जन्माष्टमी – कृष्ण जन्मोत्सव

जन्माष्टमी पुष्टिमार्ग महा उत्सव, कृष्ण जन्मोत्सव तिथि , जन्माष्टमी के पद कीर्तन, श्रीनाथजी जागरण दर्शन, जन्माष्टमी पूजन, पंचामृत स्नान,पुष्टिमार्ग सेवाक्रम |

तिथि : श्रावण कृष्णपक्ष अष्टमी

जन्माष्टमी महा महोत्सव की मंगल बधाई | आज का उत्सव समग्र पुष्टि श्रुष्टी के लिए सर्वाधिक महत्व का उत्सव है | आज हमारे इष्ट भगवान परम ब्रम्ह श्री कृष्ण जन्मोत्सव है | मथुरानगरी के राजा कंश के कारागार मे माता देवकी और पिता वासुदेव के पुत्र के रूप मे आपका जन्म हुआ है |

कई मतों के अनुसार आप अजन्मा है | आपका प्राकट्य हुआ है | जैसे ही माता देवकी पुत्र को जन्म देने वाली थी उस समय अंधकार मे एक दिव्य प्रकाश हुआ | दिव्य पकाश मे देवकी जी और वासुदेव जी ने दर्शन किए तो प्रभु बाल स्वरूप से एवं चतुर्भुज स्वरूप से प्रकट हुए है |

तद पश्चात वसुदेव जी की बेड़िया खुल गई | कारागार खुल गए | सैनिक निंद्रामय हो गए | वसुदेव जी प्रभु को लेकर मथुरा से यमुनाजी को पार कर गोकुल ले आए | वसुदेव जी ने प्रभु को गोकुल मे नंदराई जी के वहा यशोदाजी के पुत्र के रूप ने छोड़ गए | और यशोदाजी की पुत्री जो योगमाया का स्वरूप है उनको अपने साथ मथुरा पधरा लाए |

जन्माष्टमी , कृष्ण जन्मोत्सव, कृष्ण जन्म कथा
जन्माष्टमी , कृष्ण जन्मोत्सव, कृष्ण जन्म कथा

यहा पर भी एक भाव है | भगवान श्री राम पुरुषोत्तम है | श्री कृष्ण पूर्ण पुरषोत्तम है |

मथुरा मे प्रकट हुए भगवान श्री कृष्ण मर्यादा पूर्णपुरुषोत्तम  प्रभु है | जब वैष्णव ठाकुरजी को पुष्ट करवाने वल्लभकुल आचार्य के पास जाते है | तब प्रभु पंचामृत स्नान होता है जिसमे यमुनाजी का स्पर्श होता है | इस से हमारे मर्यादा पूर्णपुरुषोत्तम प्रभु पुष्टि पूर्णपुरुषोत्तम प्रभु के रूप मे आते  है |

यह भाव इसी लीला से जुड़ा है | जब वसुदेव जी प्रभु को मथुरा से पधराकर यमुनाजी को पार कर रहे थे तब यमुनाजी ने प्रभु के चरणारविंद का स्पर्श किया | जिससे मर्यादा पूर्णपुरषोत्तम प्रभु यमुनाजी समा गए | और पुष्टि पूर्णपुरुषोत्तम प्रभु वसुदेवजी के साथ गोकुल पधारे |

11 वर्ष बाद मथुरा के लिए व्रज से जाने के समय भी जब हमारे प्रभु ने यमुनाजी मे स्नान किया | तब हमारे पुष्टि पूर्ण पुरुषोत्तम प्रभु व्रज मे ही रुक गए | और जो मर्यादा पूर्णपुरुषोत्तम प्रभु जो यमुनाजी मे समा गए थे | वह वहा से मथुरा पधारे |

इसी कारण से प्रभु पुष्टि पुरषोत्तम तो सदा से व्रज मे ही बिराज रहे है | इसलिए व्रज मे नित्य लीला है |

पुष्टिमार्ग की नित्य सेवा प्रणालिका एवं उत्सव , वर्षोत्सव प्रणालिका का प्रारंभ आज से होता है |

श्री महाप्रभुजी ने पुष्टिमार्ग मे  भगवान विष्णु के 10 अवतार मे से चार अवतार

  • नृसिंह अवतार
  • वामन अवतार
  • राम अवतार
  • कृष्ण अवतार

को अधिक महत्व  दीया  है | इसके पीछे का भाव यह है की इन अवतार कार्यों मे प्रभु ने अपने भक्त जो निसाधन है |  निसाधन भक्ति  है उन पर प्रभु ने अत्यंत कृपा बरसाई है | कृपा का एक अर्थ ही पुष्टि है | इसलिए पुष्टिमार्ग मे इन चार अवतार के प्रकट्य उत्सव को इन  चार जयंती मे पुष्टिमार्ग मे उपवास की रीत है |

उपवास करने का मुख्य कारण यह है की इन उत्सव पर प्रभु हमारे बीच पधारे, उनके दर्शन करने उनके सन्मुख जाते है | तो उनके सन्मुख होने से पूर्व हम उपवास करके हमारी आंतरिक सुध्धी करके  प्रभु के सन्मुख हो |

लोगों के मनमे यह विचार स्थित है की जो मर गया हो उनकी जयंती होती है | परंतु शास्त्र मे एसा कही वर्णन नहीं है | जयंत शब्द का अर्थ है जो हमेशा विजय रहते है | इसी कारण से भगवान विष्णु का एक नाम जयंत है |

स्कन्द पुराण मे जयंती की व्याख्या आती है की जो तिथि जय और पुण्य प्रदान करने वाली हो उसे जयंती कहते है | ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस तिथि पर सभी ग्रहों स्थिति उच्चतम हो , उस तिथि को जयंती कहते है | कोई सामान्य मनुष्य की जयंती नहीं हो शक्ति |

Source : Ved Education

आज प्रभु को पंचामृत स्नान होता है | साज सजावट सभी नई होती है | आज भारी से अतिभारी शृंगार क्रम होता है | आज मद्य  रात्री मे प्रभु का जन्मोत्सव मनाया जाता है | आज मंदिरों मे संध्या आरती दर्शन पश्चात जागरण के दर्शन होते है | जो मध्य रात्री तक होते है | हवेली मंदिरो मे अपनी प्रणालिका अनुसार जागरण के दर्शन होते है | फिर संखनाद के साथ प्रभु जन्म उत्सव मनाया जाता है | तब बालकृष्णजी स्वरूप को पंचामृत स्नान कराया जाता है | समग्र रात्री उत्सव भोग धराकर प्रातः नंद महोत्सव मनाया जाता है |

वैष्णवों के घर मे सेवा मे प्रभु को रात्री तक जगाने का क्रम नहीं है | प्रभु को  पोढ़ाने का क्रम होता है |  हवेली – वैष्णव घरों की सेवा प्रणालिका भिन्न होती है |

श्रीनाथजी दर्शन – जन्माष्टमी 

जन्माष्टमी , कृष्ण जन्मोत्सव, कृष्ण जन्म कथा

श्रीनाथजी में जन्माष्टमी निमित सभी साजा नयी आती हैं. जैसे शैयाजी की गादी, चादर, श्रीजी सेवा में धराए जाने वाले लकड़ी के खिलौना, लकड़ी के पट्टे (जिन पर भोग आवे) इत्यादि | सभी द्वार में हल्दी से दोहरा डेली मंढे,बंदरवाल बंधे।सभी समय जमना जल की झरीजी ।

चारो समय थाली की आरती।गेंद चौगान,दिवाला सोना के।मंगला आरती पीछे श्रीजी को धोती उपरना धरावे व तिलक अक्षत होके, दूध,दही,घी,बुरा,शहद से पंचामृत होवे।मंगला के दर्शन पीछे फुलेल,आंवला,चन्दन,उबटना से प्रभु के दोहरा अभ्यंग होवे।चौखटा प्राचीन जड़ाऊ ।तकिया जड़ाऊ।

वस्त्र:- चागदार बाग,चोली,पटका, कूल्हे सब केसरी जामदानी के।सुथन रेशमी सुनहरी छापा की।ठाड़े वस्त्र मेघ स्याम दरियाई के।पिछवाई लाल दरियाई के ,बड़े लप्पा की।

आभरण:- सब उत्सव के।तीन जोड़ी को श्रृंगार।,हीरा, पन्ना,माणक व मोती के हार, माला आदी धरावे।कस्तूरी,कली आदी सब माला आवे।दो हालरा,बघनखा आदी धरावे।चोटीजी माणक की।श्रीमस्तक पे पाँच चन्द्रिका को जोड़ धरावे।वेणु वेत्र तीनो हीरा के।पट गोटी जड़ाऊ।आरसी जड़ाऊ व राजभोग में उस्ताजी की बड़ी दिखावे।

श्रृंगार में तिलक होवे।पण्ड्याजी वर्ष बाचे।आरती।

आज से राजभोग के अनोसर भीतर होवे।नित्य क्रम से शयन तक की सेवा होवे।फिर जागरण के दर्शन खुले।जन्म के समय 21 तोप की सलामी देवे।फिर पंचामृत होवे।

फिर महाभोग धरावे।महाभोग मे राजभोग वत सब सकड़ी,पाँच भात,केसरी पेठा,मीठी सेव आदी अरोगे।अन सकड़ी में छुट्ठी बूंदी,दूध घर कोसाज,घेवर,बाबर,सेव,मठड़ी,गुंज्जा,आदि सभी सामग्री आवे।

मंगला – नैन भर देखो नन्दकुमार (समाज के साथ) 

तिलक – आज बधाई को दिन नीको 

राजभोग- ऐ रीऐ आज नन्दराय के आनंद

आरती –  यह धन धर्म ही ते पायो

शयन – चलो मेरे लाडिले हो

जागरण – पद्म धर्यो, मोहन नन्द्रराय, वन्दे धरन, भादो की रात, महानिस भादो, जन्म लियो शुभ

Seva kram  courtesy: Shrinathji Temple Nathdwara Management |

जन्माष्टमी की बधाई के पद, पलना के पद  आप नीचे दी गई ई-बुक मे से प्राप्त कर शकते है |

Badhai – Palna k Pad kirtan

यह बुक पध्य साहित्य शेकशन मे भी उपलब्ध है |

जागरण कीर्तन –

राग : मालव

पद्म धर्यो जन ताप निवारण ।
चक्र सुदर्शन धर्यो कमल कर भक्तनकी रक्षा के कारण ॥१॥
शंख धर्यो रिपु उदर विदारन गदाधरी दुष्टन संहारन ।
चारौ भुजा चारौ आयुध धरे नारायण भुव भार उतारन ॥२॥
दीनानाथ दयाल जगत गुरू आरति हरन चिंतामनि ।
परमानंद दासकौ ठाकुर यह औसर छांडो जिन किनि ॥३॥

राग : कान्हरो

आठें भादोंकी अँधियारी |
गरजत गगन दामिनी कोंधति गोकुल चले मुरारि ॥१॥
शेष सहस्र फन बूँद निवारत सेत छत्र शिर तान्यौ।
बसुदेव अंक मध्य जगजीवन कहा करैगौ पान्यो ॥२॥
यमुना थाह भई तिहिं औसर आवत जात न जानयी ।
परमानंददासको ठाकुर देव मुनिन मन मान्यो ॥३॥

राग : कान्हरो

हरे जनमतही आनंद भयौ ॥
नवविधि प्रगट भई नंदद्वारे सब दुख दूरि गयौ ॥१॥
वसुदेव देवकी मतोौ उपायो पलना बॉस लयी ।
कमलाकांत दियौ हुंकारो यमुना पार दयौ ॥२॥
नंदजसोदाके मन आनंद गर्ग बुलाय लयो ।
परमानंददासकौ ठाकुर गोकुल प्रकट भयौ ॥३॥

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