श्रीनाथजी द्वितीय पाटोत्सव

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तिथि : फाल्गुन कृष्णपक्ष एकम

आज का उत्सव चन्द्रावलीजी की ओर का उत्सव है अतः उनकी ओर से राजभोग में चैत्री-गुलाब की फूल मंडली का मनोरथ होता है. आज से
10 दिन कुंजलीला यमुनाजी के भाव के,
10 निकुंजलीला ललिताजी के भाव के,
10 दिन निबिड़ निकुंजलीला चन्द्रावलीजी के भाव के एवं अंतिम
10 दिन निभृत निकुंजलीला के स्वामिनीजी के भाव के होते हैं.

इन चालीस दिनों की निकुंजलीला के पश्चात श्री वल्लभाधीश जी का प्राकट्य होता है. निकुंजलीला के सुन्दर पद इस दिनों में गाये जाते हैं.
“नेक कुंज कृपा पर आईये…”(सूरदासजी)
“चलोकिन देखन कुंजकुटि…”(परमानंददासजी)

इतिहास : 

जब श्रीनाथजी ब्रिज से मेवाड़ पधारे तब  महा कृष्ण पक्ष सप्तमी की तिथि पर सर्व प्रथम जहा आप पाट बिराजे | वह स्थान वर्तमान समय मे कृष्ण खर्च भंडार के रूप से जाना जाता है | जो श्रीनाथजी की चरण चौकी के रूप मे भी जाना जाता है |

और  श्री गोवर्धननाथजी वर्तमान समय मे जहा पाट बिराज रहे वहा आज की तिथि पर पाट बिराजे थे | इसी कारण से इस उत्सव को द्वितीय पाटोत्सव कहा जाता है |

श्री कृष्ण व्रज लीला – उत्सव भावना :

इस उत्सव के एक महत्व का भाव जुड़ा हुआ है | वसंत पंचमी से डोलोत्सव तक होरी खेल के ४० दिनों नंदकुवर अपने भक्तों के साथ साख्य भाव से होरी खेल ते है | ताकि भक्त बिना किसी संकोच के साख्य भाव से होरी खेल सके | इस लिए भक्त भी अधिकार से साख्य भाव से फगवा मँगवाते है, ओढनी ओढ़ाकर नचाते है |

अब इन ४० दिन के होरी खेल के पश्चात पुनः वैष्णवों को दास्य भाव स्थापित करना आवश्यक है | इस कारण से नंदराइजी अपने लाल को स्नान आदि पश्चात पुनः पाट बिराजमान करके पूर्वरत व्रजराजकुंवर के रूप मे स्थापीत करते  है |

जिससे फिर दास और प्रभु के संबंध की स्थापना होती है | भक्तों के हृदय मे भी दास्य भाव स्थापित होता है | इस भाव से यह उत्सव मनाया जाता है |

द्वितीया पाटोत्सव श्रीनाथजी नाथद्वारा भाव भावना

इस सन्दर्भ में परमानंददास जी ने गाया है…

लाल नेक देखिये भवन हमारो |
द्वितीया पाट सिंहासन बैठे, अविचल राज तुम्हारो || 1 ||

शीतकाल की सेवा पूर्ण हो चुकी है | अतः आज से सेवाक्रम में काफी अंतर आ जायेगा |

  • प्रभु के सम्मुख धरी जाने वाली अंगीठी आज से नहीं रखी जाएगी |
  • गन्ने का रस, रतालू की चटनी, घी भरी पिण्ड-खजूर, फलों में गन्ना, सूरण, अरबी और रतालू की सब्जी (सखड़ी व अनसखड़ी), सभी प्रकार (गेहूं, मूँग-दाल, चना-दाल, बादाम, शकरकंद आदि) के सीरा आदि शीतकाल की सामग्रियां आज से नहीं अरोगायी जायेंगी |
  • सिंहासन एवं पंखा धरे जाते हैं |
  • आज से अक्षय-तृतीया तक चांदी का कुंजा धराया जाता है | (तत्पश्चात माटी का कुंजा प्रारंभ हो जायेगा) |
  • होली खेल के चालीस दिनों तक ज़री के वस्त्र, साज, हीरा, पन्ना, माणक, मोती एवं जड़ाव स्वर्ण के आभरण आदि नहीं धराये जाते | जो कि आज से पुनः प्रारंभ हो जायेंगे |
  • आज से रंगीन साज (गादी-तकिया) प्रारंभ हो जायेंगे जो कि रामनवमी तक चलेंगे | आज से गोपाष्टमी तक राजभोग धरे तब छाक के पद गाये जाते हैं |
  • आज से श्रीजी में फूल-मंडली के मनोरथ प्रारंभ हो जाते हैं | जिस दिन फूल-मंडली का मनोरथ हो उस दिन फूल-मंडली के कीर्तन गाये जाते हैं |

Source : Shrinathji Nitya Darshan Facebook Page

श्रीनाथजी दर्शन – द्वितीया पाटोत्सव 

श्रीनाथजी द्वितीय पाट उत्सव

सभी द्वार में डेली मंढे,बंदरवाल बंधे।चारो समय थाली की आरती आवे।गेंद चौगान,दिवला सोना के।तकिया लाल काम के।सभी जगह मखमल को साज चढ़े।अभ्यंग होवे। आज विशेष रूप से प्रभु को दोहरा अभ्यंग कराया जाता है |

राजभोग में फूल मंडली होवे।आज से दत्तू,खोल धरावे।

वस्त्र:- चागदार बागा,चोली,सुथन सब सुनहरी जरी के,बिना किनारी के।पटका रूपहरी जरी को।श्रीमस्तक पे हीरा की कुल्हे।ठाड़े वस्त्र मेघ स्याम।पिछवाई फूलकशाही जरी की।

आभरण:- सब उत्सव के।हीरा की प्रधानता।बनमाला को श्रृंगार। हीरा, पन्ना,माणक, मोती के हार, माला धरावे।कुंडल हीरा के, उत्सव के।

कली, कस्तूरी,आदी सब आवे। चोटीजी हीरा की ।श्रीमस्तक पे सुनहरी घेरा आवे।वेणु वेत्र तीनो हीरा के।आरसी चार झाड़ की।पट उत्सव को,गोटी जड़ाऊ।

आज श्रीजी में नियम की चैत्री गुलाब की मंडली आती है | चैत्री गुलाब से निर्मित मंडली (बंगला) में श्रीजी विराजित होते हैं | राजभोग से संध्या-आरती तक प्रभु मंडली में विराजते हैं |

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बैठे लाल फूलनकी चौखंडी |
चंपक बकुल गुलाब निवारो रायवेलि श्रीखंडी || 1 ||
जाई जुई केवरो कूजो करण कनेर सुरंगी |
‘चतुर्भुजप्रभु’ गिरिधरनजूकी बानिक दिन दिन नवनवरंगी || 2 ||

आरती पीछे आभरण बड़े होवे।छेड़ान के श्रृंगार होवे।हीरा की कूल्हे बड़ी करके,लाल कूल्हे धरावे।

मंगला – प्यारी के महल ते उठ चले 

राजभोग – आज की बानकि बल-बल; -फूलन की चौखन्डी बैठे लाल

आरती – राखी हो अलक बीच 

शयन – कनक कुसुम अति श्रवण सोहे

Seva kram  courtesy: Shrinathji Temple Nathdwara Management | Shrinathji Nitya Darshan facebook page

राग : सारंग

लाल नेक देखिये भवन हमारो |
द्वितीया पाट सिंहासन बैठे, अविचल राज तुम्हारो || 1 ||
सास हमारी खरिक सिधारी पिय वन गयो सवारो |
आसपास घर कोऊं नाहीं यह एकांत है न्यारो || 2 ||
ओट्यो दूध सदा धोरीको लेहु श्याम घन पीजे |
‘परमानंद दास’ को ठाकुर कछु कह्यो हमारो कीजे || 3 ||

राग सारंग
राथे तेरे भवन हों आऊं॥
सादर कहत॑ सांवरो मोहन नेंक दधजो पाऊं ॥१ ॥
मात पिता हू विलगु न माने ओर यह भेद न जाने ॥
जो तू सोंह करे बाबाकी तो मेरे मनमाने ॥२ ॥
सब दिन खेलो मेरे आंगन अपने नेन सिराऊं॥
परमानंद प्रभु विनती कीनी अपने मित्र बुलाऊं ॥३॥

फूल मंडली के पद :

राग सारंग
फूलनकी मंडली मनोहर बैठे जहां रसिक पिय प्यारी ॥
फूलनके बागे ओर भूषन फूलन के फूलनहीकी पाग संवारी ॥ १॥
ढिंग फूली वृषभाननंदिनी तैसीये फूल रही उजियारी॥
फूलनके झूमका झरोखा बहु फूलनकी रची अटारी॥२॥
फूलेसखा चकोर निहारत बीच चंद मिल किरण संवारी॥
चतुर्भुजदास मुदित सहचारी फूले लाल गोवर्धनधारी ॥३॥