छीतस्वामी – अष्ट छाप कवि

छीतस्वामी जीवन परिचय

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श्रीनाथजी अष्ट सखा छीतस्वामी का जीवन परिचय और रोचक वार्ता प्रसंग |

श्री महाप्रभुजी के नित्यलीला गमन के पश्चात श्री गुसाईजी के विवाह श्री गोपिनाथजी ने कराए | कृष्णदास अधिकारी और श्रीजीबावा ने लीला के द्वारा आपकी सेवा मे अनीति करने वाले बंगालिकों सेवा मे से निकाला |

और श्री महाप्रभुजीके विध्यगुरु माधवानंदजी को मलयांचाल पर्वत पर श्रीजी के ही दूसरे स्वरूप “हेम गोपालजी” की सेवा सोपी |

कृष्णदासजिने श्रीजी की सेवा मे साँचोरा ब्राम्हणो को नियुक्त किया और मुख्या बनाए श्री रामदास साचोरा को | अब एक नए जीव को शरण मे लेनेकी तैयारी  श्रीजी कर रहे थे |

मथुरा मे ५ बदमाशों की टोली | मथुरा मे विश्रामघाट पर उनका अड्डा | सब उनसे परेशान और भयभीत | इन बदमाशों की टोली के सरदार “छितू चोबे”|

उस समय श्री गुसाईजी श्री गोकुल पधारे | इन बदमाशों ने सुना की श्री विट्ठलनाथजी नाम के महापुरुष  गोकुल पधारे हुए है | इतने चमत्कारी है की जो एक बार उनके दर्शन करे वह उनके ही हो जाते है | इन बदमाशों ने सोच की हमे उनकी परीक्षा करनी चाहिए |

छितू चोबे ने परीक्षा करने का बीड़ा हाथमे लिया | एक खोटा सिक्का और एक सुका हुआ नारियल लिया और नाव मे बैठकर गोकुल आए | जैसे ही छितू चोबे ने श्री गुसाईजीकी बैठक मे प्रवेश किया |

उनकी सारी भ्रमना तुट गई | यह कोई सामान्य पुरुष नहीं यह साक्षात ईश्वर है | ग्लानि हुई की मे ईश्वर की परीक्षा करने निकला | श्री गुसाईजी ने प्रेम से आवकार दिया “आइए  ! “छितस्वामीबैठीये”  | अपना नाम श्री गुसाईजी के मुख से सुनकर छितू चोबे के होश उड  गए |    

श्री गुसाईजी ने कहा की आप जो सिक्का और नारियल लाए हो मुजे भेट मे नहीं दोगे | श्री गुसाईजीने सेवक को खोटा  सिक्का दिया सिक्के के बदले मे छूटे रूपीए भी आ गए | और दूसरे सेवकको सूखा नारियल फोड़ा तो उसमे से ताजा कोपरू और सुंदर मधुर जल निकला |

छीतू चोबे सोच मे पड गए की मे तुच्छ बुद्धि वाला जीव निकला था  | परीक्षा करने  पर भी  मुज पर कैसी अद्भुत कृपा हुई की मुजे गुरु के रूप मे साक्षात गोविंद मिल गए | अब मुजे इन्हे छोड़कर कही जाना नहीं है इनकीही शरण मे रहना है | तभी उन्होंने एक अद्भुत पद की रचना की

“भई अब गिरिधर से पहचान”

छीतस्वामी वार्ता प्रसंग

उसके बाद श्री नवनीत प्रियाजी के दर्शन करने अंदर मंदिर मे गए श्री नवनीत प्रियाजी के बदले श्री गुसाईजी के दर्शन हुए | सोचने लगे अरे श्री गुसाईजी तो बहार बिराज रहे है यहा कैसे ? तब श्री गुसाईजी ने आज्ञा की आप गोपालपुरा जाकर गोवर्धननाथजीके  दर्शन कीजिए | 

राजभोग तक गोपालपुरा आकर श्रीजी के दर्शन किए तो प्रभु के पास मे श्री गुसाईजीके दर्शन किए |सोचने लगे अभी गोकुल मे बिराज रहे यहा कैसे पधारे | किसीसे पुछा तो जवाब मिला की श्री गुसाईजी तो गोकुल बिराज रहे है |

फिर से भागते भागते उत्थापन तक गोकुल आए तो देखा की श्री गुसाईजी तो आपकी बैठक मे बिराजमान है | छितू चोबे ने फिर एक अद्भुत पद की रचना की | श्री गुसाईजीने उनको ब्रम्हसंबंध कराया |

श्रीजीबावा की कीर्तन सेवा मे उनको नियुक्त किया |अब वह बदमाश छितू चोबे मे से छितस्वामी बने | छितस्वामी को श्री गुसाईजी मे कोटी कंदर्प लावण्य युक पूर्ण पुरूषोंत्तम के दर्शन हुए और उनको श्री गुसाईजी एवं ठाकोरजी मे अभेद स्थापित हुआ |

साथ साथ भगवद लीला की स्फुरणा हुई और उन्होंने ठाकोरजी और श्री गुसाईजी के एक से बढ़ कर एक अलौकिक पदों कई रचनाए की जैसे की

-भोग श्रृंगार यशोदा मैया, श्री विट्ठलनाथ के हाथ को भावें 

-प्रिय नवनीत पालने जुले

जैसे कई पदों की रचना की | अष्टछाप कवि मे से एक बने | नित्य श्रीनाथजीकी सेवा मे अलौकिक पदों का गायन किया | श्रीजीबावा के बड़े कृपा पात्र रहे |

छित स्वामी जी के अन्य वार्ता प्रसंग 252 वैष्णव की वार्ता मे , गुजराती एवं हिन्दी-ब्रिज भाषा मे पढ़ने के लिए नीचे दीए बटन पर स्पर्श करे |

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