रूप चतुर्दशी
रूप चतुर्दशी पुष्टिमार्ग महत्व, नरक चतुर्दशी कथा, रूप चौदस अभ्यंग स्नान, काली चौदस श्री कृष्ण कथा, श्रीनाथजी सेवा क्रम, रूप चतुर्दशी के पद की जानकारी | यह उत्सव देश के विवध विस्तार मे अलग अलग नाम से मनाया जाता है |
तिथि : अश्विन कृष्णपक्ष 14
- रूप चतुर्दशी
- नरक चतुर्दशी,
- काली चौदस,
- छोटी दीपावली
नामों से पहचाना जाता है |
श्री कृष्ण द्वारिका लीला कथा :
भुदेवी और वराह भगवान के पुत्र भोमासूर (नरकासुर) समग्र पृथ्वी के सभी जगह से कीमती मानेक, हीरा, धन संपत्ति युद्ध मे विजय होते होते प्राप्त कर ली थी | इस तरह वह समग्र पृथ्वी का राजा बन गया था |
उस ने देवता को भी हराकर माता अदितिकी कानों की बाली ले ली थी | उसने 16100 कुवारी कन्याओ का अपहरण कर लिया था | उसको वर प्राप्त था की उसका अंत केवल वह ही कर शकते है जिन्होंने उन्हे जन्म दिया है | इस कारण से भगवान श्री कृष्ण गरुडजी के ऊपर सवार हो कर उनके अंत करने गए | उनकी रानी श्री सत्यभामा जी उनके साथ गई | श्री कृष्ण का भीषण युद्ध हुआ असुर के साथ | फिर नरकासुर के अस्त्र से श्री कृष्ण ने मूर्छित होने का स्वांग किया | तब रानी सत्यभामा ने युद्ध का नेतृत्व किया | वह काफी भारी पड़ी असुर पर | क्योंकि रानी सत्यभामा स्वयं श्री भुदेवी का अवतार है |
तब बली राजा ने एक वर यह मांगा की अश्विन कृष्णपक्ष चतुर्दशी से कार्तिक शुक्लपक्ष एकम , तीन दिवस उनकी प्रजा पर सासन करने दिया जाए | प्रभु ने उनको वर दिया |
तब से इन तीन दिनों मे शास्त्रोक्त विधि से स्नान करने से रोग से मुक्ति मिलती है | नरक यातना से मुक्ति मिलती है | इसी लिए इस दिवस को नरक चतुर्दशी कहा जाता है | इस दिवस स्नान करने संपत्ति प्राप्त होती है |
श्री कृष्ण व्रज लीला
आज के स्नान के महत्व के कारण यशोदा मैया अपने लाल को जल्दी जगाती है | फिर मंगल भोग पश्चात यशोदाजी अपने लाल को केसर , अभ्यंग से अच्छे से शास्त्रोक्त रीत अनुसार स्नान कराती है | जिनसे प्रभु का रूप और निखर कर आता है | जिस कारण से आज के पर्व को रूप चतुर्दशी कहते है | फिर प्रभु को शृंगार धराती है | तद पश्चात प्रभु गायों के शृंगार के लिए पधारते है |
राग : देवगंधार
न्हावावत सुतकों नंदरानी ।
मानत पर्व रूपचौदस को, तिलक उबटनो कर हरखानी ।। 1 ।।
वस्त्र लाल जरी आभूषण, पहरावत रुचिसों मनमानी ।
मेवा ले चले गाय सिंगारन, व्रजजन देखदेख विहंसानी ।। 2 ।।
श्रीनाथजी दर्शन
धन तेरस से देव प्रबोधिनी एकादशी के सभी उत्सव के पद, (धन तेरस के पद, रूप चतुर्दशी के पद, दीपावली के पद, दीपमालिका के पद, हटरी के पद, कान जगाई के पद, अन्नकूट के पद, गोवर्धन पूजन के पद, भाई दूज के पद, गोपाष्टमी के पद, देव प्रबोधिनी एकादशी के पद) नीचे उपलब्ध ई-बुक मे प्राप्य है |
यह ई-बुक आप हमारे पध्य साहित्य शेकशन मे से भी प्राप्त कर शकते है |