गंगा दशमी – यमूनाजी को उत्सव
गंगा दशमी उत्सव का पुष्टिमार्गीय महत्व, श्रीनाथजी सेवा क्रम , उत्सव के पद , गंगा दशेरा श्रीनाथजी दर्शन |
गोलोक धाम मे स्वामीनिजी श्री राधाजी के मनोरथ से श्री ठाकोरजी के हृदय से एक रस प्रवाह का निर्माण होता है | वह रस प्रवाह का घनीभूत स्वरूप श्री गिरीराजजी और वही रस प्रवाह का द्रवीभूत स्वरूप श्याम सुंदर श्री यमुनाजी | श्री यमुनाजी ठाकोरजी के चतुर्थप्रिया है |
जब ठाकोरजी का भूतल पर अवतार लेने की घड़ी आ रही थी तब सर्व प्रथम श्री यमुनाजी भूतल पर पधारी | अपने दैवी जीवों को ठाकोरजी के शरण मे लेने हेतु यमुनाजी स्वयं सर्व प्रथम पधारी | और जब श्री यमुनाजी भूतल पर पधार रही थी तब उनके साथ श्री गंगाजी भी भूतल पर पधारने वाली थी |
प्रभु के हृदय से यमुनाजी और चरणारविंद से श्री गंगाजी दोनों साथ साथ भूतल पर पधारी |

श्री गंगाजी का भूतल पर अवतरण हुआ और अपनी दशों इंद्रिय पर आधिपत्य स्थापित करके उनकी प्रभु प्राप्ति की आकांक्षा श्री यमुनाजी के कारण पूर्ण हुई | इसी कारण से आज के उत्सव को गंगा दशहरा भी कहा जाता है |
नाव मनोरथ
गंगाजी और यमुनाजी के भाव से आज के दिवस कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों मे जल भरा जाता है | और प्रभु के सुखार्थ नाव मनोरथ का आयोजन होता है |
अलौकिक मिलन
श्री ठाकुरजी के चार यूथ के स्वामीनिजी के साथ अलौकिक मिलन
श्री ठाकुरजी के,
प्रथम यूथ के स्वामीनिजी श्री राधाजी से अलौकिक मिलन : देव प्रबोधिनी एकादशी
द्वितीय यूथ के स्वामीनिजी श्री चंद्रावलीजी से अलौकिक मिलन : द्वितीया पाट मना जाता है
तृतीया यूथ के स्वामीनिजी श्री अग्नि कुमारिका से अलौकिक मिलन : अक्षय तृतीया
चतुर्थ यूथ के स्वामीनिजी श्री यमुनाजी से अलौकिक मिलन : गंगा दशेरा