राम नवमी

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तिथि : चैत्र शुक्लपक्ष नवमी

श्री महाप्रभुजी ने पुष्टिमार्ग मे  भगवान विष्णु के 10 अवतार मे से चार अवतार

  • नृसिंह अवतार
  • वामन अवतार
  • राम अवतार
  • कृष्ण अवतार

को अधिक महत्व  दीया  है | इसके पीछे का भाव यह है की इन अवतार कार्यों मे प्रभु ने अपने भक्त जो निसाधन है |  निसाधन भक्ति  है उन पर प्रभु ने अत्यंत कृपा बरसाई है | कृपा का एक अर्थ ही पुष्टि है | इसलिए पुष्टिमार्ग मे इन चार अवतार के प्रकट्य उत्सव को इन  चार जयंती मे पुष्टिमार्ग मे उपवास की रीत है |

उपवास करने का मुख्य कारण यह है की इन उत्सव पर प्रभु हमारे बीच पधारे, उनके दर्शन करने उनके सन्मुख जाते है | तो उनके सन्मुख होने से पूर्व हम उपवास करके हमारी आंतरिक सुध्धी करके  प्रभु के सन्मुख हो |

आज मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का प्राकट्य उत्सव है | समग्र भारत देश के लिए एक अती महत्व का उत्सव है | आज का उत्सव अनीति पर नीति की विजय, अन्याय पर न्याय की विजय, अधर्म पर धर्म की विजय के भाव का उत्सव है |

लोगों के मनमे यह विचार स्थित है की जो मर गया हो उनकी जयंती होती है | परंतु शास्त्र मे एसा कही वर्णन नहीं है | जयंत शब्द का अर्थ है जो हमेशा विजय रहते है | इसी कारण से भगवान विष्णु का एक नाम जयंत है |

स्कन्द पुराण मे जयंती की व्याख्या आती है की जो तिथि जय और पुण्य प्रदान करने वाली हो उसे जयंती कहते है | ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस तिथि पर सभी ग्रहों स्थिति उच्चतम हो , उस तिथि को जयंती कहते है | कोई सामान्य मनुष्य की जयंती नहीं हो शक्ति |

Source : Ved Education

राम नवमी पुष्टिमार्ग

श्री गोपीनाथ प्रभुचरण रामनवमी की भावना समझाते हुए यह आज्ञा करते हैं

श्रीकृष्ण हस्यारूपेण प्रमदाभावकारक: ।
तदर्थे प्रकटाय त्वां भजामि रघुनायक ।।
यथैवाग्निकुमाराणाम भावम उत्पाध्य दत्तवान
वरं में कृपया देहि तथा देव नमोस्तुते।

भावार्थ:

हे रघुनायक प्रभु श्री राम आप प्रभु श्रीकृष्ण के हास्य रूप हैं। आपके दर्शन से प्रमदा भाव( प्रेम भाव सर्व समर्पण की भावना) प्रकट हो जाता है। प्रभो! आपने दंडकारण्य में अग्निकुमारों को दर्शन देकर उनमें प्रमदा भाव जगा दिया था और फिर वरदान भी दे दिया की कृष्णावतार में तुम्हारे मनोरथ भी पूर्ण करूंगा।
मुज में भी वह प्रमदा भाव प्रकट हो इस मनोरथ से मैं आपकी सेवा करता हूं। ऐसे भगवान श्री राम भी रसरूप होने के कारण हमारे प्रभु श्रीकृष्ण के समान ही माने गए हैं किंतु पूर्ण पुरुषोत्तम रुपता को अपनी मर्यादा में बिराजकर प्रकट करते हैं।

परमानंददासजी पद में कहते हैं

*हमारे मदन गोपाल हैं राम*

प्रभु श्री राम की  पुष्टि लीला :

1 ]  जब लंका जाने हेतु समुद्र मे बांध बांधना था तब पत्थर बांधकर बांध बनाया जा रहा था | तब पत्थर डूब जाते है | जब प्रभु श्री राम का नाम पत्थरों पर लिखा गया तब वह पत्थर तेरने लगे | वह यही दिखाता है की जो भी प्रभु के साथ जुड़ा रहता है वह तैर जाता है | और जो जीव प्रभु से नहीं जुड़ता वह संसार मे डूब जाएगा |

2 ]  प्रभु श्री राम ने भील जाती की सबरी के हाथों के जूठे बैर आरोगे थे | शबरी को प्रभु के प्रति शुद्ध प्रेम भाव था | उनके प्रेम से वश होकर प्रभु शबरी के घर पधारे | बैर आरोगे | उनपर कृपा बरसाई | यह भी पुष्टि लीला ही है |

3 ] प्रभु श्री राम ने गौतम ऋषि ने उनकी पत्नी को  श्राप से पत्थर की बना दिया था | तब प्रभु ने उनपर कृपा बरसाई और उनपर चरण धरके उनको श्राप मुक्त कर पत्थर मेसे पुनः मनुष्य स्त्री देह प्राप्त किया | यहा पर भी प्रभु ने अहल्याजी को श्राप मुक्त करके पुष्टि लीला की है |

4 ] प्रभु श्री राम ने सभी अयोध्या वासी को वैकुंठ की प्राप्ति करवाई | अयोध्या वाशी ने कोई साधन नहीं किए थे | उनपर कृपा बरसाके उनको वैकुंठ की प्राप्ति करवाई | यह भी प्रभु श्री राम की पुष्टि लीला है |

श्रीनाथजी दर्शन – राम नवमी 

राम नवमी पुष्टिमार्ग श्रीनाथजी दर्शन

सभी द्वार में डेली मंढे,बंदरवाल बंधे।चारो समय थाली की आरती उतारे।जमनाजल की झरीजी।गेंद चौगान,दिवला सोना के।अभ्यंग।राजभोग में सिल्लू की मंडली,पाट आवे।राजभोग के दो दर्शन होवे।

वस्त्र:- खुले बन्ध(तनी बाँध के घरानों),कूल्हे ,केसरी जामदानी की।सुथन लाल छापा की।पटका किनारी के फूल वालो,केसरी।ठाड़े वस्त्र स्वेत जामदानी के।पिछवाई लाल दरियाई की,बड़े लप्पा की(जन्माष्टमी वाली)।

आभरण:- सब उत्सव के।बनमाला को श्रृंगार।हीरा की प्रधानता।नीचे पदक,ऊपर माला,दुलड़ा,हार उत्सव वत धराने।कस्तूरी,कली सब आवे। बघनखा धरावे।कुंडल उत्सव के।

बाजू, पोची,पान, शीशफूल हीरा माणक के।चोटीजी हीरा की। श्रीमस्तक पे पाँच चन्द्रिका को जोड़।वेणु वेत्र तीनो हीरा के।मोती को कमल धरावे।पट उत्सव को,गोटी जड़ाऊ।आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की,राजभोग में सोना के डाँड़ी की।

राजभोग सराय के पहले राजभोग के दर्शन खुले । बालकृष्ण लाल के पंचामृत होवे।शुद्ध स्नान करके पीताम्बर ,माला धरावे।दोनों स्वरूप के तिलक,अक्षत होवे।दर्शन बंद होवे उत्सव भोग आवे।भोग में बूंदी,सकरपारा,दूध घर को साज,कच्चर चालनी,शागघर की सामग्री,फल फूल, दही भात,शीतल आदी अरोगे।फिर दूसरे राजभोग के दर्शन में आरती हो के नित्य क्रम से अनोसर होवे।

 

राग : बिलावल 

राम जन्म मानत नंदराई प्रथम फुलेल
उबटनों सोंधो,यह विध लाल न्हवाई ॥१ ॥
रंग केसर वागो कुलही, आभूषण पहिराई ।
सबको व्रज एक लरिका तातें बेगही लियो जिमाई ॥ २ ॥
जन्म समे पंचामृतसों देव हवावत गाई ।
चर्चित पीतांबर उढायके, फूलमाल पहिराई ॥३ ॥
भोग धरायके आरतीवारत, बाजत बहुत बधाई ।
दुहुकर जोर बलैया ले के तुलसीदास बल जाई ॥४॥

राग सारंग

आज अयोध्या मंगलचार ।।
मंगल कलश मालअरु तोरन बंदीजन गावत सब द्वार ॥१ ॥
दशरथ कौशल्याजु कैकेई बेठे आय मंदिर के द्वार ॥
रघुपति भवत शत्रु घन लक्ष्मण चार्यों धीर उदार ॥२ ॥
एक नाचत एक करत कुलाहल पांयन नूपुर को झनकार ॥
परमानंददास मनमोहन प्रकटे असुर संहार ॥३ ॥

राग मध्यमाद सारंग

हमारे मदनगोपाल हें राम ।।
धनुषबान वर विमल बेनुकर पीत वसन ओर तन घनश्याम ॥१ ॥
अपनी भुजा जिन जलनिधि बांध्यो रास रच्यो जिन कोटिक काम ।।
दशशिर हत जिन असुर संहारे गोवर्धन धायों करवाम ॥ २ ॥
वे रघुवर यह जदुवर मोहन लीला ललित विमल बहुनाम ।।
परमानंद प्रभु भेद रहित हरि संतन मिलि गावत गुनग्राम || ३ ||

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