गोविंद स्वामी – अष्ट छाप कवि

गोविन्दस्वामी अष्ट छाप कवि का जीवन परिचय , 252 वार्ता प्रसंग , श्रीनाथजी अष्ट सखा गोविंद स्वामी

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श्रीनाथजी के अष्ट सखा गोविंद स्वामी जीवन का परिचय एवं श्री कृष्ण के साथ सखा भाव के रोचक वार्ता प्रसंग

एक आंतरि गाव के स्वामि को प्रभु प्राप्त करने की बड़ी उत्सुकता | एक बार एक वैष्णव आकर कहा की अभी एक चमत्कारी पुरुष ने प्रभु को वश मे कर रखा है इसलिए अभी मिलना कठिन है | वह चमत्कारी पुरुष श्री विट्ठलनाथजी है अभी गोकुल पधारे हुए है |

इस स्वामि का नाम गोविंद स्वामि , इनको उत्सुकता हुई और श्री गुसाईजी से मिलने गोकुल गए | देखा की श्री गुसाईजी के सोना चांदी के पात्र है लौकिक माया है इनको कैसे प्रभु मिलते होंगे | जैसे ही श्री गुसाईजी से मिलने गए तब श्री गुसाईजीने सामने पुकारा “आइए ! गोविन्दस्वामी हम कबकी आपकी प्रतीक्षा कर रहे है |

श्री गोविन्दस्वामी दंग रह गए सोचमे पड गए मे काभी इनसे मिला नहीं फिर भी मेरा नाम कैसे जानते है |श्री गुसाईजी गोविन्दस्वामी को गोकुलमे नवनीत प्रियाजी के पास ले आए | गोविंद स्वामिने दर्शन किए उनको प्रभु के कोटी कंदर्प लावण्य युक्त स्वरूप के दर्शन हुए |

भगवद लीला की स्फुरणा हुई परंतु उनके मनमे एक प्रश्न था श्री गुसाईजी के पास आए और पूछा “कृपानाथ ! आपके यहा तो साक्षात प्रभु बिराज रहे है फिर संध्या वंदन आदि वेदिक कर्म कांड करने की क्या आवश्यकता ??”

तब श्री गुसाईजीने बड़ी सरलता से उनको समजाया की “भक्ति एक गुलाब का पुष्प है | और गुलाब के पुष्प की रक्षा काटे के बिना नहीं हो सकती | ठीक वैसे ही इस भक्ति रूपी पुष्प की सुरक्षा वैदिक कर्म रूपी काटे की वाड से ही हो सकती है | वैदिक कर्म से ही भक्तिमार्ग की सुरक्षा हो सकती है | श्री गोविन्दस्वामी को समाधान मिला | 

श्री गुसाईजी से शरण मे लेने की बिनती की और श्री गुसाईजी की आज्ञा से स्नान करने गए | और जब स्नान करके लौटे तब श्री गुसाईजी से ब्रम्हसंबंध मिला | फिर गोकुल मे निवास किया |  उनको प्रभु की सेवा कीर्तन सेवा प्राप्त हुई और बड़े अद्भुत कीर्तन गाते |

प्रभु को भी उनके कीर्तन बहुत रास आते | कई वैष्णव गोविंददासजी के पद श्री गुसाईजीके सन्मुख गाते श्री गुसाईजी प्रसन्न होते | वैष्णव भी गोविंददासजी को बताते की गुसाईजी आपके पद से अति प्रसन्न होते है | श्रीनाथजी से उनका साख्य भाव जुड़ा | कुंभनदासजी, गोपीनाथदास ग्वाल की तरह गोविंददासजी को भी श्रीजीबावा के साथ अंतरंग मित्रता सिद्ध हुई |

गोविन्दस्वामी अष्ट छाप कवि का जीवन परिचय , 252 वार्ता प्रसंग , श्रीनाथजी अष्ट सखा गोविंद स्वामी

गोविंदस्वामी के आंतरी गाव मे कई शिष्य थे | उनके पुराने शिष्य उनसे मिलने आए | तब घर पर गोविंदस्वामी की बहन कान्हबाई ने कहा वह स्नान करने गए है | शिष्य सभी जशोदाघाट गए | शिष्य उनको पहचान नहीं पाए और पूछने लगे की गोविन्दस्वामी कहा है |

तब गोविन्दस्वामी ने कहा गोविन्दस्वामी कब के मर गए | शिष्य सभी फिर से घर आये तब गोविंदस्वामी भी वहा आए | तब शीष्य ने उनको पहचाना और कहा आपने एसा क्यू कहा की वो तो कब के मर गए | तब गोविंदस्वामी ने कहा “मरे नहीं ! तो अब मरेंगे |” भाव यह है की गोविंद स्वामी मर गए अब  यह तो गोविंददास है |

श्रीजीबावा नित्य उनके साथ खेलने पधारते | बड़ी अद्भुत निराली और अलौकिक अंतरंग मित्रता थी | गोविंददास महावन की टेकरी पर रहेते कीर्तन गाते | मदन गोपालदास नित्य कीर्तन लिखने आते |

ठाकुरजी भी नित्य गोविंददास के कीर्तन सुनने पधारते | एक बार गोविंददासजी ने कहा की आप नित्य यहा कीर्तन सुनने पधारते है बड़ी दूर से पधारने का श्रम लेते है | आप को जरूर रुचि होगी | आपको अभ्यास भी है तो आप भी गायन कीजिए |

तब साक्षात प्रभु ने गायन किया, उस गायन को सुनने के लिए स्वयं स्वामीनिजी पधारे | तब ताल स्वर गूंजने लगे गोविन्दस्वामी अपने भाग्य की बड़ाई करने लगे….धन्य धन्य कहने लगे | तब बाजुमे बैठे मदनगोपालदास गोविंददासजी से बोले की आजू बाजू कोई मनुष्य तो नहीं है आप किनसे बाते कर रहे है | तब गोविंददासजी मौन रहे | प्रसंग को गोपनीय रखा |

गोविन्दस्वामी अष्ट छाप कवि का जीवन परिचय , 252 वार्ता प्रसंग , श्रीनाथजी अष्ट सखा गोविंद स्वामी

फिर जब श्री गुसाईजी ने गोविंददासजी से पुछा की प्रभु कैसा गाते है ? तब गोविंददासजी कहते बहुत सुंदर गाते है | परंतु ताल स्वर तो स्वामीनिजी ही उत्तम देते है | यह क्रम नित्य का था | यह गायन सुनने श्री गुसाईजी के चतुर्थ लालन श्री गोकुलनाथजी भी पधारते | 

गोविन्दस्वामी गाते प्रभु सुनते | प्रभु गाते गोविन्ददासजी  सुनते | गोविन्ददासजी  गाते तब प्रभु गलती निकालते ; प्रभु गाते तब गोविंददासजी गलती निकालते |

गोविन्दस्वामी अष्ट छाप कवि का जीवन परिचय , 252 वार्ता प्रसंग , श्रीनाथजी अष्ट सखा गोविंद स्वामी

इसी तरह एक दिन श्याम ढाक पर प्रभु एक टेकरी पर बिराजकर मुरली वादन कर रहे थे | दूसरी टेकरी पर बिराजकर गोविंददासजी बैठ कर देख रहे थे | बाकी सब सखा भी थे | तबश्री गुसाईजी स्नान करके उत्थापन के लिए पधार रहे थे |

श्रीजीबावाकी दृष्टि उनपर पडी | और मंदिरमे पधारनेकी जल्दबाजी मे कूदे और वस्त्र पेड़ पर फसनेकी वजह से फट गया और एक टुकड़ा पेड़ मे फस गया | जल्दी से मंदिर पधारे | श्रीगुसाईजीने उत्थापनके लीए निजमन्दिर के द्वार खोले |

तब दर्शन किए की वस्त्र फटा हुआ है | श्री गुसाईजी ने बाकी सबको पूछा कोई आया था | तब सबने मना किया तब श्री गुसाईजी सोचमे पड गए | तब गोविंददासजी आए और बोले क्या विचार कर रहे है | आप अपने पुत्रके लक्षण नहीं जानते कितना चंचल है|

जल्दबाजी मे श्यामढ़ाक से कूदे और वस्त्र फट गया और टुकड़ा वही पेड़ पे फस गया | पधारकर देखीए | तब गुसाईजीने पधारकर देखा और वस्त्रका टूक वही था | तब श्री गुसाईजीने श्रीजीबावा से पुछा | “बावा ! जल्दबाजी काय के लिए करी ?” तब श्रीजी बावा ने कहा”काकाजी ! उत्थापनकी बेला भई थी और आप स्नान से पधार रहे थे ताय सो जल्दबाजी की ” |

तब श्रीगुसाईजीने एक सुव्यवस्थित क्रम की रचना की जिसमे

उत्थापन के समय तीन बार घंटा नाद , तीन बार संखनाद फिर २० पल ठहर कर निजमन्दिर के द्वार खोले जाए जिससे श्रीजीबावा को खेल से पधारने मे श्रम ना हो |

कुछ एसी अलौकिक अंतरंगता सिद्ध हुई थी गोविंददासजी को | प्रभुभी उनके बगेर रहते नहीं थे | प्रभु की सेवा मे कई पदों की रचनाए की | 

जल्द बाजी श्रीनाथजी का वस्त्र फटा वार्ता प्रसंग

एक समय श्रीनाथजी कान्हा नाम के सखा के साथ क्रीडा कर रहे थे | कान्हा एक मेहतर(जाड़ू से साफ सफाई करने वाला) का बालक था | तब मंदिर मे आरती का संकेत हुआ तो श्रीनाथजी मंदिर की ओर पधारने लगे |

गोविंद स्वामी ने सोचा की हम इनकी सेवा मैं आने के लिए बार बार अपरस करते है | छु न जाए उसका बड़ा ध्यान रखते है | और ये इसे ही चल दीए | तब गोविंद स्वामी ने श्रीनाथजी को रोक लिया | 

उनसे कहा इसे ना जा शकों | मंदिर की अपनी मेंढ़ है | मेहतर के बालक के साथ खेल रहे थे | अपरस करो – स्नान करो फिर पधारो | श्रीनाथजी ने कहा “देख मेरो स्नान करने कोई मन नाई है | मे नहीं करूंगा |”

गोविंद स्वामी ने कहा “स्नान तो करनों पडेगो |” श्रीनाथजी ने कहा “ठंड बहुत है ! मे स्नान नहीं करने वाला |”  बड़ी बहस हुई | जब श्रीनाथजी मान नहीं रहे थे | तब  गोविंद स्वामी ने कहा “ठीक है , स्नान मति करो | बस थोड़ा आचमन करलो |

श्रीजी मान गए | जैसे ही यमुनाजी के जल मे आचमन करने के लिए जुके | गोविंद स्वामी ने पीछे से धक्का मार दिया सीधे जल  मे | श्रीनाथजी पूरे भीग गए |

फिर गोविंद स्वामी ने आपको हाथ दे कर बहार पधराया |

श्रीनाथजी भीगे वस्त्र मे मंदिर मे पधारे | गुसाईजी ने देखा और पूछा “बावा ! का भयो” तब श्रीनाथजी ने कहा “मे तो आचमन कर रहा था गोविंद ने धका दिया |

जल्द बाजी श्रीनाथजी का वस्त्र फटा वार्ता प्रसंग

गुसाइजी ने गोविंदस्वामी से पूछा |

तब गोविंद स्वामी ने कहा “मंदिर मे आपकी मेंढ़ है | हम प्रतिदिन सावधानी रखते है | अपरस करते है | पर आपका पुत्र पता नहीं कोन के साथ खेल आवे ! कोन को छु आवे | मंदिर की मेंढ़ के लिए धक्का मार दिया, स्नान करवा दिया |

एसी अद्भुत एवं अंतरंग मित्रता श्रीनाथजी और गोविंद स्वामी के बीच मे थी | दोनों को एक दूजे बगैर नहीं चलता | दोनों को एक दूसरे की चिंता रहती | गोविंदस्वामी हमेशा प्रभु के ततसूख का ख्याल करते | उनको आनंद कराते | उनके साथ भाति भाति के खेल खेलते | गीली डंडा का खेल खेलते | श्रीजी गोविंदस्वामी के ऊपर घुड़ सवारी करते |  

जल्द बाजी श्रीनाथजी का वस्त्र फटा वार्ता प्रसंग

गुसाइजी भी  इनकी घनिष्ठ मित्रता की प्रशंशा करते | गोविंदस्वामी की मित्रता आँकलन शास्त्रो के माप दंड से नहीं किया जा शकते | उनको साख्य भाव हृदयागूढ हो चुका था |   

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