गोविंद स्वामी – अष्ट छाप कवि
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श्रीनाथजी के अष्ट सखा गोविंद स्वामी जीवन का परिचय एवं श्री कृष्ण के साथ सखा भाव के रोचक वार्ता प्रसंग


फिर जब श्री गुसाईजी ने गोविंददासजी से पुछा की प्रभु कैसा गाते है ? तब गोविंददासजी कहते बहुत सुंदर गाते है | परंतु ताल स्वर तो स्वामीनिजी ही उत्तम देते है | यह क्रम नित्य का था | यह गायन सुनने श्री गुसाईजी के चतुर्थ लालन श्री गोकुलनाथजी भी पधारते |
फिर गोविंद स्वामी ने आपको हाथ दे कर बहार पधराया |
श्रीनाथजी भीगे वस्त्र मे मंदिर मे पधारे | गुसाईजी ने देखा और पूछा “बावा ! का भयो” तब श्रीनाथजी ने कहा “मे तो आचमन कर रहा था गोविंद ने धका दिया |”
गुसाइजी ने गोविंदस्वामी से पूछा |
तब गोविंद स्वामी ने कहा “मंदिर मे आपकी मेंढ़ है | हम प्रतिदिन सावधानी रखते है | अपरस करते है | पर आपका पुत्र पता नहीं कोन के साथ खेल आवे ! कोन को छु आवे | मंदिर की मेंढ़ के लिए धक्का मार दिया, स्नान करवा दिया |”
एसी अद्भुत एवं अंतरंग मित्रता श्रीनाथजी और गोविंद स्वामी के बीच मे थी | दोनों को एक दूजे बगैर नहीं चलता | दोनों को एक दूसरे की चिंता रहती | गोविंदस्वामी हमेशा प्रभु के ततसूख का ख्याल करते | उनको आनंद कराते | उनके साथ भाति भाति के खेल खेलते | गीली डंडा का खेल खेलते | श्रीजी गोविंदस्वामी के ऊपर घुड़ सवारी करते |
गुसाइजी भी इनकी घनिष्ठ मित्रता की प्रशंशा करते | गोविंदस्वामी की मित्रता आँकलन शास्त्रो के माप दंड से नहीं किया जा शकते | उनको साख्य भाव हृदयागूढ हो चुका था |
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