पुष्टिमार्ग सांझी प्रारंभ

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तिथि : भाद्रपद शुक्लपक्ष पूर्णिमा

सांझी के दिनों मे प्रभु की लीला 

सारस्वत कल्प मे इन दिनों मे राधजी को कहा गया की आपको प्रेम स्वरूप संध्यादेवी की पूजा करनी चाहिए | जिनको सांजी भी कहा जाता है | उनकी पूजा करने से एक उत्तम वर की प्राप्ति होती है | राधाजी का मनोरथ एक ही है नंदलाल वर के स्वरूप मे मिले इसलिए राधारानी आपकी सखियों के साथ इस उत्सव की तैयारी मे जुड़ गई |

हमारे प्रभु को इस उत्सव के बारेमे ज्ञात हुआ और जुडने का मनोरथ हुआ | परंतु समस्या यह थी की यह पूजा केवल गोपिका ही कर सकती है | प्रभु ने तो ठान लिया था की इस पूजा मे सखियों के साथ जुड़ेंगे | फिर हमारे लीलाधर प्रभु ने एक सखी का वेश धारण किया और श्यामा सखी बनके बरसाना गए |

प्रभु श्यामा सखी बनकर बरसाना जाकर सखियों के साथ तैयारी मे जुड़ गए | पुष्प एकत्रित करने लगे |

श्री कृष्ण श्यामा सखी लीला | पुष्टिमार्ग सांझी
श्री कृष्ण श्यामा सखी लीला | पुष्टिमार्ग सांझी

इस पूजा के दौरान गोपीकाए भिंत – दीवाल पर सांजी मंडती (रचती) है | फिर उनको भोग धराती है | 

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सभी सखिया यह श्यामा सखी की कला कुशलता से अचंभित थी | 

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कई बार रात्री को देरी होने से प्रभु वही रुक जाते थे |

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सांजी की १४ दिनन साधना की जाती है | और १५ वे दिन कोट आरती की जाती है | १४ लोक के नाथ प्रभु की प्राप्ति हो यही कारण सु १४ दिन पूजा की जाती है | इन संध्यादेवी की पूजा से ही गोपिकाओ ने परम फल स्वरूप महारास मे रासेश्वर प्रभु श्री कृष्ण को प्राप्त किया |

तब से चलती आ रही यह परंपरा आज भी वही रीति से मनाई जाती है | आज भी ब्रिज मे भिंत चित्रों की सुंदर परंपरा चालू है | ब्रिज के साथ साथ गुजरात, मालवा , राजस्थान, व्रज जैसे कई राज्यों मे सुंदर भीत चित्रों की यह परंपरा आज भी जीवित है |

इन दिनों मे कुवारी कन्याए उत्तम वर की प्राप्ति हेतु बड़ी महिलाओ के मार्ग दर्शन मे भिंत गोबर से अद्भुत दिव्य भीत चित्रों की रचना करती है | फिर सांझी माता को भोग धरते है | सांझी माता के गीत गाति है  | एक अद्भुत चित्र कला की परंपरा आज भी कायम है |

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image credits : naidunia.com

पुष्टिमार्ग मे सांझी की विशेषता 

पुष्टिमार्ग विविध भाति भाति की कलाओ से समृद्ध मार्ग है | प्रभु के सुखार्थ सम्पूर्ण वर्ष दरमियान कई कलाए प्रभु को समर्पित की जाती है | पाक कला , साज – सजावट , क्राफटिंग , गायन, वादन, नृत्य, शृंगार, शृंगार बनावट, रंगोली, और भी कलाओ का बारीकी और पारंगतता के साथ सेवा मे विनियोग होता है | उसमे से एक कला सांझी की है |

पुष्टिमार्ग मे सभी मंदिरों मे तथा वैष्णव के घर बिराजमान सेव्य ठाकुरजी के सन्मुख इन दिनों सांझी का निर्माण किया जाता है | विविध भाति भाति की सांझी प्रभु के सन्मुख धरी जाती है |

पुष्टिमार्ग सांझी के मूल रूप से चार प्रकार है |

1) फूल की सांजी : जो स्वामीनिजी के भाव से है |

फूल की सांझी | पुष्टिमार्ग सांझी

2 ) केले के पत्तों की सांजी : जो श्री चंद्रावलीजी के भाव से है |

केले के पत्तों से बनी सांझी | पुष्टिमार्ग सांझी
image credits : Divya Sankhnad : Place Shrinathji Temple Darshan

3 ) प्राकृतिक रंगों की सांजी : जो श्री ललिताजी के भाव से है |

रंग की सांझी | पुष्टिमार्ग सांझी

4 )जल की सांजी : जो श्री यमुनाजी के भाव से है |

जल की सांझी | पुष्टिमार्ग सांझी

आचार्य श्री परम पूज्य गोस्वामी श्री अन्वय बावाश्री द्वारा जल की सांझी सिद्ध करने की रीत |

यह चार प्रकार से प्रभु के 84 कोश ब्रिजमंडल की अलग अलग स्थली वन, उपवन, कुंड, घाट एवं प्रभु की भिन्न लीला की सांजी सज्ज की जाती है | गुरु घर की प्रणालिका के अनुसार कॉन्से दिन कॉनसी सांजी सज्ज की जाए उसका निर्णय लेने का आग्रह रखना चाहिए | सांझी के सभी दिनों के उदाहरण आप हमारे प्लेटफॉर्म मे प्राप्त कर शकते है |

सांझी के सभी उदाहरण आप हमारे प्लेटफॉर्म मे झाखी शेकशन मे चित्रजी शेकशन मे प्राप्त कर शकते है | लिंक नीचे दी गई है |

श्रीनाथजी दर्शन – पुष्टिमार्ग सांझी प्रारंभ 

सांझी प्रारंभ श्रीनाथजी दर्शन

पुष्टिमार्ग सांझी प्रारंभ

सांझी – आज से पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सांझी का प्रारंभ होता है | श्रीजी मंदिर में कमलचौक में हाथीपोल के द्वार के बाहर आज से पंद्रह दिन तक संध्या-आरती पश्चात चौरासी कोस की व्रजयात्रा की लीला की सांझी मांडी जाती है |
सफेद पत्थर के ऊपर कलात्मक रूप से केले के वृक्ष के पत्तों से विभिन्न आकर बना कर सुन्दर सांझी सजायी जाती है | एवं उन्हीं पत्तों से उस दिन की लीला का नाम भी लिखा जाता है | भोग-आरती में सांझी के कीर्तन गाये जाते हैं | प्रतिदिन श्रीजी को अरोगाया एक लड्डू सांझी के आगे भोग रखा जाता है | और सांझी मांडने वाले को दिया जाता है |

आज प्रथम दिन व्रजयात्रा की सांझी मांडी जाती है |

यह सांझी अगले दिन प्रातः मंगलभोग सरे तक रहती है | और तदुपरांत बड़ी कर (हटा) दी जाती है |

 || मुकूट काछनी के श्रृंगार ||

आज से सांझी को आरम्भ होवे।संध्या आरती के पीछे हाथी पोल की डेली ख़ासा करके ,फुलघर वाले सांझी मांढे।आज वृजयात्रा मंढे।

साज : – आज श्रीजी में दानलीला एवं सांझीलीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है | गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है |

वस्त्र:- सुथन,दोनों काछनी,पीताम्बर सब गुलाबी मलमल के ठाड़े वस्त्र स्वेत भातवार पिछवाई सांझी के भाव की,चितराम की।

आभरण:- सब हीरा के।बनमाला को श्रृंगार। श्रीकर्ण में कुंडल । कस्तूरी,कली व कमल माला धरावे । मुकूट टोपी जड़ाऊ । दान के दिन में चोटीजी नहीं आवे । मुकूट पे मुकूट पीताम्बर धरावे। पट गुलाबी, गोटी मोर की।

अन्य सब नित्य क्रम।

Seva kram  courtesy: Shrinathji Temple Nathdwara Management | Shrinathji Nitya Darshan Facebook page

राग जंगलो

अरी तुम कौन हो री बन में फुलवा बीनन हारी। नेह लगन को बन्यौ बगीचा फूल रही फुलवारी ।1।
मदनमोहन पिय यों बूझत हैं तू को हे सुकुमारी।। ललिता बोली लालसों यह बृषभान दुलारी।।2।।
या बन में हम सदा बसत हैं हम ही करत रखवारी ।। बिन बूझे तुम फुलवा बीनत जोबन मद मतवारी ।3।
ललित बचन सुन लालकें सब रीझ रही वृजनारी।। सूरदास प्रभु रस बस कीनी विरह वेदना टारी ।4।

राग हमीर

पूजन चली री साँझी शुभघरी शुभदिन शुभ महुरत रात ||
चंचल चपल चपलासी डोलत चंपे जैसौ गात ||१||
अपने अपने मंदिर तें निकसी दीप लिऐं सब हाथ ॥
धोंधीके प्रभु तुम बहो नायक सब सखियनके साथ ॥२॥

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