रथयात्रा

रथयात्रा उत्सव पुष्टिमार्ग सेवा क्रम | रथयात्रा मर्यादा भाव कथा | रथयात्रा पुष्टिमार्ग भाव : बालभाव – किशोर भाव सेवा क्रम | रथयात्रा श्रीनाथजी दर्शन | रथयात्रा के पद | रथयात्रा पुष्टिमार्ग आरंभ | रथयात्रा से जुड़ा महाप्रभुजी का प्रसंग  |

जगन्नाथपूरी में जगन्नाथ भगवान की रथयात्रा का उत्सव अषाढ़ शुक्ल पक्ष दुज को मनाया जाता है | परन्तु पुष्टिमार्ग में रथयात्रा अषाढ़ शुक्लपक्ष  प्रतिपदा से तृतीया तक जिस दिन सूर्योदय के समय पुष्य नक्षत्र हो उस दिन होती है |

रथयात्रा मर्यादा मार्ग भाव

द्वारिकापुरी मे जब श्री सुभद्राजी ने प्रभु से  नगर दर्शन की बिनती की | तब प्रभु दाऊजी के साथ रथ मे श्री सुभद्रा जी को द्वारिका नगरी दर्शन कराने पधारे | यात्रा के दरमियान सभी नगरवासी दर्शन करने एकत्रित होते | प्रभु भक्तों पर भी कृपा करते |

कुछ कुछ यह भाव से रथयात्रा का उत्सव मनाया जाता है | यह उत्सव के दरमियान जगन्नाथ पूरी मे तीनों स्वरूप के रथ का निर्माण कार्य अक्षय तृतीया से ही आरंभ हो जाता है | रथ का निर्माण करके | पूरी रित्त से सजाकर उत्सव के दिन प्रभु को रथ मे बिराजमान करते है |

फिर समग्र पूरी मे यात्रा होती है | लाखों श्रद्धालु  दर्शन को आते है |

Odisha’s Cultural Heritage Temple Procession Lord JagannathPuri Chariot Festival रथयात्रा

पुष्टिमार्ग मे रथयात्रा

श्री गुसाईंजी विक्रम संवत  1616 को महा शुक्लपक्ष  13 के दिन जगन्नाथपूरी पधारे | पूरी मे आपश्री  6  माह बिराजें | रथयात्रा का उत्सव आपश्री ने  वहीँ मनाया था | उसी समय भगवान जगदीश ने पुष्टिमार्ग में रथयात्रा का उत्सव आरंभ करने की आज्ञा की |

जब श्री गुंसाईजी अड़ेल पधारें | तब रासा नामक सुथार के पास रथ सिद्ध कराके | उसमें श्री नवनीतप्रिय प्रभु को पधराके रथयात्रा का उत्सव आषाढ़ सूद बीजको पुष्य नक्षत्र के समय को आरम्भ किया है |

जिन घरों मे बाल स्वरूप प्रधान है उन मंदिरों मे प्रभु के रथ घोड़े नहीं होते | प्रभू  बाल स्वरूप से बिराजमान है | बालक को अश्व से भय ना लगे उस कारण से अश्व नहीं होते |

जहा किशोर भाव प्रधान है उन मंदिरों मे काष्ठ के अश्व अवश्य धरे जाते है |

नाथद्वारा मे  श्रीजी के सन्मुख चांदी का रथ धरा जाता है | श्रीनाथजी के सिवाय अन्य सभी घरों मे राजभोग के चार यूथ के भाव से चार दर्शन होते है |

बाल भाव

बाल भाव से रथयात्रा का उत्सव है..जिसमें मैया यशोदा प्रभु को रथ मे बिराजमान करके संपूर्ण ब्रिज मे भ्रमण कराती है | और प्रभु चारो यूथ के मनोरथ पूर्ण करते है | इस भाव से रथ मे अर्श्व नहीं होते क्योंकि प्रभु बालक है तो अर्श्व से डरते हैं | इसलिए रथ प्रभु के ग्वाल सखा खींचते है |

Rathyatra pushtimarg Bal bhav seva rituals रथयात्रा

किशोर भाव

किशोर भाव से रथयात्रा का उत्सव है…
जिसमें प्रभु स्वामिनीजी के साथ रथ मे बिराजते है और दो सखी अर्श्व के भाव से रथ को साज તે है |

Rathyatra pushtimarg Kishor bhav seva rituals रथयात्रा

श्री वल्लभाचार्यजी महाप्रभुजी आसूर व्यामोह लीला 

विक्रम संवत 1587 में श्री ठाकोरजी ने श्री महाप्रभुजी को अडेल में तीसरी बार भूतल त्याग की आज्ञा दी। श्री महाप्रभुजी ने ठाकोरजी की आज्ञा को शीरोधार्य करते हुए गृहस्थाश्रम का त्याग किया और त्रिदंड संन्यास धारण किया।

मौन धारण किया। 39 दिन संन्यास के बाद 40वें दिन गंगाजी के हनुमान घाट पर श्री गुसाईजी और श्री गोपीनाथजी  महाप्रभुजी के पास आए। महाप्रभुजी मौन थे। महाप्रभुजी ने उन्हें अंतिम उपदेश के रूप में ‘सार्धत्र’ अर्थात साढ़े तीन श्लोक रेती पर लिखे। जो ‘शिक्षा श्लोकी’ के रूप में जाने जाते हैं।

यदा बहिर्मुखा यूयं भविष्यथ कथंचन।
तदा कालप्रवाहस्था देहचित्तादयोऽप्युत।।1।।
सर्वथा भक्षयिष्यन्ति युष्मानिति मतिर्मम।
न लौकिकः प्रभुः कृष्णो मनुते नैव लौकिकम् ।।2।।

तब इस समय स्वयं श्रीनाथजी प्रकट वहा पर हुए | तब श्री श्रीनाथजी को देखकर तीसरे श्लोक की रचना की।

भावस्तत्राप्य स्मदीयः सर्वस्वश्चैहिकश्च सः।
परलोकश्च तेनायं सर्वभावेन सर्वथा ।।3।।
सेव्यः स एव गोपीशो विधास्यत्यखिलं हि नः।।31/2।।

भावार्थ :

जब किसी भी प्रकार से तुम (प्रभु सिवाय अन्य विषयों में चित्त रख कर) बहिर्मुख होगे तो काल के प्रवाह में रहे हुए देह-चित्तादि भी सर्व प्रकार से तुम्हारा भक्षण कर जायेंगे, ऐसी मेरी मति है।

श्रीकृष्ण लौकिक नहीं हैं और लौकिक को मानते भी नहीं हैं। अत एव, श्रीकृष्ण विषयक ही अपना भाव (प्रेम) होना चाहिये। इहलोक और परलोक में श्रीकृष्ण ही सर्वस्व है इसलिये सर्वात्मभावपूर्वक वह गोपीश, श्रीकृष्ण ही सेव्य है।

फिर प्रभु स्वयं ने डेढ़ श्लोक कहकर श्रीआचार्यजी द्वारा उपदिष्ट शिक्षा श्लोको को पूर्ण किया| | मानो महाप्रभुजी की आज्ञा पर जैसे मुहर लगाई हो, 

मयि चेदस्ति विश्वासः श्रीगोपीजनवल्लभे ।।4।।

तदा कृतार्था यूयं हि शोचनीयं न कर्हिचित् ।

मुक्तिर्हित्वाऽन्यथा रूपं स्वरूपेण व्यवस्थिति।। 5।।

भावार्थ :

मुझ गोपीजनवल्लभ में जो विश्वास होगा तो कृतार्थ हो जाओगे; इसमें किसी भी प्रकार का शोक योग्य नहीं है। अन्यथा रूप त्याग कर के स्व स्वरूप में स्थितिं करना ही मुक्ति है।

श्रीनाथजी को दंडवत कर महाप्रभुजी खड़े हुए। धीरे-धीरे एक-एक चरण गंगाजी में पधराने लगे। गंगाजी में तरंगें उछलने लगीं। आपश्री नाभि सुधी – कटि सुधी गंगाजी की मध्य धारा में पधारे। तब एक दिव्य पुंज प्रकट हुआ।

और सूर्य मंडल तक जाकर  स्थिर हुआ। हजारों सेवकों, और अन्य व्यक्तियों ने इस लीला के दर्शन किए। उस समय विदेश से आया एक अंग्रेज लेखक भारत के विश्वविद्यालय में ज्ञान लेने आया था । भाग्यवश वह भी वहां उपस्थित था  उसने इस दिव्य लीला के दर्शन किए। उसने अपनी लिखी पुस्तक में अपनी आँखों देखे दृश्य का वर्णन करते हुए कहा, “यह संसार की महान आश्चर्यजनक घटना थी, ऐसी घटना मैंने कभी नहीं देखी थी।” यह अलौकिक लीला लगभग 3 घंटे तक निरंतर चलती रही। महाप्रभुजी स्वधाम पधारे। महाप्रभुजी ने आसुर व्यामोह लीला की। महाप्रभुजी ने अपने उस दिव्य पुंज को दंडवती शिला के पास श्री गिरिराजजी की कंदरा में पधाराया

महाप्रभुजी वल्लभाचार्य जी आसूर व्यामोह लीला | रथयात्रा
महाप्रभुजी वल्लभाचार्य जी आसूर व्यामोह लीला |रथयात्रा

रथयात्रा श्रीनाथजी दर्शन | रथयात्रा पुष्टिमार्ग सेवा क्रम 

रथयात्रा सेवा क्रम पुष्टिमार्ग

सभी द्वार में डेली मंढे,बंदरवाल बंधे।  जमनाजल की झारीजी । थाली की आरतीे। गेंद चौगान,दिवाला चाँदी के। मोती को चौखटा आवे । राजभोग समय चाँदी को रथ ,प्रभु के सनमुख आवे । आज से सेवाक्रम में कई परिवर्तन होंगे |

आज से उष्णकाल धीरे धीरे पूर्णाहुति की ओर एवं वर्षा ऋतु का आगमन होता है | आज से मल्हार के पदों का गायन प्रारंभ होगा |

शीतल जल के फव्वारे, खस के पर्दे, खस के पंखा, जल का छिड़काव, प्रभु के सम्मुख जल में रजत खिलौनों का थाल, मणिकोठा में पुष्पों पत्तियों से सुसज्जित फुलवारी आदि ऊष्णकाल के धोतक साज आज से पूर्ण हो जायेंगे |

आज से छिड़काव,खस के पंखा,जमना जल को थाल,फुवारा आदी सेवा बंद होवे । अभ्यंग ।

साज : श्रीजी में आज सफेद मलमल की सुनहरी ज़री की तुईलैस के ‘धोरे-वाली’ वाली पिछवाई धरायी जाती है | गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है |

वस्त्र : आज ही मध्याह्न समय श्री महाप्रभुजी ने गंगाजी की मध्यधारा में सदेह प्रवेश कर आसुरव्यामोह लीला कर नित्यलीला में प्रवेश किया था, जिसके स्मरण में आज के दिन श्रीजी को श्वेत वस्त्र धराये जाते हैं |

पर्वरुपी उत्सव के कारण कुल्हे जोड़ का श्रृंगार धराया जाता है | पिछोड़ा डोरिया को स्वेत,धोरा को।श्रीमस्तक पे स्वेत कूल्हे,सुनहरी किनारी की।ठाड़े वस्त्र केसरी,डोरिया के।पिछवाई स्वेत सुनहरी किनारी के धोरा की।

आभरण : सब हीरा व उष्णकाल के मिलमा।श्रृंगार बनमाला से दो आगुल उचो।आज हास, चोटी, पायल नहीं आवे।कली, वल्लभी,आदी सब माला आवे।नीचे पदक,ऊपर माला,हार आदी धरावे।श्रीमस्तक पे पाँच मोर चन्द्रिका को जोड़ आवे।वेणु वेत्र हीरा के,एक वेत्र मोती को।पट उष्णकाल को,गोटी मोती की।

कीर्तन :

मंगला – कुँवर चलो जू आगे गहबर वन 

राजभोग – गोवर्धन पर्वत ऊपर

आरती – गाय सब गोवर्धन ते आई 

शयन – सुंदर बदन री सुख सदन

मान – तेरो मन गिरधर बिन न रहेगो

पोढवे – पोढिये लाल लाडिली संग

Seva kram  courtesy: Shrinathji Temple Nathdwara Management | 

राग बिलावल

तुम देखो सखीरी आज नयन भर हरिजूके रथ की शोभा ॥ योग यज्ञ जप तप तीरथ व्रत कीजियतहे जिहि लोभा ॥१ ॥
चारुचक्रमणि खचित मनोहर चंचल चमर पताका ॥ श्वेत छत्र जनुशशि प्राचीदिश उदितभयो निशि राका ॥२ ॥
श्यामशरीर सुदेश पीतपट शीश मुकुट ओर माला ॥ मानोदामिनी घन रवि तारा गण उदित एकही काला ॥ ३ ॥
उपजत छबि कर अधर शंखध्वनि सुनीयत शब्द प्रशंसा ॥ मानहुं अरुण कमल मन्डल में कूजतहें कलहंसा ।। ४ ।।
आनंदित पितुभ्रात जननी सब कृष्ण मिलन जीय भावे ॥ सूरदास गोकुलके बासी प्राणनाथ वरपावे ॥५ ॥

राग मल्हार

जसोदा रथ देखन कों आई ॥ देखोरी मेरोलाल गिरेगो कहाकरों मेरीमाई ॥१ ॥
मेरो ढोटा पालने सोवे उंधरक उधरक रोवे ।। अघासुर बकासुर मारे नेन निरंतर जोवे ॥२ ॥
देहरी उलंघन गिर्योरी मोहन सोई घात में जानी ॥ परमानंद होऊ तहां ठाडे कहत नंदजुकी रानी ॥३ ॥

राग मल्हार

रथचढ चलत यशोदा आंगन ॥ विविध शृंगार सकल अंग शोभित मोहत कोटि अनंगन ॥१ ॥
बालक लीला भाव जनावत किलक हँसत नंदनंदन ॥ गरें बिराजत हार कुसुमनके चर्चित चोवाचंदन ||२ ||
अपने अपने गृह पधरावत सब मिलि व्रजयुवती जन || हर्षित अति अर्पत सब सर्वस्व वारतहें तन मन धन || ३ ||
सब व्रजदे सुख आवत घर कों करत आरती ततछन || रसिकदास हरि की यह लीला वसो हमारे ही मन ॥ ४ ॥

रथ में से उतरने के पद

राग मल्हार

लालमाई खरेई बिराजत आज ।। रत्न खचित रथ ऊपर बैठे नवल नवल सबसाज ॥१॥
सूथन लाल काछनी शोभित उरवैजयंती माल ॥ माथें मुकुट ओढें पीतांबर अंबुज नयन विशाल || २ ||
श्यामअंग आभूषण पहरें झलकत लोल कपोल ।। बारबार चितवत सबही तन बोलत मीठे बोल ॥ ३ ॥
यह छबि निरख निरख व्रजसुंद‌र लोचन भरभर लेहो ।। फिर फिर झांकझांक मुख देखो रोमरोम सुखपेहो ॥४ ।।
उतरलाल मंदिरमें आये मुरली मधुर बजाय ॥ निरख निरख फूलत नंदरानी मुख चुंबत ढिंगआय ॥५ ॥
अति शोभित करलियें आरती करत सिहाय सिहाय ।। श्रीविद्वल गिरिधरनलाल पर वारत नाहिं अघाय ।।६ ।।