कसुंबा छठ

कसुंबा छठ पुष्टिमार्ग वार्ता प्रसंग , श्रीनाथजी सेवा क्रम , कसुंबा छठ के पद , गुसाइजी से जुड़ा अद्भुत प्रसंग , महातम्य दर्शन | आज श्री वल्लभाचार्यजी के लौकिक पितृचरण श्री लक्ष्मणभट्ट जी का प्राक्टयोत्सव है |

तिथि : अषाढ़ शुक्लपक्ष षष्ठी

कसुंबा छठ पुष्टिमार्ग श्रीनाथजी सेवा क्रम

Kasumba Chath pushtimarg Shrinathji darshan , Kashumba Chhath Pushtimarg Shreenathji Darshan utsav

आज भक्त ईच्छापूरक प्रभु श्रीनाथजी ने श्री गुसाईजी को विप्रयोगानुभव से मुक्त कर, दर्शन दे कर उनकी सेवा को पुनः अंगीकार किया था | अतः अनुराग स्वरुप लाल (कसुम्भल) रंग के वस्त्र धराये जाते हैं |

साज – श्रीजी में आज अपनी गर्दन ऊँची कर कूकते, वर्षाऋतु के आगमन की बधाई देते मयूरों के सुन्दर क़सीदा वाली पिछवाई धरायी जाती है | गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है |

वस्त्र – श्रीजी को आज पठानी किनारी से सुसज्जित कसुम्भल (लाल) मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है | ठाड़े वस्त्र सफेद भांतवार होते हैं |

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है |
सर्व आभरण मोती के धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर कसुमल(लाल) मलमल की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं |
श्रीकर्ण में मोती के दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं |
कली, वल्लभी आदि सभी माला आती हैं |
आज हांस, त्रवल आदि नहीं धराये जाते, वहीं जड़ाऊ थेगड़ा की बघ्घी धरायी जाती है |
श्वेत पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर श्वेत पुष्पों की थागवाली मालाजी धरायी जाती है |
श्रीहस्त में कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं |
पट श्वेत (सुनहरी किनारी का), गोटी मोती की व आरसी श्रृंगार में लाल मखमल की एवं राजभोग में सोना की डांडी की आती है |

Source : Shrinathji Nitya Darshan Facebook Page

राग मल्हार

लाल माई बाधें कसुंभी पाग ॥
कसुंभी छड़ी हाथमें लीयें भीज रहे अनुराग ॥१ ॥
कसूं भोई कटि बन्योहे पिछोरा कसुंभी उपरेना ॥
कसुंभी बात कहत राधासों कसूंभे बने दोऊ नयना ॥२ ।।
हरित भूमि यमुना तट ठाडे गावत राग मल्हार ||
श्रीविठ्ठल गिरिधरन छबीलो श्याम घटा अनुहार ॥

राग मल्हार

लाल हि लालके लाल हि लोचन लाल हिके मुख लाल हि बीरा।
लाल पिछोरा बन्यो अति सुन्दर लाल बैठे जमुना तट तीरा ॥१ ॥
लाल हि पाग सोहे अति सुन्दर लाल ही साज मनोहर धीरा।
‘गोविन्द’ प्रभुकी लीला निरखत लालके कंठ विराजत हीरा ॥२ ॥

राग : सोरठ मल्हार

सब सखी कसुंबा छठही मनावो ।
अपने अपने भवन भवनमें लालही लाल बनावो ॥ १ ॥
बिविध सुगंध उबटनों लेकें लालन उबट न्हवावो ॥
उपरना लाल कसुंबी कुल्हे आभूषन लाल धरावो ॥ २ ॥
यदि छबि निरख निरख व्रज सुन्दरि मन मन मोद बढावे |
लाल लकुटी कर मुरली बजावे रसिक सदा गुन गावे ॥ ३ ॥

राग : गौड़ मल्हार

पहेरें सुभग अंग कसुंभी सारी सुरंग भूमि हरियारी तामें चन्द वधू सोहे ॥
हरिके संग ठाडी कंचुकी उतंग गाढी बाल मृगलोचनी देखत मन मोहे ॥ १ ॥
तेसीये पावस ऋतु तेसेई उनये मेघ तेसीये बानिक बनी उपमाकों कोहे ॥
कुंभनदास स्वामिनी विचित्र राधिका भामिनी गिरिधर पिय मुख इकटक जोहे ॥ २ ॥

कसुंबा छठ से जुड़ा श्री गुसाइजी और श्रीजी के विरह का प्रसंग 

एक समय नित्यलीला मे प्रभुने ललिता सखी को वचन दिया की आज हम आपकी निकुंज मे पधारेंगे | ललिता सखी उत्साह पूर्वक संपूर्ण तैयारी से सूसज्जित हुई | प्रभु ललिता सखी के पास  जाने के लिए पधारे तब बीचमे चंद्रावलीजी की निकुंज आई | और चंद्रावलीजी ने प्रेम पूर्वक प्रभु को निमंत्रण दिया |

Kasumba Chhath pushtimarg varta prasang

प्रभु भूल गए की उनको ललिताजी के पास जाना है | और चंद्रावलीजी की निकुंज मे पधारे | वहा छे माह (भूतल समय) तक बिराजे| जब ललिताजीको ज्ञात हुआ तब वह उदास हुई | स्वामीनिजी को ज्ञात हो गया |तब स्वामीनिजी अपनी सखी को साथ ले कर प्रभु के पास पधारे |

प्रभु को सब  ज्ञात हो गया | स्वामीनिजी ने कहा की आपने मेरी सखी को छे माह का विरह दिया है | अब आप छे मास तक ललिताजी के कहने मे रहेंगे | और जिसने आपको ललिताजी से दूर रखा है उनको छे माह तक आपका वियोग करना पड़ेगा |

जब कलियुग मे प्रभु श्रीनाथजी रूप मे पधारे, स्वामीनिजी ; महाप्रभुजी के रूप मे पधारे, चंद्रावलीजी- गुसाईजीके रूप मे पधारे तब ललिताजी एक अंश रूप से अष्टछाप कवि कृष्णदास अधिकारीजी के रूप मे पधारे |

भूतल पर प्रसंग

एक समय श्रीनाथजी ने राजभोग के पश्चात रामदासजी से कहा मे भूखा हु| रामदासजी ने गुसाइजी को बताया | गुसाईजिकों ज्ञात हो गया की नित्यलीला का वह अधूरा  कार्य अब पूर्ण करने का समय नजदीक है |

इसलिए जितनी सेवा मिले उतनी कर ले फिर सेवा प्राप्त होना कठिन  है | गुसाईजीने बड़ीभात की सामग्री अपरस मे सिद्ध करके प्रभु को धरी | फिर ठाकोरजी के आरोगने के पश्चात गुसाईजीने स्वयं प्रसाद कणिका  ग्रहण कि |

और रंचक सभी  वैष्णवों को दिया | तब सब ने प्रसाद को आनंद से लिया तब कृष्णदासजी वहा आए | वह अधिकारी थे फिर भी वह  प्रसंग से अवगत नहीं थे |कृष्णदासजी ने व्यंग मे कहा “आप ही करने वाले और आपही भोगने वाले ! तो स्वाद क्यों न आवे ” |

तब श्री गुसाईजी ने कहा “हा हम हमारा किया हम ही भुगत रहे है” (व्यंग)(जो इस  प्रसंग से भी जुड़ा है और जो नित्यलीला प्रसंग से भी जुड़ा है) | {कृष्णदासजी को भी पूर्व मे श्रीजीबावा ने आज्ञा की थी की “आप के द्वारा एक दिव्य कार्य का निर्माण होना है | उसमे आपका लौकीक और अलौकिक दोनों बिगड़ सकता है | क्या आप करेंगे” |

तब कृष्णदासजी ने प्रभु की आज्ञा पालन और आपके सुख के लिए कुछ भी करने की तत्परता मे आज्ञा मानी } और कृष्णदासजी ने अधिकारी के दौर पर श्री गुसाईजी को श्रीनाथजी के दर्शन और सेवा बंध कराई |

और श्री महाप्रभुजी के प्रथम पुत्र श्री गोपिनाथजी के पुत्र श्री पुरूषोंत्तमजी  को श्रीजीबावा की सेवा सोपी | 

श्री पुरुषोत्तम जी | श्री महाप्रभुजी के ज्येष्ठ पुत्र श्री गोपिनाथजी के पुत्र | कसुंबा छठ वार्ता

श्री गुसाईजीको नित्य श्रीजीबावा का संयोग प्राप्त था इस कारणसे अद्भुत ग्रंथ “विज्ञप्ति” की रचना कठिन थी | इसलिए आपको अगर श्रीजीबावा का विरह प्राप्त हो तो ही वह ग्रंथ की रचना हो सकती है | इस मुख्य कारण से यह समग्र लीला का निरूपण हुआ था |

Chandra Sarovar

chandra sarovar parasoli

श्री गुसाईजी परासोली चंद्रसरोवर पधारे |श्रीजी के मंदिर मे पारसोली की तरफ एक खिड़की थी | श्रीजी बावा को गुसाईजीका विरह होता इस कारणसे आप कृष्णदासजी के जाने के बाद शाम को खिड़की पर बिराजमान हो कर गुसाईजी को दर्शन देते |

एक दिन कृष्णदासजी ने यह द्रश्य देखा और तुरंत प्रातः काल वह खिड़की चुनवा दी | इस कारण से दोनों और विरह और बढ़ने लगा | श्री गुसाईजी भोग नहीं आरोगते | रामदासजी राजभोग के पश्चात चरणोदक और प्रसादी बीड़ा ले कर पधारते |

श्री गुसाईजी श्रीजीबावा के लिए पुष्प की मालाजी सिद्ध करके रखते उसमे विरह के श्रलोक लिखते जो विज्ञप्ति ग्रंथ से स्थापित हुए |

कसुंबा छठ वार्ता प्रसंग | गुसाइजी चंद्र सरोवर पर विज्ञाप्ति ग्रंथ की रचना कर रहे है |

मालाजी के साथ विज्ञप्ति रामदासजी के साथ श्रीजीबावा को भिजवाते | श्रीजीबावा श्री गुसाईजी विज्ञप्ति पढ़ते और श्रीजीबावा आपकी विडा की पीक से उत्तर लिख कर श्री गुसाईजी के लिए भिजवाते | श्रीगुसाईजी उत्तर पढ़ते और फिर वही बीड़ा जलमे घोलकर ग्रहण करते |

केवल उस पर ही छे मास का समय पसार किया | श्री गुसाईजी श्रीनाथजीके उत्तर वाले बीड़ा जलमे घोलकर ग्रहण करते इस कारणसे श्रीजी के उत्तर प्रकट नहीं हुए | श्री गुसाईजी ने जो विज्ञप्ति रची केवल वही प्रकट हुई | यह क्रम छे मास तक चला |

दोनों स्वरूप को एक दूसरे का विरह होता | फिर एकदिन बीरबल गोकुल आए | वहा श्री गुसाईजी के दर्शन न होने पर श्री गिरधरजी के दंडवत प्रणाम किए | और पूछा की श्री गुसाईजीके दर्शन बहुत समय से नहीं हुए है |

तब श्री गिरधरजी ने आज्ञा की कृष्णदासजी ने श्री गुसाईजीके दर्शन बंध किए है | इसलिए पारसोली बिराज रहे है | श्रीनाथजी की सेवा मे ना होने का खेद कर रहे है | तब मथुरा की फोजदारी बिरबलके हाथ मे थी |

उसने तुरंत मथुरा जाकर ५०० सैनिक भेजकर कृष्णदासजी को मथुरा ले आए | और वहा उनको बंदी खाने मे बंद किया | समाचार गोकुल तक पहुचाए | और श्री गिरधरजी रात्रिको ही गोकुल से पारासोली पधारे |

श्री गुसाईजी को गिरीराजजी पधारकर श्रीनाथजी के सेवा शृंगार की बिनती की | तब गुसाईजी ने प्रश्न किया “क्या कृष्णदासजी मान गए?” तब श्री गिरधरजी ने कहा नहीं बिरबलने उनको बंदीखाने मे बंद किया है | इसलिए अब आप पधार सकते है |

तब गुसाईजी कहते है “श्री महाप्रभुजी के सेवक परम भगवदीय कृष्णदासजीको इतना कष्ट ! वह जब तक नहीं आएंगे तब तक हम अन्न जल नहीं लेंगे “| यह सुनकर श्री गिरधरजी तुरंत श्री मथुराजी आए | और बीरबल को श्री गुसाईजीकी आज्ञा कही | 

    

कसुंबा छठ वार्ता प्रसंग बीरबल जी कृष्णदासजी को जेल से मुक्त कर रहे है

तब बीरबल कृष्णदासजी के पास आए और कहा देखीए  श्री गुसाईजी आपको कष्ट मे देख कर अन्नजल तक नहीं ले रहे और आपने उनके साथ एसा वर्ताव किया | 

अगर आपने अगली बार एसा कुछ किया तो मे नहीं छोड़ूँगा” | श्री गिरधरजी कृष्णदासजी को लेकर पारसोली पधारे | श्री गुसाईजी कृष्णदासजी को देख कर प्रसन्न हो कर खड़े हुए | श्री कृष्णदासजी ने आपको दंडवत किए, चरनस्पर्श किए और कहा “मेरे इस अपराध को क्षमा कीजिए | और पुनः श्री गोवर्धननाथजी की सेवा मे पधारिए |”

अषाढ़ सूद ६ आज के दिन श्री गुसाईजी  पुनः श्रीगोवर्धननाथजी की सेवा मे आए |  कसुंबी पाघ का श्रींगार किया | शयन पर्यंत तक की सेवा संभालने के बाद श्री गुसाईजीने पुनः कृष्णदासजी को अधिकारी का दुशाला श्रीनाथजी की सन्मुख ओढ़ाया |

और आज्ञा की “हमारे गोवर्धनधर का अधिकार कीजिए | तब कृष्णदासजी भावुक हुए तब उन्होंने एक पद की रचना की जो हाल के समय मे प्रचलित है 

परम कृपाल श्री वल्लभ नंदन करत कृपा निज हाथ दे माथे l
जे जन शरण आय अनुसरही गहे सोंपत श्री गोवर्धननाथे  ll 1 ll
परम उदार चतुर चिंतामणि राखत भवधारा बह्यो जाते l
भजि ‘कृष्णदास’ काज सब सरही जो जाने श्री विट्ठलनाथे ll 2 ll

परम कृपाल श्री वल्लभ नंदन गुसाइजी पद वार्ता प्रसंग कसुंबा छठ
Like 4