दान एकादशी

दान एकादशी पुष्टिमार्ग , दान के दिन सेवा क्रम , श्रीनाथजी दर्शन , उत्सव भाव , श्री कृष्ण लीला दर्शन , दान के पद , सभी जानकारी |

तिथि : भाद्रपद शुक्ल एकादशी

दान लीला , दान एकादशी
दान लीला , दान एकादशी
दान लीला गोपी , दान एकादशी
दान एकादशी

श्री कृष्ण दान लीला :

सबसे पहले यह जानना जरूरी है की  यहा पर दान का अर्थ दान देना या लेना नहीं है; परंतु दान माने कर | जब सभी गोपिया अपने घर का दूध, दही, माखन इत्यादी का कर राजा कंश को देने जाती थी |

तब भगवान श्री कृष्ण उनको कहते की यह सभी दूध , माखन सबकुछ का हक राजा से पहले यहा के बच्चों का है | और यह सब हमारी गैया है , हम चराने जाते है इसलिए आपको हमे कर देना होगा |

प्रभु ने दान लीला व्रजभूमि के कई स्थान पर की है जैसे  व्रजवितान में, दानघाटी सांकरी-खोर में, गहवर वन में, वृन्दावन में, गोवर्धन के मार्ग पर, कदम्बखंडी में, पनघट के ऊपर, यमुना घाट पर आदि विविध स्थलों पर व्रजभक्तों से दान लिया है | और उन्हें अपने प्रेमरस का दान किया है | 

सभी गोपिया बरसाने से मथुरा की ओर जाते हुए गहवर वन के पास दो पर्वत बीचमे एक साकरी गली है | जहा एक समय मात्र एक ही जन जा शकता है | उस कारण से उस स्थान को साकरी खोर कहते है |

जब गोपिया वहा से माखन, दूध की मटूकी लेकर यहा से गुजरती तब हमारे कान्हा अपने सखाओ के संग यहा की तलहटी पर चड़ कर छुप जाते |

श्री कृष्ण दान लीला , दान एकादशी

जब गोपिया आती तब उन्हे रोकते | उनसे कर मांगते | अगर कर न देती तो उनकी मटूकी फोड़ देते | मटूकी छिन कर सखाओ मे बाटी जाती | प्रभु ने आज से दान लीला प्रारंभ की है | प्रभु अगले बीस दिन तक गोपियों के साथ दान लीला करते है |

नंदकुमार प्रभु ने व्रज की गोपियों से इन बीस दिनों तक दान लिया है | प्रभु ने गोपियों के गुण के अनुसार तीन रीतियों (सात्विक, राजस एवं तामस) से दान लिए हैं |

  • दीनतायुक्त स्नेहपूर्वक, विनम्रता से दान मांगे वह सात्विक दान |
  • वाद-विवाद व श्रीमंततापूर्वक दान ले वह राजस दान |
  • हठपूर्वक, झगड़ा कर के अनिच्छा होते भी जोर-जबरदस्ती कर दान ले वह तामस दान है |

भगवदीयो ने प्रभु की यह तीनों रीत की लीला का वर्ण बहुत ही सुंदर रूप से दान लीला के पदों मे किया है | श्री हरीराइजी कृत बड़ी दान लीला हमारे प्लेटफ़ॉर्म पर अवेलेबल है | आप बड़ी दान लीला सर्च कर शकते है | एवं  जिनकी लिंक इस पेग के आखिर मे दान के पद मे  दी गई है |

प्रभु की मुख्य चार स्वामीनिजी के भाव से दान की सामग्री है |

  • दूध श्री स्वामीनिजी श्री राधारानी जी के भाव से |
  • दही श्री चंद्रावलीजी के भाव से |
  • माखन श्री अग्निकुमारिकाजी के भाव से |
  • और छाछ श्री यमुनाजी के भाव से प्रभु को आरोगाई जाती है |

आज से अगले बीस दिनों की दान लीला पाँच – पाँच दिन चारों यूथ के अधिपति के माने गए है |

दान लीला एनीमेशन दर्शन

Resources used in this Video :
Video: Krishna by @Biganimation
Kirtan Voice : H.D.H Param Pujya Shri Goswami

हमारे सेव्य स्वरूप ठाकुरजी हमे अपने निज जन मान कर हक से मांगते है | हमे हमारे सेव्य स्वरूप को प्रार्थना भी वैसी ही करनी चाहिए की आप एसी कृपा करो की आप हम से जबरदस्ती करके मांगों , हठ करके मांगों, और  जो मांगों वह हम आपको दे शके |

इन दान के दिनों मे प्रभु हम से प्रेम से मांगते है | इन दिनों मे खास सावचेती हमे यह रखनी चाहिए की चाहे कितना भी कष्ट हो , दुख हो , दर्द हो, हम प्रभु को बिनती नहीं करेंगे | आपको श्रम नहीं देंगे |

राग सेवा 

जन्माष्टमी – राधाष्टमी उत्सवों मे प्रभु की बाल लीला के कीर्तन गाए जाते है | जो कल तक गाए जाते है | और आज से अगले बीस दिन प्रभु की दान लीला के कीर्तन गाए जाएंगे | इन दिनों हमे दान लीला पढनी चाहिए |

श्री गुसाइजी रचित (संस्कृत), श्री हरीराइजी रचित, कुंभनदासजी रचित, सूरदासजी रचित दान लीला ए है |इन दान लीला मे हमे हमारे सेव्य स्वरूप का विचार करके ध्यान धरना चाहिए | जिससे हमे प्रभु की वह दान लीला के दर्शन मानसी रूप मे हो शके |

शृंगार सेवा 

प्रभु के शृंगार क्रम मे आज के दिवस मुकुट काछनी का शृंगार किया जाता है | कई बार दान एकादशी एवं वामन जयंती दोनों एक ही  दिवस आती है | तब दान एकादशी के शृंगार को प्रधानता दी गई है | और जब दोनों एक ही दिवस हो तब त्रयोदशी के दिन वामन जयंती उत्सव के शृंगार प्रभु को धराए जाते है |

प्रभु को मुख्य तीन लीला शरद – रास , गौ-चारण, एवं दान लीला के भाव से  मुकुट का शृंगार धराया जाता है |

भोग सेवा 

इन दान के 20 दिनों मे हमे हमारे सेव्य स्वरूप को दान की सामग्री नित्य धरनी चाहिए | दान की सामग्री अगर हो शके तो कुल्लड मे ही धरे | कुल्लड मे धरने से हमे भी ब्रिज का भाव होता है | प्रभु को तो आनंद मिलेगा ही |

नोंधनीय बात यह है की एक बार जो कुल्लड मे सामग्री धरे फिर वह पात्र प्रसादी हो जाता है | उसको खासा करके भी नहीं धर शकते | नया कुल्लड ही सामग्री धरने मे ले | 20 दिनों के 20 कुल्लड की ही आवश्यकता है |

श्रीनाथजी दर्शन | दान एकादशी 

श्री कृष्ण दान लीला ,, श्रीनाथजी दर्शन दान एकादशी

सभी द्वार में हल्दी से डेली मंढे,बंदरवाल बंधे।सभी समय जमना जल की झरीजी आवे।चारो समय थाली की आरती उतरे।गेंद चौगान,दिवाला सोना के। अभ्यंग ।

साज :– आज प्रातः श्रीजी में दानघाटी में दूध-दही बेचने जाती गोपियों के पास से दान मांगते एवं दूध-दही लूटते  श्री ठाकुरजी एवं सखा जनों के सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है |
राजभोग में पिछवाई बदल के जन्माष्टमी के दिन धराई जाने वाली लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है |
गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है |

वस्त्र:- छोटी काछनी,सुथन,पीताम्बर,सब केसरी रूपहरी किनारी के।बड़ी काछनी लाल सुनहरी किनारी की।ठाड़े वस्त्र स्वेत जामदानी के।पिछवाई श्रृंगार में चितराम की दान के भाव की।

आभरण:- सब उत्सव के।माणक की प्रधानता।बनमाला को श्रृंगार।कली, कस्तूरी आदी सब माला आवे।बघनखा धरावे।मुकूट,टोपी मानक के,गोकुल नाथजी वाले।दान के दिन में चोटीजी नहीं आवे।मुकूट पे मुकूट पीतांबर धरावे।वेणु वेत्र माणक के,एक हीरा को।गोटी दान की।आरसी चारझाड़ की।

श्रृंगार के दर्शन में बड़ो कमल धरावे।राजभोग सराय के श्री बालकृष्ण लाल के दूध,दही,घी,बुरा,शहद से पंचामृत होवे।तिलक होवे,तुलसी समर्पे।

विशेष भोग में दही भात,शीतल,दुधघर को साज,हाँड़ी,पके गुंज्या कच्चर,चालनी आदि अरोगे।सकड़ी में केसरी पीठ,मीठी सेव दोहरा अरोगे,गोपी वल्लभ में बुदी के बड़े नग, फीका में चालनी अरोगे।

भोग आरती के दर्शन में हीरा को वेत्र श्रीहस्त में ठाडो धरावे।

मंगला – गोविन्द तिहारो स्वरूप निगम

१ राजभोग – प्रगटे श्री वामन अवतार

२ राजभोग – बली के द्वारे, कहाँ धो री मोल

आरती – पद्म धर्यो

शयन – चरण कमल बंदो

मान – आज सुहावनी रात

पोढवे – मदन मोहन श्याम पोढे

Seva kram  courtesy: Shrinathji Temple Nathdwara Management |  Shrinathji Nitya Darshan Facebook page

श्री हरीराइजी कृत बड़ी दान लीला

कीर्तन – (राग : सारंग)

कहि धो मोल या दधिको री ग्वालिन श्यामसुंदर हसिहसि बूझत है |
बैचेगी तो ठाडी रहि देखो धो कैसो जमायो, काहेको भागी जाति नयन विशालन  || 1 ||
वृषभान नंदिनी कौ निर्मोलक दह्यौ ताको मौल श्याम हीरा तुमपै न दीयो जाय,
सुनि व्रजराज लाडिले ललन हसि हसि कहत चलत गज चालन |
‘गोविंद’प्रभु पिय प्यारी नेह जान्यो तब मुसिकाय ठाडी भई ऐना बेनी कर सबै आलिन || 2 ||

राग देवगंधार

कबहुँ न सुन्यो दान गोरसकौ ।
तुम तौ कुँवर बड़ेके ढोटा पार नहिं कहुँ जसकौ ॥१॥
रोकत हौ परनारि विपिनमें नेंकु नहीं जिय कसकौ।
परमानंद प्रभु मिसजु दानको है कछु और ही चसकौ ॥२॥

राग विभास

भोरही दान माँगत मोसों गिरिधर।
प्रातही उठि चली जो नगरकों बेचन दधि मटुकी घरि सिर पर ||१||
जो तुम हमसों आरि करौगे तौ हम उलटि जाँयगीं घर
साँची कहोंधों नातर व्रजपतिजु कौन टेव परी तिहारी मनहर ॥२॥

राग देवगंधार

मोहन भाँगत गोरस दान ।
कनक लकुट कर लसत सुभग अति कही न जात पियवान ॥१॥
अति कमनीय कनक तन सुंदरि हँसि परसत पिय पान ।
श्री विठ्ठलगिरिधरन रसिक वर माँगत मृदु मुसिकान ॥२॥