • नृसिंह अवतार
  • वामन अवतार
  • राम अवतार
  • कृष्ण अवतार

को अधिक महत्व  दीया  है | इसके पीछे का भाव यह है की इन अवतार कार्यों मे प्रभु ने अपने भक्त जो निसाधन है |  निसाधन भक्ति  है उन पर प्रभु ने अत्यंत कृपा बरसाई है | कृपा का एक अर्थ ही पुष्टि है |

इसलिए पुष्टिमार्ग मे इन चार अवतार के प्रकट्य उत्सव को इन  चार जयंती मे पुष्टिमार्ग मे उपवास की रीत है |

उपवास करने का मुख्य कारण यह है की इन उत्सव पर प्रभु हमारे बीच पधारे, उनके दर्शन करने उनके सन्मुख जाते है | तो उनके सन्मुख होने से पूर्व हम उपवास करके हमारी आंतरिक सुध्धी करके  प्रभु के सन्मुख हो |

लोगों के मनमे यह विचार स्थित है की जो मर गया हो उनकी जयंती होती है | परंतु शास्त्र मे एसा कही वर्णन नहीं है | जयंत शब्द का अर्थ है जो हमेशा विजय रहते है | इसी कारण से भगवान विष्णु का एक नाम जयंत है |

स्कन्द पुराण मे जयंती की व्याख्या आती है की जो तिथि जय और पुण्य प्रदान करने वाली हो उसे जयंती कहते है | ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस तिथि पर सभी ग्रहों स्थिति उच्चतम हो , उस तिथि को जयंती कहते है | कोई सामान्य मनुष्य की जयंती नहीं हो शक्ति |

Source : Ved Education

श्री वामन अवतार पुष्टि लीला 

वामन लीला मे प्रभु के वचन हैं कि मे जिस पर कृपा किया करता हू उसका धन छीन लिया करता हूं | मनुष्य योनि मे जन्म मिलने पर यदि कुलीनता,कर्म, अवस्था,रूप विद्या एश्वर्य ओर धन का घमंड न हो जाय तब समझना चाहिये कि मेरी बड़ी कृपा है |

बली राजा असुर कुल मे जन्म लेने के बाद भी उन्मे लेश मात्र भी आशुरावेश नहीं था | हमेशा धर्म पारायण रहे | उनके पास पृथ्वी , स्वर्ग और पाताल तीनों लोको का आधिपत्य था | जैसे ही उन्मे अहंकार का भाव प्रकट हुआ | प्रभु को उनके भक्तों का मद बिल्कुल प्रिय नहीं है |

प्रभु ने वामन अवतार धारण किया | जब छल से बली राजा के पास से दान मांगा | तब गुरु की सलाह भी नहीं मानी | तब भी अपने धर्म का पालन किया | धर्मो  रक्षति रक्षत: | उन्होंने ने यही जाना की यह यज्ञ ही मे जिन के लिए कर रहा हु वह स्वयं छल करने पधारे है तो उसमे बड़ी कृपा की बात है |

Vaaman jayanti वामन द्वादशी

उन्होंने पृथ्वी और स्वर्ग का वैभव सब प्रभु वामन को दान मे दे दिया |  स्वयं निसाधन बन गए | अपनी आत्म निवेदन भक्ति से प्रभु को प्रसन्न किया | तब प्रभु ने उनपर खूब कृपा बरसाई | उनको चिरंजीवी बनाया | महाप्रलय मे भी रक्षण देने का वचन दिया |

अगले जन्म मे इंद्रासन का वर दिया | स्वयं उनपर कृपा करने उनको सानिध्य प्रदान किया | जब प्रभु अपने  निसाधन भक्तों पर कृपा करते है | वह आपकी पुष्टि लीला है | इस कारण से प्रभु के वामन अवतार का विशेष महत्व पुष्टिमार्ग मे है |

वामन जयंती वामन द्वादशी

श्रीनाथजी दर्शन – वामन जयंती 

श्रीनाथजी दर्शन वामन जयंती वामन द्वादशी

मंगला दर्शन के पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है | वामन जयंती के अवसर पर नाथद्वारा मे दो राजभोग दर्शन होते है |

प्रथम राजभोग दर्शन में लगभग बारह बजे के आसपास अभिजित नक्षत्र में श्रीजी के साथ विराजित श्री सालिग्रामजी को पंचामृत स्नान कराया जाता है | एवं दर्शन के उपरांत उनको अभ्यंग, तिलक-अक्षत किया जाता है | और श्रीजी के समक्ष उत्सव भोग रखे जाते हैं |

कई बार एकादशी का क्षय होकर वामन द्वादशी होती है | जभी भी यह अवसर आए तब एकादशी के स्थान पर वामन द्वादशी आए तब वैसे तो दान एकादशी  पर प्रभु को अभ्यंग स्नान नहीं होता | परंतु एकादशी का क्षय होने वामन द्वादशी पर  अभ्यंग स्नान का क्रम , दो राजभोग का क्रम , शालिग्राम जी का पंचामृत क्रम आज ही के दिन किया जाता है |

परंतु उस अवसर मे शृंगार क्रम  दान एकादशी का होता है | और अगले दिन माने त्रयोदशी के दिन  वामन जयंती के शृंगार का क्रम निर्धारित है |

।। वामन द्वादसी के श्रृंगार।।

साज : – श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली (जन्माष्टमी वाली) पिछवाई धरायी जाती है | गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है |

वस्त्र :-  धोती,पटका, कूल्हे केसरी मलमल के।पटका गाती को धरावे।ठाड़े वस्त्र स्वेत मलमल के।पिछवाई लाल सुनहरी किनारी की,जन्माष्टमी वाली।

आभरण:- सब नित्य के हीरा के।मध्य के श्रृंगार।कली, कस्तूरी आदी सब माला आवे।श्रीमस्तक पे तीन चन्द्रिका को जोड़ धरावे।वेणु वेत्र हीरा के,एक सोना को।पट उत्सव को,गोटी सोना की ।आरसी पीले खंड की।

अन्य सब नित्य क्रम।

Seva kram  courtesy: Shrinathji Temple Nathdwara Management | Shrinathji Nitya darshan Facebook page

राग सारंग

बलिराजा कौ समर्पन सांचौ ॥
बहुत कह्यौ गुरु शुक्र देवता मनदृढ आप नहिं काँचौ ॥१॥
यज्ञ करत है जाकै कारन सो प्रभु आपुहि जाँच्यौ |
परमानंद प्रभु प्रसन्न भये हरि जो जनकों जानत हैं साँच्यौ ॥२॥

अहो बलि द्वारे ठाडे वामन ।
चार्यो वेद पढत मुखपाठी अति सुमंद स्वर गावन ।।१।।
बानी सुनी बलि बुझन आये अहो देव कह्यो आवन ।
तीन पेंड वसुधा हम मागे परनकुटि एक छावन ।।२।।
अहो अहो विप्र कहा तुम माग्यो अनेक रत्न देहु गामन ।
परमानंद प्रभु चरन बढायो लाग्यो पीठन पावन ।।३।।

राग : धनाश्री

हरिको वामन रूप बनायौ ॥
नंदराय यह रूप बनायौ नंदराय यह
मानी जयंति उबटि सुगंध न्हवायौ ॥१॥
शिर किरीट पीतांबर काछनी आभूषन बहु भाँति ॥
जन्म समै सुनि सुनि गृह गृहतें आई जुरि जुरि पांति ॥
कहत सबै सिंगार सलोंनों नितप्रति दूनौ नेह ॥
द्वारिकेश प्रभु याचक हैं के कह्यौं बलि दीनौ तो देह ॥३॥