नंददास जी – अष्ट छाप कवि

श्रीनाथजी अष्ट सखा नंददास जी जीवन चरित्र , वार्ता प्रसंग , सभी जानकारी |

नंददास जी अष्टछाप जीवन परिचय

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एक दिवस श्री गुसाईजी विचार रहे थे की भगवदीय की वाणी अनुभव युक्त है |  प्रभु की लीला का गुणगान उत्तम तरीके से करते है |  जब प्रभु के सन्मुख आपकी लीला के गुणगान गाते है तब श्रीजीबावा बड़ी प्रसन्नता से सुनते है |

तो कुछ एसा बंदोबस्त होना चाहिए की यह भगवदीय की कला का विनियोग प्रभु सेवा मे हो | वीं. सं. १६०२ मे श्री गुसाईजीने ८ भगवदीयन वैष्णवों को श्रीजीकी अष्ट समाओ की कीर्तन सेवा मे नियुक्त किए |

जिनमे पाँच  श्री महाप्रभुजी के सेवक

  • कुंभनदासजी,
  • कृष्णदासजी,
  • सुरदासजी
  • परमानन्ददासजी और
  • विष्णुदासजी छिपा

और तीन आपके(श्री गुसाईजीके) सेवक

  • छितस्वामीजि,
  • गोविन्दस्वामीजी और
  • चतुर्भुजदासजी 

विष्णुदासजी छिपा श्री महाप्रभुजी के कृपापात्र सेवक थे | उनकी उत्तरा अवस्था मे अपना गाव आग्रा छोड़ श्री गुसाईजीकी सेवा मे गोकुल आए | वहा पोल(गली) की चोंकीदारी मे नियुक्त हुए | जब गोपालपुर गाव बसा तब श्रीगुसाईजी ने उनको गोपालपुर आकर बसने की आज्ञा दी | श्रीनाथजी के मंदिर के द्वारपाल के रूप मे नियुक्त किया |

Vishnudas Chhipa , Ashtsakha , Ashtchhap mandal sthapna

विष्णुदासजी को स्वमार्ग के सिद्धांतों और कीर्तनों का अच्छा खासा ज्ञान था | इस वजह से उनको अष्टछाप मण्डल मे उनकी नियुक्ति हुई और प्रभु की अद्भुत कीर्तनों का गान किया है | सं. १६०३ मे श्री गुसाईजी की गुजरात की प्रथम यात्रा, १६०५ मे आपश्री के तृतीय लालन श्री बालकृष्णजी का प्राकट्य हुआ |

श्री गुसाईजी गोकुल पधारे और श्री नवनीतप्रियाजी के नए मंदिर का निर्माण किया |  फिर विष्णुदास छिपा ने भौतिक देह त्याग करके लीला मे पधारे तब अष्टछाप मण्डल मे उनका स्थान खाली हुआ | उनके स्थान की पूर्ति के श्रीजीबावा ने एक अलग ही  लीला रची |

नंददास जी की वैष्णव बनने की अनूठी यात्रा

सिहनंद नामक गाव मे एक क्षत्रिय रहते थे | पूरा परिवार श्री गुसाईजीका सेवक बना था | उनके घर के पास से एक १७ वर्षीय नवयुवान सिँहनन्द गाव मे मार्ग भुला हुआ इस क्षत्रिय परिवार के घर से पसार हो रहा होता है|

तब क्षत्रियकी युवान पत्नी पर उसकी नजर पड़ती है | और उसकी सुंदरता मे एसा आसक्त हो गया की हररोज वहा आने लगा जबतक वह स्त्री का मुख ना देखे तब तक वहा से जाता नहीं |

नंददासजी

परिवार के  समजाने पर भी नहीं समजा | परिवार चिंतातुर हुए और गाव छोड़कर गोकुल श्री गुसाईजीके पास आने के लिए निकल पड़े | यमुनाजी के पास आए नाव मे बैठे | उनके पीछे पीछे वह युवक भी आ पहुचा |

उनकी नाव मे एक के बैठने की जगह थी फिर भी वह परिवार ने नाविक को ज्यादा पैसे दिए | और वह युवक को न बैठाने की बात की और गोकुल की ओर निकल पड़े | वह युवक तट पर ही खड़ा रहा | परिवार गोकुल आया श्री गुसाईजीके दंडवत किए |

श्री गुसाईजीने उनको पातर प्रसादी लेने की आज्ञा की | परिवार मे सात लोग थे और ८ पातर सिद्ध की गई | परिवार ने देखा की एक पातर ज्यादा लगाई है | जिज्ञासा हुई रहा नहीं गया और श्री गुसाईजी से कारण पूछा | तब श्री गुसाईजी आज्ञा करते है आप ८ लोगों का भाड़ा नावके लिए देकर आए है ना तो हमे भी वैसे ही तैयारी करनी पड़ेगी |      

श्री गुसाईजीने आज्ञाकी “वह जीव परिश्रम करके आप के पीछे आया आप उसके बगैर ही महाप्रसाद लोगे | अरे आपके द्वारा एक शुभ कार्य प्रारंभ करवाया गया है | अब हमे तो उसे पूरा करना पड़ेगा ना” | श्री गुसाईजीने सेवक से आज्ञा करके वह युवान ब्रामहन को ले आने की आज्ञा की |

नंददासजी वार्ता प्रसंग
नंददासजी वार्ता प्रसंग

सेवक तुरंत ही जाकर वह नवयुवान को ले कर श्री गुसाईजीके सन्मुख  आए | तब श्री गुसाईजी ने आज्ञा की “आओ नन्ददास ! हम आपकी  प्रतीक्षा कर रहे है”| नंददासजी ने जैसेही श्रीगुसाईजी के दर्शन किए  उनकी सारी लौकीक कामवासना भष्म हो गई | 

श्री गुसाईजी ने उनको महाप्रसाद लेने के लिए बिठाया | जैसे ही नंददासजीने महाप्रसाद की एक टूक मुह मे रखी की तुरंत भगवद लीला मे इसे निमग्न हो गए की ज्यों के त्यो बैठे रहे | थोड़ी देर बाद सेवक श्री गुसाईजीके पास आए |

और बिनतीकी “राज ! वह युवक तो अभी भी वैसे के वैसे पातर पर बैठे है , पातर भी नहीं ले रहे” | श्री गुसाईजी उनकी भगवद स्थिति जान गए और आज्ञा की उनको कोई बुलाना मत | उनको रहनेदो सामनेसे उठने दे | नंददास पूरी रात्री वही दशा मे वही के वही बैठे रहे |

प्रातः समय श्री गुसाईजी पधारे | उनके मस्तक पर श्री हस्त पधराया  और आज्ञा की “उठो नंददास ! दर्शन का समय हुआ है”|  नंददासजी ने आंखे खोली और बिनती की… महाराज ! जब से समजदार हुआ हु तबसे लौकीक विषय मे फसा हुआ हु और दूसरों को भी व्यथिथ किया है |

आपने कृपा करके मेरा पूरा लौकीक दूर किया अब कृपा करके शरण मे लीजिए | तब श्री गुसाईजीने उनको नाम निवेदन कराया तब नंददासजी ने एक पद की रचना कर गाया

जयति रुक्मणी नाथ पद्मावती प्राणपति विप्र कुल आनंदकारी” | 

और

प्रातः समय श्री वल्लभ सुतकों पुन्य पवित्र विमल जस गाऊ” |

फिर श्री गुसाईजी उनको गोपालपूरा ले कर पधारे | वहा नंददासजी ने जब श्री गोवर्धननाथजी के दर्शन किए और प्रभु की लीला मे इसे निमग्न हो गए और प्रभुकी सन्मुख बैठ कर पद गाए |

घर नंद महर के मिस ही मिस आवे गोकुल की नारी” |

श्री गुसाईजी ने उनका भाव समज कर कुछ महीनों के लिए तलेटीमे कुंभनदासजी, सुरदासजी, कृष्णदासजी जैसे भगवादियों के साथ सत्संग करने की आज्ञा की |

वीं. सं. १६०७  मे श्री गुसाईजी ने अष्टछाप मण्डल मे विष्णुदासजी के   रिक्त  स्थान को पूर्ण करने के लिए नंददासजी को नियुक्त किया |

नंददासजी को भगवदलीला के दर्शन होते और पदों की रचना करके प्रभु की सन्मुख गाते | अब वह श्रीनाथजी के सखा बन चुके थे |   

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