होली
होली पुष्टिमार्ग सेवा क्रम, होलिकोत्सव , होलीका पूजन, श्रीजी की होली मे अनूठी परंपरा, होलीका दहन की सच्ची कहानी, श्रीनाथजी सेवा क्रम, होली के पद कीर्तन |
तिथि : फाल्गुन शुक्लपक्ष चतुर्दशी
वार्ता प्रसंग :
वैसे तो कथा सभी को ज्ञात है की हिरण्य कश्यपू ने अपना पुत्र भक्त प्रहलाद भगवान विष्णु का उपासक था उसे मारने के लिए कई प्रयास किए | उन्मे से एक प्रयास यह था की उसकी बहन होलीका को वरदान था की अगर वो ओढनी ओढ़कर अग्नि मे प्रवेश करे तो अग्नि उसको कोई क्षति नहीं पहोचाएगी |
इस कारण से होलीका अपने भाई के पुत्र प्रहलाद को लेकर अग्नि मे बैठी | जैसेही अग्नि प्रज्ज्वलित हुई | उसके अंदर की ममता जागी | उसे प्रहलाद की भक्ति पर स्नेह आया और तब उसने वह ओढनी प्रहलाद को ओढादी | जिस कारण से वह स्वयं जल गई | और प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ |
इस कारण से इस उत्सव को “होलिका पूजन” कहते है |

नाथद्वारा मे सामान्यतया होलिकोत्सव व होलिका प्रदीपन तिथी प्रधान होने से फ़ाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन | और डोलोत्सव नक्षत्र प्रधान होने के कारण जिस दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र होवे उस दिन मनाया जाता है |
कई बार तिथि वृद्धि हो तो होलिकोत्सव चतुर्दशी को मनाया जाता है | होली प्रदीपन पूर्णिमा के दिन सूर्योदय पूर्व मुहूर्त अनुसार किया जाता है | नाथद्वारा मे श्रीजी की सबसे उची (32 फीट) होली तैयार होती है | नाथद्वारा मे सर्व प्रथम श्रीजी की होली का दहन किया जाता है तदपश्चात सभी होलीकादहन होता है |

श्रीनाथजी दर्शन – होली उत्सव
वसंत पंचमी के पद, होरी डंडा रोपण के पद, कुंज एकादशी के पद, गुसाइजी की अष्टपदी, डोल के पद, होली खेल के 40 दिवस दरमियान नित्य सेवा के पद नीचे दी गई ई-बुक मे है |
जो हमारे पध्य साहित्य शेकशन मे उपलब्ध है |