रूप चतुर्दशी (अभ्यंग), दीपावली (दीपोत्सव) हटड़ी (गोकर्ण जागरणम्) कान जगाई। दीपोत्सव
यह दिवारी वरस दिवारी, तुमको नित्य नित्य आवो ।
नंदराय और जसोदारानी, अति सुख पूजही पावो ।।१।।
पहले न्हाय तिलक गोरोचन,देव पितर पूजवो ।
श्रीविट्ठलगिरिधरन संग ले गोधन पूजन आवो ।।२।।
श्रीजी को नियम के लाल सलीदार ज़री की सूथन, फूलक शाही श्वेत ज़री की चोली, चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ज़री की कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धरायी जाती है.
आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में दीवला व दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में केसरयुक्त पेठा, मीठी सेव आदि अरोगाये जाते हैं.
भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी के सूखे मेवे अरोगाये जाते हैं.
आरती समय अरोगाये जाने वाले ठोड के स्थान पर गेहूँ के पाटिया के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
गुड़ के गुंजा पुआ सुहारी, गोधन पूजत व्रज की नारी ll 1 ll
घर घर गोमय प्रतिमा धारी, बाजत रुचिर पखावज थारी ll 2 ll
गोद लीयें मंगल गुन गावत, कमल नयन कों पाय लगावत ll 3 ll
हरद दधि रोचनके टीके, यह व्रज सुरपुर लागत फीके ll 4 ll
राती पीरी गाय श्रृंगारी, बोलत ग्वाल दे दे करतारी ll 5 ll
‘हरिदास’ प्रभु कुंजबिहारी मानत सुख त्यौहार दीवारी ll 6 ll
साज – आज श्रीजी में नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी महाराज (द्वितीय) कृत जड़ाव की, श्याम आधारवस्त्र पर कूंडों में वृक्षावली एवं पुष्प लताओं के मोती के सुन्दर ज़रदोज़ी के काम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया जडाऊ एवं चरणचौकी पर लाल रंग की मखमल की बिछावट की जाती है.
वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री का सूथन, फूलक शाही श्वेत ज़री के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) तीन जोड़ी (माणक, हीरा-माणक व पन्ना) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरे, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर फूलकशाही श्वेत ज़री की जडाव की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तथा पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर माणक की चोटी (शिखा) धरायी जाती है.
पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे का जड़ाव का चौखटा धराया जाता है.
श्रीकंठ में बघनखा धराया जाता है. गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
आरसी जड़ाऊ की आती हैं.
कान जगाई
श्री नवनीतप्रियाजी में सायं कानजगाई के व शयन समय रतनचौक में हटड़ी के दर्शन होते हैं.
कानजगाई – संध्या समय गौशाला से इतनी गायें लायी जाती है कि गोवर्धन पूजा का चौक भर जाए. गायें मोरपंख, गले में घंटियों और पैरों में घुंघरूओं से सुशोभित व श्रृंगारित होती हैं. उनके पीठ पर मेहंदी कुंकुम के छापे व सुन्दर आकृतियाँ बनी होती है.
ग्वाल-बाल भी सुन्दर वस्त्रों में गायों को रिझाते, खेलाते हैं. गायें उनके पीछे दौड़ती हैं जिससे प्रभुभक्त, नगरवासी और वैष्णव आनन्द लेते हैं.
गौधूली वेला में शयन समय कानजगाई होती है. श्री नवनीतप्रियाजी के मंदिर से लेकर सूरजपोल की सभी सीढियों तक विभिन्न रंगों की चलनियों से रंगोली छांटी जाती है.
श्री नवनीतप्रियाजी शयन भोग आरोग कर चांदी की खुली सुखपाल में विराजित हो कीर्तन की मधुर स्वरलहरियों के मध्य गोवर्धन पूजा के चौक में सूरजपोल की सीढ़ियों पर एक चौकी पर बिराजते हैं.
प्रभु को विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध केशर मिश्रित दूध की चपटिया (मटकी) का अरोगायी जाती है.
कानजगाई के दौरान प्रभु को शिरारहित पान की बीड़ी अरोगाते हैं.
श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के कीर्तनिया कीर्तन करते हैं व झालर, घंटा बजाये जाते हैं.
पूज्य श्री तिलकायत महाराज गायों का पूजन कर, तिलक-अक्षत कर लड्डू का प्रशाद खिलाते हैं. गौशाला के बड़े ग्वाल को भी प्रशाद दिया जाता है.
तत्पश्चात पूज्य श्री तिलकायत नंदवंश की मुख्य गाय को आमंत्रण देते हुए कान में कहते हैं – “कल प्रातः गोवर्धन पूजन के समय गोवर्धन को गूंदने को जल्दी पधारना.” गायों के कान में आमंत्रण देने की इस रीती को कानजगाई कहा जाता है.
प्रभु स्वयं गायों को आमंत्रण देते हैं ऐसा भाव है. इसके अलावा कानजगाई का
एक और विशिष्ट भाव है कि गाय के कान में इंद्र का वास होता है और प्रभु कानजगाई के द्वारा उनको कहते हैं कि – “हम श्री गिरिराजजी को कल अन्नकूट अरोगायेंगे, तुम जो चाहे कर लेना.” सभी पुष्टिमार्गीय मंदिरों में अन्नकूट के एक दिन पूर्व गायों की कानजगाई की जाती है.
सारस्वतकल्प में श्री ठाकुरजी ने जब श्री गिरिराजजी को अन्नकूट अरोगाया तब भी इसी प्रकार कानजगाई की थी.
श्री ठाकुरजी, नंदरायजी एवं सभी ग्वाल-बाल अपनी गायों को श्रृंगारित कर श्री गिरिराजजी के सम्मुख ले आये. श्रीनंदनंदन की आज्ञानुसार श्री गिरिराजजी को दूध की चपटिया (मटकी) का भोग रखा गया और बीड़ा अरोगाये गये.
श्री गर्गाचार्यजी ने नंदबाबा से गायों का पूजन कराया था. तब श्री ठाकुरजी और नंदबाबा ने एक-एक गाय के कान में अगले दिन गोवर्धन पूजन हेतु पधारने को आमंत्रण दिया.
श्रीजी के शयन के दर्शन बाहर नहीं खुलते.
शयन समय श्री नवनीतप्रियाजी रतनचौक में हटड़ी में विराजित हो दर्शन देते हैं.
हटड़ी में विराजने का भाव कुछ इस प्रकार है कि नंदनंदन प्रभु बालक रूप में अपने पिता श्री नंदरायजी के संग हटड़ी (हाट अथवा वस्तु विक्रय की दुकान) में बिराजते हैं और तेजाना, विविध सूखे मेवा व मिठाई के खिलौना आदि विक्रय कर उससे एकत्र धनराशी से अगले दिन श्री गिरिराजजी को अन्नकूट का भोग अरोगाते हैं.
रात्रि लगभग 8.30 बजे तक दर्शन खुले रहते हैं और दर्शन उपरांत श्री नवनीतप्रियाजी श्रीजी में पधारकर संग विराजते हैं.
श्री गुसांईजी, उनके सभी सात लालजी, व तत्कालीन परचारक महाराज काका वल्लभजी के भाव से 9 आरती होती है.
श्री गुसांईजी व श्री गिरधरजी की आरती स्वयं श्री तिलकायत महाराज करते हैं.
अन्य गृहों के बालक यदि उपस्थित हों तो वे श्री तिलकायत से आज्ञा लेकर सम्बंधित गृह की आरती करते हैं और अन्य की उपस्थिति न होने पर स्वयं तिलकायत महाराज आरती करते हैं.
काका वल्लभजी की आरती श्रीजी के वर्तमान परचारक महाराज गौस्वामी चिरंजीवी श्री विशालबावा करते हैं.
आज श्रीजी में शयन पश्चात पोढावे के व मान के पद नहीं गाये जाते.
दिवाली की रात्रि शयन उपरांत श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी प्रभु लीलात्मक भाव से गोपसखाओं, श्री स्वामिनीजी, सखीजनों सहित अरस-परस बैठ चौपड़ खेलते हैं.
अखण्ड दीप जलते हैं, चौपड़ खेलने की अति आकर्षक, सुन्दर भावात्मक साज-सज्जा की जाती है.
दीप इस प्रकार जलाये जाते हैं कि प्रभु के श्रीमुख पर उनकी चकाचौंध नहीं पड़े. इस भावात्मक साज-सज्जा को मंगला के पूर्व बड़ाकर (हटा) लिया जाता है.
इसी भाव से दिवाली की रात्रि प्रभु के श्रृंगार बड़े नहीं किये जाते और रात्रि अनोसर भी हल्के श्रृंगार सहित ही होते हैं.
कान जगाई
“गोवर्धन पूजन के समय गोवर्धन को गूंदने को जल्दी आना” का निमंत्रण लेकर प्रस्थान करती हुई गायें | Source : Source : Shrinathji Temple Management
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