अक्षय तृतीया – चंदन यात्रा

तिथि : वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया

  • अक्षय तृतीया उत्सव का माहात्म्य ,
  • उत्सव के साथ जुड़ा इतिहास
  • उत्सव से जुड़ी श्री कृष्ण की अदभुत लीला ,
  • पुष्टिमार्ग सेवा क्रम ,
  • उत्सव के पद ,
  • उष्णकालीन सेवा क्रम

यह तिथि का कभी क्षय नहीं होता है इस कारण से नाम अक्षय तृतीया है |

अक्षय तृतीया इतिहास

  • आज से त्रेता युग का आरंभ हुआ है |
  • आज श्री परशुराम जयंती भी है , श्री परशुराम प्रभु का स्वभाव उग्र है | उस कारण से आज प्रभु को चंदन धराया जाता है , शीतोपचार किए जाते है |
  • आज के उत्सव को चंदन यात्रा भी कहा जाता है |
  • आज के दिन ही कुबेर देव ने शिवपुरम मे भगवान शिव की उपासना की, और शिवजी ने प्रसन्न हो कर उनको पुनः समृद्धि प्रदान की थी |
  • आज के दिन भगवान विष्णु के अवतार स्वरूप नर और नारायण ने अवतार लिया और इसी दिन संसार को तपश्या करना सिखाया था | उन्होंने हिमालय मे तपश्या करी | उनको बर्फ से बचाने के लिए श्री लक्ष्मीजी ने बेर के पेड़ का रुप लिया था | आज वही स्थान पर बद्रीनाथ धाम स्थित है |
  • आज के दिन चार धाम मे से एक बद्रीनाथ धाम के द्वार आज के दिन ही खुलते है |
  • आज के दिन जगन्नाथ पूरी मे हर वर्ष योजित रथयात्रा के रथ के निर्माण कार्य आज से आरंभ होता है |
  • आज के दिन गुरुकुल के कई वर्ष पश्चात द्वारिका मे श्री कृष्ण और सुदामा का अलौकिक सखा मिलन आज ही तिथी मे हुआ था |
  • आज के दिन ही महाभारत युद्ध का अंत हुआ था |
  • आज के दीन हस्तिनापुर के दरबार मे हो रहे द्रौपदी के चीरहरण को प्रभु श्री कृष्ण ने द्रौपदी के चीर पूर के द्रौपदी का मान रखा था |
  • आज के दिन ही युधिष्ठिर को सूर्यदेव से अक्षय पात्र प्राप्त हुआ था |
  • आज के दिन ही मात्र वृंदावन मे बिराजित श्री बाँके बिहारीजी प्रभु के चरण के दर्शन पूर्ण वर्ष दरमियान मात्र आज के दिन ही होते है |
  • आज के दिवस ही गिरीराजजी के ऊपर पुरणमल क्षत्रिय द्वारा बनाए गए मंदिर की निव रखी गई थी |
  • आज के दिवस प्रभुचरण श्री गुसाइजी का द्वितीय विवाह हुआ था |
  • आज ही के दिन मंदिर के निर्माण कार्य के २० वर्ष पश्चात  वी.सं.  1576 मे श्री महाप्रभुजी के द्वारा  श्रीनाथजी का पाटोत्सव हुआ था |

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अलौकिक मिलन

श्री ठाकुरजी के चार यूथ के स्वामीनिजी के साथ अलौकिक मिलन

श्री ठाकुरजी के,

प्रथम यूथ के स्वामीनिजी श्री राधाजी से अलौकिक मिलन : देव प्रबोधिनी एकादशी 

द्वितीय यूथ के स्वामीनिजी श्री चंद्रावलीजी से अलौकिक मिलन : द्वितीया पाट मना जाता है 

तृतीया यूथ के स्वामीनिजी श्री अग्नि कुमारिका से अलौकिक मिलन : अक्षय तृतीया 

चतुर्थ यूथ के स्वामीनिजी श्री यमुनाजी से अलौकिक मिलन : गंगा दशेरा 

अनसुना प्रसंग

आज के उत्सव से जुड़ा है प्रभु श्री कृष्ण के बाल्य काल का एक अद्भुत रोचक एवं रमणीय प्रसंग

प्रभु श्री बाल कृष्ण का मुंडन संस्कार 

प्राचीन काल में व्रज के लोगों का मुख्य व्यवसाय गौ-चारण ही था | इसलिए मुख्य व्यवसाय से सम्बंधित कुछ वर्जनाएं भी थी | अब इसे वर्जनाएं कहें या सामाजिक नियम बालक का जब तक मुंडन नहीं हो जाता | तब तक उसे जंगल में गाय चराने नहीं जाने दिया जाता था |

बालक कृष्ण रोज़ अपने परिवार के और पास-पडौस के सभी पुरुषों को, थोड़े बड़े लड़कों को गाय चराने जाते देखते | तो उनका भी मन करता पर मैया यशोदा उन्हें मना कर देती | कि “अभी तू छोटा है, थोड़ा बड़ा हो जा फिर जाने दूँगी

एक दिन बलराम जी को गाय चराने जाते देख कर लाला अड़ गये –“दाऊ जाते हैं तो मैं भी गाय चराने जाऊंगा….ये क्या बात हुई….वो बड़े और मैं छोटा ?

मैया ने समझाया कि “दाऊ का मुंडन हो चुका है | इसलिए वो जा सकते हैं | तुम्हारा मुंडन हो जायेगा तो तुम भी जा सकोगे

लालनको चिंता हुई | इतनी सुन्दर लटें रखे ! या गाय चराने जाएँ ?

बहुत सोच विचार के बाद उन्होंने सोचा कि लटें तो फिर से उग जायेगी पर गाय चराने का इतना आनंद अब मुझसे दूर नही रहना चाहिए.

वे तुरंत नन्दबाबा से बोले –“कल ही मेरा मुंडन करा दो….मुझे गाय चराने जाना है|

नंदबाबा हँस के बोले –“ऐसे कैसे करा दें मुंडन….हमारे लल्ला के मुंडन में तो बहुत बड़ा आयोजन करेंगे तब लाला के केश जायेंगे |
प्रभु ने अधीरता से कहा –“आपको जो आयोजन करना है करो पर मुझे गाय चराने जाना है….आप जल्दी से जल्दी मेरा मुंडन करवाओ |
मुंडन तो करवाना ही था | अतः नंदबाबा ने गर्गाचार्यजी से कान्हाके मुंडन का शुभ-मुहूर्त निकलवाने का आग्रह किया | निकट में अक्षय तृतीया का दिन शुभ था | इसलिए उस दिन मुंडन का आयोजन तय हुआ | आसपास के सभी गावों में न्यौते बांटे गये |

उत्साह पूर्वक सभी तैयारीया हुई  | आसपास के गावों के हजारों अतिथियों की उपस्थिति में भव्य आयोजन हुआ | मुंडन हुआ |

श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार

और मुंडन होते ही कन्हैया ने मैया से कहा  “मैया मुझे कलेवा दो…..मुझे गाय चराने जाना है |
मैया थोड़ी नाराज़ होते हुए बोली “इतने मेहमान आये हैं घर में तुम्हें देखने | और तुम हो कि इतनी गर्मी में गाय चराने जाना है | थोड़े दिन रुको | गर्मी कम पड़ जाए | तो मैं तुम्हें दाऊ के साथ भेज दूँगी |
लालनभी अड़ गये “ऐसा थोड़े होता है….मैंने तो गाय चराने के लिए ही मुंडन कराया था | नहीं तो मैं इतनी सुन्दर लटों को काटने देता क्या ? मैं कुछ नहीं जानता | मैं तो आज और अभी ही जाऊंगा गाय चराने |’’
मैया ने नन्दबाबा को बुला कर कहा  “लाला मान नहीं रहा… | थोड़ी दूर तक आप इसके साथ हो आइये | इसका मन भी बहल जायेगा | क्योंकि इस गर्मी में मैं इसे दाऊ के साथ या अकेले तो भेजूंगी नहीं |
नन्दबाबा सब को छोड़ कर निकले | लाला भी पूरी तैयारी के साथ छड़ी, बंसी, कलेवे की पोटली ले कर निकले एक बछिया भी ले ली | जिसे हुर्र…..हुर्र कर घेर कर वो अपने मन में ही बहुत खुश हो रहे थे | कि आखिर मैं बड़ा हो ही गया |
गर्मी भी वैशाख माह की थी और व्रज में तो वैसे भी गर्मी प्रचंड होती है | थोड़ी ही देर में बालक श्रीकृष्ण गर्मी से बेहाल हो गये | पर अपनी जिद के आगे हार कैसे मानते, बाबा को कहते कैसे की थक गया हूँ…. ! अब घर ले चलो |

चलते रहे | मैया होती तो खुद समझ के लाला को घर ले आती | पर संग में बाबा थे, वे भी चलते रहे | थोड़ी ही दूर ललिताजी और कुछ अन्य सखियाँ मिली | देखते ही श्याम की हालत समझ गयी | गर्मी से कृष्ण का मुख लाल हो गया था | सिर पर बाल भी नही थे इसलिए मोहन पसीना-पसीना हो गये थे |

गोचारण लीला

उन्होंने नन्दबाबा से कहा कि आप इसे हमारे पास छोड़ जाओ | हम इसे कुछ देर बाद नंदालय पहुंचा देंगे | नंदबाबा को रवाना कर वो कन्हैया को निकट ही अपने कुंज में ले गयीं |उन्होंने बालक कृष्ण को कदम्ब की शीतल छांया में बिठाया |

और अपनी अन्य सखी को घर से चन्दन, खरबूजे के बीज, मिश्री का पका बूरा, इलायची, मिश्री आदि लाने को कहा | सभी सामग्री ला कर उन सखियों ने प्रेम भाव से कृष्ण के तन पर चन्दन की गोटियाँ लगाई और सिर पर चन्दन का लेप किया |

कुछ सखियों ने पास में ही बूरे और खरबूजे के बीज के लड्डू बना दिए | और इलायची को पीस कर मिश्री के रस में मिला कर शीतल शरबत तैयार कर दिया | और बालक कृष्ण को प्रेमपूर्वक आरोगाया |
साथ ही ललिता जी लालन  को पंखा झलने लगी | यह सब अरोग कर कान्हा को नींद आने लगी | तो ललिताजी ने उन्हें वहीँ सोने को कहा | और स्वयं उन्हें पंखा झलती रही | कुछ देर आराम करने के बाद लाला उठे | और ललिताजी उन्हें नंदालय छोड़ आयीं |

आज भी अक्षय-तृतीया के दिन प्रभु को ललिताजी के भाव से बीज के लड्डू और इलायची का शीतल शर्बत आरोगाये जाते हैं | एवं  विशेष रूप से केशर मिश्रित चन्दन (जिसमें मलयगिरी पर्वत का चन्दन भी मिश्रित होता है) की गोटियाँ लगायी जाती हैं |

प्रभुने गर्मी में गाय चराने का विचार त्याग दिया था | औपचारिक रूप से श्री कृष्ण ने गौ-चारण उसी वर्ष गोपाष्टमी (दीपावली के बाद वाली अष्टमी) के दिन से प्रारंभ किया | और उसी दिन से उन्हें गोपाल कहा जाता है |
वर्ष में एक ये ही दिन ऐसा होता है जब बीज के लड्डू अकेले श्रीजी को आरोगाये जाते हैं | अन्यथा अन्य दिनों में बीज के लड्डू के साथ चिरोंजी के लड्डू भी आरोगाये जाते हैं |

Prasang Credits : Shrinathji Nity Darshan Facebook Page

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अक्षय तृतीया •

सभी द्वार में डेली मंढे, बंदरवाल बंधे। सभी समय जमनाजल की झरीजी अरोगे। चारो समय थाली की आरती। टेरा चंदुआ सब स्वेत। खस के टेरा आवे। साज सब चाँदी को। अभ्यंग। गेंद चौगान, दिवला चाँदी के। आज से चार बाती की आरती। राजभोग में बीड़ा की सिकोरी आवे। मोती को चौखटा। आज से करवा, कुंजा, चन्दन की बरनी, शीतल नित्य में आवे।

वस्त्रः-पिछोड़ा स्वेत, केसर की कोर को। कूल्हे स्वेत, रूपहरी किनारी की ठाड़े वस्त्र केसरी डोरिया के। पिछवाई सफ़ेद, चिकन बूटी की।

आभरण:- सब उष्णकाल व उत्सव के। मध्य को श्रृंगार। श्रीकर्ण में हीरा के कुंडल धरावे। श्रीमस्तक पे तीन मोर चन्द्रिका को जोड़। वेणु वेत्र मोती के। पट उष्णकाल को, गोटीमोती की। आरसी सोना के डाँडी की।

राजभोग सरे कुंजा, करवा, पंखा, चन्दन, बरनी आदी को अधिवासन होवे। दर्शन खुले। प्रभु के चन्दन की गोली धरावे। दर्शन पीछे उत्सवभोग आवे। भोग में दूध घर की हाँड़ी, बीज के नग, दूध घर को साज, दहीभात, सतुआ फल फूल, चालनी, संधाना, शीतल आदी अरोगे। फिर दूसरे राजभोग के दर्शन खुले। सकड़ी भोग में बड़े टूक, पाटिया, दहीभात, सतुआ आदी अरोगे।

मंगला – रतन जटित कनक धार 

राजभोग – अक्षय तृतीया अक्षय

२ राजभोग –  देख सखी गोविन्द के चंदन 

आरती – पिछोरा ब्रासा को कटी

शयन – मेरे ग्रह चंदन अति कोमल 

पोढवे – रंग महल गोविन्द पौडे

आज प्रभु के मुंडन का दिन भी है और इस कारण आज के उत्सव में ठाकुरजी के ननिहाल के सदस्य भी आमंत्रित किये जाते हैं और इसीलिए आज श्री यशोदाजी के पीहर की लकड़ी की विशिष्ट चौकी का प्रयोग भोग धरने में किया जाता है |

अक्षय तृतीया के पद :

अक्षय तृतीया अक्षयलीला नवरंग गिरिधर पहेरत चंदन l

वामभाग वृषभान नंदिनी बिचबिच चित्र नव वंदन ll 1 ll

तनसुख छींट ईजार बनी है पीत उपरना विरह-निकंदन l

उर उदार बनमाल मल्लिका सुखद पाग युवतीन मनफंदन ll 2 ll

नखसिख रत्न अलंकृत भूषन श्रीवल्लभ मारग मनरंजन l

‘कृष्णदास’ प्रभु रसिक सिरोमनि लोचन चपल लजावत खंजन ll 3 ll

Seva kram  courtesy: Shrinathji Temple Nathdwara Management | 

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हमारे पुष्टिमार्ग मे सेवाक्रम इतनी बारिकाई से बनाया गया है की एक ऋतु से दूसरी ऋतु का क्रम धीरे धीरे करते पूर्णतः बदलता है | जैसे डोलोत्सव से शीतकालीन सेवा क्रम धीरे धीरे काम होता है , और चैत्र नव वर्ष , राम नवमी , महाप्रभुजी का उत्सव दौरान क्रमानुसार उष्णकालीन सेवा क्रम बढ़ता है और आज से  पूर्णतः उष्णकालीन  सेवा क्रम आरंभ होता है |

आज से

साज

टेरा आदि सब श्वेत होते है | शयन समय शैयाजी के ऊपर छींट की गादी एवं उसके ऊपर श्वेत मलमल की चादर रखी जाती है | शैयाजी का यह क्रम आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तक रहता है | वेणुजी , जारीजी, सिहासन, बंटाजी , पडघा सब स्वर्ण से बदलकर चांदी के होते है |  आज से प्रभु को जारीजी के साथ सफेद माटी के कुंजा आते है | जारीजी मे नेवडा का वस्त्र श्वेत रंग का ही आवे | आज से प्रभु को खस के पंखा की जोड़ सिहासन  के पीछे धरी जाती है |

आज के दिवस को चंदन यात्रा भी कहते है | आज से प्रभु को कई दिन तक चंदन धराया जाता है | चंदन धरने की अपनी एक रीत है | चन्दन को घिस के मलमल के वस्त्र में लेकर जल निचो लिया जाता है एवं इसमें केशर, बरास, इत्र (खस अथवा गुलाब), गुलाबजल आदि मिलाकर इसकी गोलियां बनायी जाती है | पहली गोली प्रभु के वक्षस्थल पर, दूसरी गोली, दायें श्रीहस्त में, तीसरी बायें श्रीहस्त पर, चौथी दायें श्रीचरण पर और पांचवी गोली बायें श्रीचरण पर धरी जाती है |

वस्त्र

आज से प्रभु को पिछोड़ा, आड़बंद, परधनी, धोती-उपरना और मल्लकाछ आदि ऊष्णकालीन वस्त्र ही धराये जाते हैं | लालन को मात्र चुनरी ही धराई जाती है | रंगों में भी प्रभु को श्वेत, अरगजाई, गुलाबी, चंपाई, चंदनिया आदि हल्के शीतल रंगों के वस्त्र ही धराये जायेंगे | ज्येष्ठाभिषेक (स्नानयात्रा) के पश्चात गहरे रंग पुनः धराये जा सकते हैं |

शृंगार

आज से मोती, छीप, चन्दन व पुष्प आदि के श्रृंगार धराये जा सकते हैं. इन दिनों मे मोगरे फूल के कली के शृंगार भी आरंभ होंगे |

शीतोपचार

उष्णता मे प्रभु सुखार्थ शीतोपचार किए जाते है |

आज से जन्माष्टमी तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को शीतल जल में बूरा, गुलाबजल, इलायची, बरास आदि मिलाकर सिद्ध किया गया पेय- पन्ना (सरबत) अरोगाया जाता है | लिम्बू का पन्ना इत्यादि धराए जाते है |

चैत्र नव वर्ष से ही प्रभु को फूल मंडली धरानी आरंभ हो चुकी है | फिर खस के बंग्ला धराए जाते है | सेवा मे प्रभु सन्मुख फवारे रखे जाते है |  इन दिनों मे प्रभु की सेवा मे नाव मनोरथ का आयोजन किया जाता है |

आज से ऊष्णकाल आरंभ हो रहा है | तो आज से उष्णकालीन ऋतु अनुसार पद गाए जाते है | उष्णकाल के दिनों मे गाए जाने वाले मंगला से शयन पर्यंत तक के पद नीचे दी गई ई-बुक पर मिल शकते है |

UshnaKal Seva kram Kirtan
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