हा हा दैन्याष्टकम्

(अनुष्टुप् छन्द)

हा हा श्रीवल्लभाधीश हाहाकृष्णमुखाम्बुज ।
हा हा वियोग भावाग्ने देहि में निजदर्शनम् ॥ १॥

(यहाँ हा हा शब्द वियोग को न सहने के कारण खेद को व्यक्त करता है) हे श्री वल्लमाधीश! हे कृष्णचन्द्र के मुखारविन्द स्वरूप ! हे वियोग के भाव से अग्निस्वरूप ! मुझे आपका दर्शन दीजिये । ॥१॥

हा हा विशालनयन हा हा फुल्लतमानन।
हा सुनासिकाशोभ देहि में निज दर्शनम् ॥ २॥

हे विशाल नेत्र वाले ! हे प्रफुल्लित मुख वाले! सुन्दर नासिका की शोभा वाले! मुझे आपका दर्शन दीजिये ॥२॥

हा हा ऽलकावृतमुख हा हा मितसुधाकर।
हा हा तिरम्यचिबुक देहि मे निजदर्शनम् ॥३॥

हे केशावलिसेघिरे हुए मुख वाले! हे अमित सुधा जिनके अधर में है ऐसे! हे अतिसुन्दर चिबुक-हडपची वाले! मुझे आपका दर्शन दीजिये | ॥३॥

हा हा निजजनाधार हा हा दीन जनाश्रय।
हा हा दयार्द्रहृदय देहि मे निज दर्शनम् ॥४॥

हे निजजन के आधार! हे दीनजनों के आश्रय रूप! हे दया से पिघले हुए हृदय वाले ! श्रीमहाप्रभुजी ! मुझे आपके दर्शन दीजिये। ॥४॥

हा हा स्वकीय सर्वस्व हा हाऽधनमनोधन।
हा हा मृदुलस्वान्त देहि मे निजदर्शनम् ॥५॥

हे स्वकीय भक्तों के सर्वस्वरूप! हे निर्धनों के मन के धनरूप! हे अति कोमल अंत: करण वाले श्री महाप्रभुजी ! मुझे आपके दर्शन दीजिये। ॥५॥

हा हा कृत स्वकीयार्ते हा हा भावार्तिदायक।
हा हा हृदयभावज्ञ देहि में निज दर्शनम् ॥६॥

हे स्वकीयजनों को आर्तिका दान करने वाले! हे भाव रूपी आर्ति को देने वाले! हे हृदय के भाव को जानने वाले श्रीमहाप्रभुजी ! मुझे आपके दर्शन दीजिये ॥६॥

हा हा निजजन प्राण हा हा निजजनावृत।
हा हा पुष्टिपथाचार्य देहि मे निज दर्शनम् ॥७॥

हे स्वकीयजनों के प्राण ! हे स्वकीयजनों से घिरे हुए! हे पुष्टि-अनुग्रह मार्ग के आचार्य श्री महाप्रभुजी ! मुझे आपका दर्शन दीजिये। ॥७॥

हा हा विजित कन्दर्प हा हा स्वानन्दतुन्दिल।
हा हा हरिविहारात्मन् देहि मे निजदर्शनम् ॥ ८॥

हे कामदेव को जीतने वाले! हे अपने आनन्द से पूर्ण! हे श्री हरि के विहार स्वरूप श्रीमहाप्रभुजी ! मुझे आपका दर्शन दीजिये। ॥८॥

इति श्रीहरिदासोक्तं हा हा दैन्याष्टकम् सम्पूर्णम् ।

ha ha dainyashtakam in hindi