वामन द्वादशी
मंगला दर्शन के पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है | वामन जयंती के अवसर पर नाथद्वारा मे दो राजभोग दर्शन होते है |
प्रथम राजभोग दर्शन में लगभग बारह बजे के आसपास अभिजित नक्षत्र में श्रीजी के साथ विराजित श्री सालिग्रामजी को पंचामृत स्नान कराया जाता है | एवं दर्शन के उपरांत उनको अभ्यंग, तिलक-अक्षत किया जाता है | और श्रीजी के समक्ष उत्सव भोग रखे जाते हैं |
कई बार एकादशी का क्षय होकर वामन द्वादशी होती है | जभी भी यह अवसर आए तब एकादशी के स्थान पर वामन द्वादशी आए तब वैसे तो दान एकादशी पर प्रभु को अभ्यंग स्नान नहीं होता | परंतु एकादशी का क्षय होने वामन द्वादशी पर अभ्यंग स्नान का क्रम , दो राजभोग का क्रम , शालिग्राम जी का पंचामृत क्रम आज ही के दिन किया जाता है |
परंतु उस अवसर मे शृंगार क्रम दान एकादशी का होता है | और अगले दिन माने त्रयोदशी के दिन वामन जयंती के शृंगार का क्रम निर्धारित है |
।। वामन द्वादसी के श्रृंगार।।
साज : – श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली (जन्माष्टमी वाली) पिछवाई धरायी जाती है | गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है |
वस्त्र :- धोती,पटका, कूल्हे केसरी मलमल के।पटका गाती को धरावे।ठाड़े वस्त्र स्वेत मलमल के।पिछवाई लाल सुनहरी किनारी की,जन्माष्टमी वाली।
आभरण:- सब नित्य के हीरा के।मध्य के श्रृंगार।कली, कस्तूरी आदी सब माला आवे।श्रीमस्तक पे तीन चन्द्रिका को जोड़ धरावे।वेणु वेत्र हीरा के,एक सोना को।पट उत्सव को,गोटी सोना की ।आरसी पीले खंड की।
अन्य सब नित्य क्रम।
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वामन जयंती के पद
राग सारंग
बलिराजा कौ समर्पन सांचौ ॥
बहुत कह्यौ गुरु शुक्र देवता मनदृढ आप नहिं काँचौ ॥१॥
यज्ञ करत है जाकै कारन सो प्रभु आपुहि जाँच्यौ |
परमानंद प्रभु प्रसन्न भये हरि जो जनकों जानत हैं साँच्यौ ॥२॥
अहो बलि द्वारे ठाडे वामन ।
चार्यो वेद पढत मुखपाठी अति सुमंद स्वर गावन ।।१।।
बानी सुनी बलि बुझन आये अहो देव कह्यो आवन ।
तीन पेंड वसुधा हम मागे परनकुटि एक छावन ।।२।।
अहो अहो विप्र कहा तुम माग्यो अनेक रत्न देहु गामन ।
परमानंद प्रभु चरन बढायो लाग्यो पीठन पावन ।।३।।