रक्षाबंधनं – प्रातः शृंगार मे |
प्रभु श्रीनाथजी को पवित्रा की भांति ही रक्षा (राखी) भी शुभमुहूर्त से धराई जाती है | कभी प्रातः काल श्रृंगार दर्शन में और कभी उत्थापन दर्शन में धरायी जाती है | पुष्टिमार्ग में सूर्योदय के समय की तिथि से त्यौहार मनाया जाता है | व भद्रा रहित काल में श्री ठाकुरजी को रक्षा धरायी जाती है |
सभी वैष्णव अपने सेव्य ठाकुरजी को शृंगार दर्शन के पश्चात रक्षा (राखी) धरा सकते हैं | एवं टिप्पणी मे अन्यथा आप हमारे तिथि पत्र मे उत्सव के दिन तिथि पर टच करके मुहूर्त समय जान शकते है | वह मुहूर्त अनुसार प्रभु को राखी धरी जाती है |
सभी वैष्णव प्रभु को शृंगार मे सेव्य ठाकुरजी को रक्षा सूत्र (राखी) धरने के पश्चात अपनी बहनों से राखी बंधाते है |
सेवा क्रम :
सभी द्वार में हल्दी से डेली मंढे,बंदरवाल बंधे।सभी समय जमना जल की झारीजी आवे।चारो समय थाली की आरती उतरे। अभ्यंग। आज से नवमी तक आगे की सफेदी नहीं चढ़े।तकिया लाल मखमल के।
साज :- श्रीजी में आज लाल रंग की मलमल पर रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है | गादी के ऊपर सफेद और तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है | तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है | पीठिका और पिछवाई के ऊपर रेशम के रंग-बिरंगे पवित्रा धराये जाते है |
वस्त्र:- पिछोड़ा लाल,रूपहरी पठानी किनारी को।श्रीमस्तक पे छज्जेदार पाग,चिल्ला वाली।ठाड़े वस्त्र पिले।पिछवाई वस्त्र जैसी लाल।
आभरण:- सब उत्सव के,हीरा की प्रधानता।मध्य से दो आगुल उचो श्रृंगार।हीरा, पन्ना,मानक मोती के हार,माला,दुलड़ा धरावे। श्रीकर्ण में कर्ण फूल दो जोड़ी।कली की माला आवे।श्रीमस्तक पे मोर चन्द्रिका आवे।वेणु वेत्र तीनो हीरा के।पट उत्सव को,गोटी जड़ाऊ।आरसी चार झाड़ की।
राखी धरावे।झालर,घंटा,शंख बजे।प्रभु के तिलक अक्षत करके राखी धरावे।फिर सभी स्वरूप के राखी धरावे।
विशेष:- दुधघर की हाँड़ी,गुलपापड़ी,कतला, कच्चर,चालनी आवे।गोपिवल्लभ में जलेबी।फीका में चालनी,केसरी पेठा,मीठी सेवादी।
सायं कांच के हिंडोलाना में झूले।
अनोसर में अत्तर दान,मिठाई को थाल,चोपड़ा,चार बीड़ा,आरसी आदी आवे।
मंगला – सोहेलरा नंद महर घर आज
राजभोग – ऐ री ऐ आज नंदराय
हिंडोरा – सावन की पून्यो मन भवन, सुघर रावरे की गोप कुँवर, मन मोहन रंग बोरे झूलन आइ , रशे ज़ू झुलत रमक-झमक शयन – श्रावण सुन सजनी बाजे मंदिलरा
मान – गृह आवत गोपीजन
राखी धरावे- बहन सुभद्रा राखी बाँधत
रक्षा बंधन के पद :
राग : वृंदावनी सारंग
बहेन सुभद्रा राखी बांधत बल अरु श्री गोपाल के।
कनकथार अक्षतभर कुंकुंम तिलक करत नंदलाल के।।१।।
आरती करत देत न्योछावर वारत मुक्ता मालके।
आसकरण प्रभु मोहन नागर प्रेम पुंज व्रजलालके ।।२।।
राग : सारंग
राखी बांधत यशोदा मैया ॥
बहु शृंगार सजे आभूषण गिरिधर भैया ॥१ ॥
रत्नखचित राखी बांधि कर पुनपुन त बलैया ॥
सकल भोग आगें धर राखे तनकजु लेहु कन्हैया ॥२ ॥
यह छबि देख मग्न नंदरानी निरख निरख सचुपैया ॥
जीयो यशोदा पूत तिहारो परमानंद बलजैया ॥ ३ ॥