पवित्रा एकादशी
पवित्रा एकादशी पुष्टिमार्ग सेवा क्रम , श्रीनाथजी दर्शन, पवित्रा एकादशी के पद, पवित्रा का भाव , पवित्रा धरने का क्रम , श्री महाप्रभुजी द्वारा पुष्टिमार्ग की स्थापना, की जानकारी |
तिथि : श्रावण शुक्लपक्ष एकादशी
पवित्रा एकादशी वार्ता प्रसंग
श्री महाप्रभुजी मध्य रात्री को जब गोविंदघाट (ठकुरानी घाट) पर चिंतातुर अवस्था मे बिराजमान थे | वह रात्री श्रावण सूद अग्यारस थी | आप चिंतातुर अवस्था मे विचार कर रहे थे |
तब श्री वल्लभ ने दर्शन किए और बोले ” है प्रभु आप की आज्ञा भई है | दैवी जीवो के उध्दार कर्वे की किन्तु यह जीव तो दोष युक्त है | वा को आप के सन्मुख कैसे लाउ |”
तब श्री ठाकोरजी सुंदर आज्ञा करते हैं ” है वल्लभ, आप उनको शरण मे लाओ, उनको पंचाक्षर मंत्र का ज्ञान दो | उनका मेरे साथ संबंध कराओ – ब्रम्ह संबंध कराओ | फिर वह जीव दोष मुक्त हो जाएंगे | फिर आप चाहे उनका हाथ छोड़ सको हो लेकिन मे नहीं छोडूंगा। ” यह वाणी ही सिद्धांत रहस्य के रूप में प्रकट भई।
यह सुनकर श्री वल्लभ अति आनंदित हुए | और आप ने पवित्रा एकादशी निमित्त स्वयं सिद्ध सुतर के 360 तार के, केसर में रंगे हुए पवित्रा को गोकुलचंद्रमाजी को धराया | और मिसरी का भोग लगाया और उस समय ठाकोरजी के गुणगान हेतु एक अद्भुत ग्रंथ की रचना की | इस तरह “मधुराष्टकम” का प्राकट्य हुआ | हमारे नित्य नियम सेक्शन मे यह ग्रंथ अवेलेबल है | लिंक नीचे दी गई है |
