नंददास जी – अष्ट छाप कवि
श्रीनाथजी अष्ट सखा नंददास जी जीवन चरित्र , वार्ता प्रसंग , सभी जानकारी |
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नंददास जी की वैष्णव बनने की अनूठी यात्रा
सिहनंद नामक गाव मे एक क्षत्रिय रहते थे | पूरा परिवार श्री गुसाईजीका सेवक बना था | उनके घर के पास से एक १७ वर्षीय नवयुवान सिँहनन्द गाव मे मार्ग भुला हुआ इस क्षत्रिय परिवार के घर से पसार हो रहा होता है|
तब क्षत्रियकी युवान पत्नी पर उसकी नजर पड़ती है | और उसकी सुंदरता मे एसा आसक्त हो गया की हररोज वहा आने लगा जबतक वह स्त्री का मुख ना देखे तब तक वहा से जाता नहीं |

परिवार के समजाने पर भी नहीं समजा | परिवार चिंतातुर हुए और गाव छोड़कर गोकुल श्री गुसाईजीके पास आने के लिए निकल पड़े | यमुनाजी के पास आए नाव मे बैठे | उनके पीछे पीछे वह युवक भी आ पहुचा |
उनकी नाव मे एक के बैठने की जगह थी फिर भी वह परिवार ने नाविक को ज्यादा पैसे दिए | और वह युवक को न बैठाने की बात की और गोकुल की ओर निकल पड़े | वह युवक तट पर ही खड़ा रहा | परिवार गोकुल आया श्री गुसाईजीके दंडवत किए |
श्री गुसाईजीने उनको पातर प्रसादी लेने की आज्ञा की | परिवार मे सात लोग थे और ८ पातर सिद्ध की गई | परिवार ने देखा की एक पातर ज्यादा लगाई है | जिज्ञासा हुई रहा नहीं गया और श्री गुसाईजी से कारण पूछा | तब श्री गुसाईजी आज्ञा करते है आप ८ लोगों का भाड़ा नावके लिए देकर आए है ना तो हमे भी वैसे ही तैयारी करनी पड़ेगी |
श्री गुसाईजीने आज्ञाकी “वह जीव परिश्रम करके आप के पीछे आया आप उसके बगैर ही महाप्रसाद लोगे | अरे आपके द्वारा एक शुभ कार्य प्रारंभ करवाया गया है | अब हमे तो उसे पूरा करना पड़ेगा ना” | श्री गुसाईजीने सेवक से आज्ञा करके वह युवान ब्रामहन को ले आने की आज्ञा की |


सेवक तुरंत ही जाकर वह नवयुवान को ले कर श्री गुसाईजीके सन्मुख आए | तब श्री गुसाईजी ने आज्ञा की “आओ नन्ददास ! हम आपकी प्रतीक्षा कर रहे है”| नंददासजी ने जैसेही श्रीगुसाईजी के दर्शन किए उनकी सारी लौकीक कामवासना भष्म हो गई |
श्री गुसाईजी ने उनको महाप्रसाद लेने के लिए बिठाया | जैसे ही नंददासजीने महाप्रसाद की एक टूक मुह मे रखी की तुरंत भगवद लीला मे इसे निमग्न हो गए की ज्यों के त्यो बैठे रहे | थोड़ी देर बाद सेवक श्री गुसाईजीके पास आए |
और बिनतीकी “राज ! वह युवक तो अभी भी वैसे के वैसे पातर पर बैठे है , पातर भी नहीं ले रहे” | श्री गुसाईजी उनकी भगवद स्थिति जान गए और आज्ञा की उनको कोई बुलाना मत | उनको रहनेदो सामनेसे उठने दे | नंददास पूरी रात्री वही दशा मे वही के वही बैठे रहे |
प्रातः समय श्री गुसाईजी पधारे | उनके मस्तक पर श्री हस्त पधराया और आज्ञा की “उठो नंददास ! दर्शन का समय हुआ है”| नंददासजी ने आंखे खोली और बिनती की… महाराज ! जब से समजदार हुआ हु तबसे लौकीक विषय मे फसा हुआ हु और दूसरों को भी व्यथिथ किया है |
आपने कृपा करके मेरा पूरा लौकीक दूर किया अब कृपा करके शरण मे लीजिए | तब श्री गुसाईजीने उनको नाम निवेदन कराया तब नंददासजी ने एक पद की रचना कर गाया
“जयति रुक्मणी नाथ पद्मावती प्राणपति विप्र कुल आनंदकारी” |
और
“प्रातः समय श्री वल्लभ सुतकों पुन्य पवित्र विमल जस गाऊ” |
फिर श्री गुसाईजी उनको गोपालपूरा ले कर पधारे | वहा नंददासजी ने जब श्री गोवर्धननाथजी के दर्शन किए और प्रभु की लीला मे इसे निमग्न हो गए और प्रभुकी सन्मुख बैठ कर पद गाए |
“घर नंद महर के मिस ही मिस आवे गोकुल की नारी” |
श्री गुसाईजी ने उनका भाव समज कर कुछ महीनों के लिए तलेटीमे कुंभनदासजी, सुरदासजी, कृष्णदासजी जैसे भगवादियों के साथ सत्संग करने की आज्ञा की |
वीं. सं. १६०७ मे श्री गुसाईजी ने अष्टछाप मण्डल मे विष्णुदासजी के रिक्त स्थान को पूर्ण करने के लिए नंददासजी को नियुक्त किया |
नंददासजी को भगवदलीला के दर्शन होते और पदों की रचना करके प्रभु की सन्मुख गाते | अब वह श्रीनाथजी के सखा बन चुके थे |
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