चतुर्भुजदास जी – अष्ट छाप कवि

श्रीनाथजी के अष्ट छाप कवि चतुर्भुजदास जी का जीवन परिचय | एवं उनके जन्म के साथ जुड़ी श्रीनाथजी की अद्भुत लीला का वार्ता प्रसंग | तथा श्रीनाथजी से विरह और श्रीनाथजी की भक्त वत्सलता का एक अत्यंत ही रोचक , करूण ,अद्भुत वार्ता प्रसंग  |

चतुर्भुजदास जी का जीवन परिचय

श्री गुसाईजी के वहा प्रथम लालन श्री गिरधरजी का प्राकट्य हुआ | उस समय कुंभनदासजी के वहा भी पालना जुलने की तैयारी हो रही थी | श्रीनाथजी नित्य कुंभनदासजी को ले कर गोपी के वहा माखन चुराने जाते |

उसी तरह एक दिन दोनों सखा बिराज रहे थे | तब कुंभनदासजीने पूछा “लाला ! आज कहा जाना है ?” तब श्रीजीबावा बोले “कुंभना चल आज तेरे ही गाव जमुनावत्ता जाते है |

कुंभनदासजी बोले “महाराज आप मुजे मरवाओगे ! वहा सब मुजे जानते है | आप तो नटखट है आप तो भाग जाओगे फिर हर बार मार तो मुजे खानी पड़ती है |”

Kumbhandas ji and shrinathji

श्रीजी बावा उन्हे खिच कर ले गए | ग्वालिन के घर मटूकी ऊपर बांधी हुई थी | प्रभुने कुंभनदासजी को कहा “तुम घोडा बनजाओ , मे तुम्हारे ऊपर चड़के माखन चुराता हु |” प्रभु चड़े और मटकी पर पहुचाए परंतु मटकी थोड़ी उचाई पर थी इसलिए थोड़ा जोर लगाया | 

जैसेही जोर लगाया उनका पीताम्बर ढीला हुआ और निकालने लगा | अब दोनों हस्तमे मटकी थी इसलिए प्रभुने दूसरे दो हस्त प्रकट कर लिए और पीताम्बर थाम लिया | कुंभनदासजी ने यह चतुर्भुज स्वरूप के अद्भुत दर्शन किए | 

Mathuradhishji Lila bhavna

फिर माखनचोरी की लीला के पश्चात कुंभनदासजी पुनः अपने घर लौटे | तब किसिने आके उन्हे समाचार दिए की उनके वहा सातवे पुत्र का जन्म हुआ है | वह बहुत खुश हो गए | अभी प्रभुके चतुर्भुज स्वरूप के दर्शन किए और यहा पुत्र की प्राप्ति हुई उस पुत्र का नाम “चतुर्भुज दास” रखा |

 उनका मनोरथ था की उनके साथ कोई सत्संग करने वाला हो | जो मनोरथ श्री गुसाईजी एवं ठाकोरजी की कृपा से पूरा हुआ | शाम के समय उत्थापन के दर्शन के लिए गए श्री गुसाईजी ने आज्ञा की आपको चतुर्भुजदासजी से अत्यंत अलौकिक सुख की प्राप्ति होगी |

४० दिन के बाद पिंधरु उतरने के बाद उन्हे ले आइए उनको ब्रम्हसंबंध कराएगे | फिर ४० दिन के पश्चात कुंभनदासजी कुंभनदासजी चतुर्भुजदासजी को लेकर श्रीगुसाईजीके पास आए |तब श्री गुसाईजीने कुंभनदासजी एवं चतुर्भुजदासजीको सकल ब्रिजलीला के दर्शन कराए |

फिर अष्टाक्षर मंत्र का दान किया | जैसे जैसे श्री गुसाईजी गध्यमंत्रका उच्चारण करते गए वैसे वैसे ४१ दिनके चतुर्भुजदासजी भी पुत्र गध्यमंत्र बोल गए | जैसे ही ब्रम्हसंबंध हुआ वैसे ही ४१ दिन के चतुर्भुजदासजिके मुखसे एक पद की रचना हुई

सेवक की सुखराशी सदा श्री वल्लभ राजकुमार ”  

Chaturbhuj das ji Miraculous child saint

जैसेही निजमन्दिर के द्वार खूले वैसेही चतुर्भुजदासजी पुनः छोटेसे बालक बन गए | जब यह दोनों पिता पुत्र को एकांत मिलता | तब चतुर्भुजदासजी बड़े हो जाते और दोनों सत्संग करते | श्रीनाथजीकी लीला के प्रसंग के सत्संग करते |

कीर्तनका गान करते | जैसेही कोई आ जाता वैसेही चतुर्भुजदासजी पुनः छोटे से बालक बन जाते | श्री चतुर्भुजदासजिका एसा नियम की बाल्य अवस्था मे जब श्रीजीबावा के दर्शन न करते तब तक दूध का पान भी नहीं करते |

कुंभनदासजीको अपनी अलौकिक संपत्तिके सच्चे वारसदार मिल गए थे | श्रीचतुर्भुजदासजी छोटीसी आयूमेही पदोंकी रचना करके श्रीजीबावा की सेवा मे कीर्तन गाते | उनकी भी श्रीजीबावा के साथ अद्भुत मित्रता हो गई थी |

श्रीनाथजी से विरह का और प्रभु की भक्त वत्सलता का एक अद्भुत प्रसंग 

एक समय श्री गुसाईजी यात्रा के लिए विदेश(ब्रिज से बहार) पधारे और तब मथुरा मे महारानी दुर्गावती द्वारा बनाए गए श्रीगुसाईजी के नए घर के दर्शन के मनोरथ रूपी श्रीजीबावा को गिरधरजी सतघरा(मथुरा) पधरा गए थे |

Satghara prayan

श्रीजीबावा को  वहा दो महीने २१ दिन हुए थे और यहा प्रभु के विरह मे सखाओ की स्थिति अच्छी नहीं थी | चतुर्भुजदासजीने  इन समय मे हिलग के पद  रचे | उनको श्रीजीबावा का विरह सताने लगा |

तब उन्होंने “श्री गोवर्धनवासी सावरे लाल तुम बिन रह्यो न जाए……” पद की रचना की | गोपालपुरा(जतीपुरा) से मथुरा का अंतर अच्छा खासा था | फिर भी चतुर्भुजदासजी का विरह का यह पद संदेशे के भाति श्रीजी को सुनाई दिया | 

श्रीजीबावा ने भी उत्तर दिया “चतुर्भुज ! बावरा मत बनियों ; मे आज ही आने का प्रबंध करता हु |अब मुजे भी तुम्हारे बिना यहा नहीं रुचता “| श्रीजीबावा ने श्री गुसाईजीके प्रथम पुत्र को   आज्ञा की “गोवर्धन ! अब मुजे पुनः गोपालपुरा पधराओ मेरे सखा मेरे बिना सुने हो गए है | 

Satghara patotsav

श्री गिरधरजी ने स्नेह से बिनती की “बावा ! थोड़े और दिन तो बिराजिए|”   दूसरे दिन नृसिंहचतुर्दशी थी तब चतुर्भुजदासजिके उस पद मे अत्यंत बिरह भाव था | उस कारण से श्रीजीबावा ने युक्ति लगाई | और श्री गिरधरजी से आज्ञा की |

गोवर्धन !काकाजी(गुसाईजी) आज यात्रा से पधारेंगे एसा संदेश आ रहा है | मुजे वहा नहीं देखेंगे तो उनको खेद होगा  | मुजे आजही शीघ्र गोपालपूरा पधराओ | मुजे शीघ्र गोपीवल्लभ भोग धरो फिर मुजे गोपालपूरा पधराओ | राजभोग एवं शयन भोग एक साथ धरना |

श्रीजी की आज्ञा से श्री गिरधरजिने एक संदेश वाहक को घोड़े मे तेजी से मंदिर भेजा और श्रीनाथजी के पधारवे की एवं राजभोग और शयन भोग तैयारी करने की आज्ञा की | श्री गिरधरजी ने रथ की तैयारी की | सभी ने प्रभुको अश्रु से विदाय दी |

दूसरी और चतुर्भुज दासजी की “तुम बिन रह्यो न जाए” की धुन प्रबल होने लगि थी | श्रीजीबावा ने आज्ञा की “गोवर्धन ! रथ को बेगी (तेजी) भगाय नाइतो काकाजी आजावेंगे…. तेज… और तेज… गोवर्धन… बेगी चलाय” |

श्री गिरधरजी बोले”हा बावा ! तेज ही चलाय रह्यो हो… पर मार्ग ऊबड़ खाबड़ है ताते ज्यादा तेज चलायवेसु आपको ज्यादा श्रम हॉवेगों ” |

Govardhan wasi sanware lal kahani

सावरे लाल तुम बिन रह्यो न जाय” फिर से धुन सुनाई दी |

आज श्रम की फिकर मति करो…. गोवर्धन बड़ी देर हो रही है…. तेज भगाव” श्रीजी आज्ञा करते है |

सावरे…लाल” अब चतुर्भुजदासजी की साँस फूल ने लगि थी | “आयो, चतुर्भुज, अबहु आयो….  तनिक रुक जा….” श्रीजी बावा मनोमान चतुर्भुज दासजीसे  कह रहे है |

तुम     बिन….    रह्यो….   न जाए….” चतुर्भुज दासजी की नस खिचने लगि | आखों के आगे अंधेरा छाने लगा | 

शब्द धीरे पड़ने लगे | चतुर्भुजदासजी विहवल होने लगे ; “तुम बिन रह्यो न जाए” शब्द रुक गए |

govardhan wasi sanware lal tum bin rahyo na jay kahani

तब ही श्रीनाथजीके रथ के घूघरे की रणकार तलेटी मे गूंजने लगि | तलेटी की शिलाजी जो तेज खो बैठी थी पुनः तेजमय हो गई | मुरजाए हुए पेड़ फिर खिलने लगे | वातावरण खुशनुमा हो गया | सभी ने बधाई दी | चतुर्भुज दासजी के बिरह का अंत हुआ |

श्री गिरधरजी ने रथ दंडवती शीला के पास  रोककर पुनः श्रीजी को स्कन्ध  पर पधराकर तेजी से गिरीराजजी चड़ गए | मंदिर के पास शिलाजी पर  चतुर्भुज दासजी को आसू सारते हुए देखा  |

श्री गिरधरजी थोड़े अटके और पूछा “अरे , चतुर्भुजदास ! सब कुशल मंगल तो है ना ?” तब चतुर्भुजदासजी ने हर्षित हो कर कहा “हा महाराज ! अब सब कुशलमंगल है” |

श्रीगिरधरजी के स्कन्ध पर बिराजमान श्रीजीबावा ने चतुर्भुजदासजी की ओर हल्के मल्काए, स्मित किया | फिर श्री गिरधरजी ने श्रीजी को मंदिर मे पधराकर राजभोग एवं शयन भोग धराए | कुछ एसा अद्भुत दिव्य अलौकिक साख्य भाव है चतुर्भुजदासजी का श्रीजीबावा के साथ |

यह पद आपको हमारे नित्य पद सेक्शन मे प्राप्त हो शकता है | यह पद आजभि प्रभु के बिरह मे गिरीराजजीके मंदिर के आसपास गाने की मनाई है | प्रभु को श्रम नहीं देना चाहिए |  

पूर्ण प्रसंग को विडिओ के रूप मे अनुभव करे  :

govardhan vasi sanware Story | गोवर्धन वासी सावरे लाल से जुड़ी कहानी | Shrinathji Story | Krishna

चतुर्भुजदासजी का यह पद हमारे हिन्दी भाषा के नित्य नियम सेक्शन मे है |

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छित स्वामी जी के अन्य वार्ता प्रसंग 252 वैष्णव की वार्ता मे , गुजराती एवं हिन्दी-ब्रिज भाषा मे पढ़ने के लिए नीचे दीए बटन पर स्पर्श करे |

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