कुंज एकादशी

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आज से भारी खेल आरंभ होंगे | डोल के पद आरंभ होंगे |

तिथि : फाल्गुन शुक्लपक्ष एकादशी

कुंजन मे होरी :

कुंज का एक अर्थ यह है की एसा छोटा सा स्थान जो सभी ओर से लता पता से घिरा हुआ हो | अन्यथा एक – दो वृक्ष के बीच के स्थान जहा टहेनियों , शाखाओ से घिरा हुआ  छोटा सा स्थान | अंदर का स्थान घास से आच्छादित कोमल स्थान जहा छोटा सा समूह अंदर जा शके | वैसे अलग अलग प्रकार की कुंज होती है | परंतु उन्मे से एक प्रकार यह है |

होरी खेल के 40 दिनों मे प्रभु होरी खेल का  आरंभ नंदालय से हो कर फिर गोकुल बरसाना की गलियों मे, फिर यमुना तट, गिरीराजजी की तलेटी बाद मे बगीचे मे होरी खेलते है | फिर आज से प्रभु की कुंज लीला आरंभ होती है | आज से प्रभु परिकर सह कुंज मे होरी खेलने पधारते है |

चारों यूथ की स्वामीनिजी की सेवा आरंभ होती है | गोपिजन वन – उपवन मे कुंज का निर्माण करते है | फिर युगल सरकार को पधराकर होरी खेल होता है | भारी खेल आरंभ होता है | इस कारण से इस उत्सव को कुंज एकादशी कहते है |

कुंज एकादशी होली खेल व्रज

श्रीनाथजी दर्शन – कुंज एकादशी

कुंज एकादशी होली खेल व्रज
कुंज एकादशी होली खेल व्रज

डेल्ही मंढे,बंदरवाल बंधे।जमनाजल की झारीजी आवे।थाली की आरती ।गद्दल,रजाई हरे साटन के।

वस्त्र:- छोटी काछनी,सुथन,गाती को पटका ये सब केसरी चोखाना के,रूपहरी किनारी के।बड़ी काछनी,चोली चोवा की,सुनहरी किनारी की।ठाड़े वस्त्र स्वेत लट्ठा के।पिछवाईश्रृंगार में कुञ्ज के भाव की,राजभोग में स्वेत मलमल की।

आभरण:- सब फागुन के।मीना मोती सोना के मिलमा आवे।बनमाला को श्रृंगार।श्रीकर्णमें मयूराकृत कुंडल आवे।श्रृंगार में मीना को मुकुट व राजभोग में फूल को धरावे।वेणु वेत्र सोना के बटदार।आरसी बड़ी डंडी की।

राजभोग में कुञ्ज बंधे।मुकुट बदले।नवनीतप्रियाजी श्रीजी के गोद में बिराजे।खेल भारी होव।दाढ़ी पे पांच बिंदी लगे।पोटली से गुलाल उड़े।पिछवाई गुलाल से पूरी रंगे, अबीर से चिड़िया मंढे।चार बीड़ा की सिकोरी आवे।सभी समय एक एक माला आवे।

आरती में मुकुट नयो आवे।एक वेत्र श्रीहस्त में ठाडो धरावे।वेणुजी फेट में धरावे।

आरती पीछे आभरण,दोनों काछनी,मुकुट,टोपी,पटका बड़ो करनो।चोवा को घेरदार ,गोल पाग,लाल तनी धरावे।छेड़ान के श्रृंगार होवे।लूम तुर्रा सुनहरी।

आज से प्रभु के समक्ष गुसाइजी की अष्टपदी के स्थान पर डोल के पद गाए जाएंगे |

मंगला – रविजा तट कुंजन में गिरधर 

राजभोग – ते लालन को मन हर्यो, 

            – डोल मदन गोपाल अद्भुत डोल बनी, 

            – डोल झुलत हैं पिय लाल बिहारी 

आरती   – हो हो होरी बेन मध गावे श्याम 

शयन – डोल चंदन को झुलत हलधरबीर

Seva Kram courtesy: Shrinathji Temple Nathdwara Management | 

वसंत पंचमी के पद, होरी डंडा रोपण के पद, कुंज एकादशी के पद, गुसाइजी की अष्टपदी, डोल के पद, होली खेल के 40 दिवस दरमियान नित्य सेवा के पद नीचे दी गई ई-बुक मे है |

Vasant Nitya Seva Kirtan

जो हमारे पध्य साहित्य शेकशन मे उपलब्ध है |