चैत्र नव वर्ष – नव संवन्तसर

भारतीय चैत्र नव वर्ष , पुष्टिमार्ग नव संवन्तसर श्रीनाथजी दर्शन , नव संवन्तसर के पद, माहात्म्य, श्रीनाथजी सेवा क्रम की जानकारी |

तिथि : चैत्र शुक्लपक्ष एकम

भारत भूमि एवं सनातन धर्म की अदभुत विशेषताओ मे से एक आज का उत्सव है | जहा पर पाश्चात्य संस्कृति मे मध्य रात्री को शीतल बर्फ से ढकी प्रकृति मे उनका नया वर्ष आरंभ होता है | यहा पर भारत मे नव वर्ष का उत्सव का आनंद मानो प्रकृति स्वयं ले रही है |

शीतऋतु पश्चात  इन दिनों मे प्रकृति खिल उठती है | पेड़ पौधे फूल आदि खिलने लगते है | आबोहवा स्वास्थय वर्धक हो जाती है | इस समय भारत भूमि का सनातन धर्म के नए वर्ष का आरंभ होता है |

कुछ रोचक तथ्य :

  • एसा माना जाता है की  चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिपदा (एकम) को ही सूर्योदय के समय ब्रम्हाजी ने श्रुष्टी की उत्पत्ति की है | इसी कारण से नव संवन्तसर कहा जाता है |
  • त्रेतायुग मे आज के दिवस की प्रभु श्री राजा राम का राज्याभिषेक हुआ था |
  • शक्ति उपासना का पर्व चैत्री नवरात्रि आज से आरंभ होता है |
  • आज के दिवस ही उज्जैन के सम्राट राजा विक्रमादित्य जी द्वारा विक्रमसंवन्त का सुभारम्भ हुआ था |

पुष्टिमार्ग में आज की सेवा श्री स्वामिनीजी की ओर से होती है | अतः प्रभु को आज छापा के खुलेबंद के वस्त्र, श्रीमस्तक पर छापा की कुल्हे एवं मोरपंख की जोड़ धराये जाते हैं | आज प्रभु के सन्मुख नव वर्ष का पंचाग वाचन होता है | न्योछावर की जाती है | आज प्रभु राजभोग से फूल मंडली मे बिराजेंगे |

नव संवन्त सर चैत्र नव वर्ष श्रीनाथजी दर्शन फूल मंडली

आज से प्रभु की सेवा मे कुछ बदलाव होंगे |

आज से प्रभु की शैयाजी शैया मन्दिर के स्थान पर मणिकोठा में साजी जाती है | और इस कारण आज से शयन के दर्शन बाहर नहीं खोले जाते |

आज से श्रीजी में ज़री के वस्त्र नहीं धराये जायेंगे. मलमल पर छापा के वस्त्र आज से प्रभु को धराने प्रारंभ हो जायेंगे | विगत कल तक मंगला में श्रीजी के श्रीअंग पर दत्तु और पीठिका पर दग्गल धरायी जा रही थी |
आज से प्रभु के श्रीअंग पर उपरना धराया जायेगा, दग्गल पूर्ण रूप से विदा हो जाएगी |

श्रीनाथजी दर्शन – नव संवन्तसर

नव संवन्त सर चैत्र नव वर्ष श्रीनाथजी दर्शन

सभी द्वार में डेली मंढे, बंदरवाल बंधे। थाली की आरती। जमना जल की झरीजी भरावे। गेंद चौगान, दिवाला सोना के। अभ्यंग। भाँतवार बंटा चढ़े। पण्ड्याजी टीपना बांचे। राजभोग में गुलाब की दोहरा मंडली आवे। आज से जरी के वस्त्र नहीं आवे। मंगला में आज से उपरना धरावे। राजभोग में छः बीड़ा की सिकोरी आवे।

वस्त्र:- खुले बन्ध, कूल्हे लाल छापा के, सुनहरी किनारी के। सुथन पीले छापा की। ठाड़े वस्त्र मेघ स्याम दरियाई के। पिछवाई लाल छापा की हरे हाशिया की।

आभरण:- सब उत्सव के। हीरा की प्रधानता। बनमाला को श्रृंगार। श्रीकर्ण में हीरा के कुंडल। कली, कस्तूरी आदी सब धरावे। कूल्हे पे टिका, त्रवल दोहरा । श्रीमस्तक पे पाँच मोर चन्द्रिका को जोड़। चोटी हीरा की। वेणु वेत्र हीरा के। पट उत्सव को, गोटी सोना की। आरसी राजभोग में सोना के डाँड़ी की, श्रृंगार में चार झाड़ की।

चैत्री गुलाब से निर्मित मंडली (बंगला) में श्रीजी विराजित होते हैं | इस मंडली में गेंद, चौगान दोहरे धराये जाते हैं | मनोरथ के रूप में विविध सामग्रियां प्रभु को अरोगायी जाती हैं |

राजभोग से संध्या-आरती तक प्रभु मंडली में विराजते हैं एवं आरती दर्शन के पश्चात मंडली बड़ीकर (हटा) दी जाती है |

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मंगला – जान्यो जान्यो री सथान कान 

राजभोग – आज की बानक बल-बल

आरती –  आई है हमारे कोऊ संग पूजो चलो क़दम 

शयन – ऐ मोपे आज की बानक लाल कहीं

पोढवे – राय गिरधरन समग राधिका रानी

Seva kram  courtesy: Shrinathji Temple Nathdwara Management | 

चैत्र मास संवत्सर परवा, वरस प्रवेश भयो है आज l
कुंज महल बैठे पिय प्यारी, लालन पहेरे नौतन साज ll 1 ll
आपुही कुसुम हार गुही लीने, क्रीड़ा करत लाल मन भावत l
बीरी देत दास ‘परमानंद’, हरखि निरखि जश गावत ll 2 ll

राग सारंग 

चैत्रमास संवत्सर परिवा नयो परव मान्यो हे आज ।।
नूतन लाड लडावत सब विधि श्रीवल्लभ श्रीविठ्ठल महाराज ॥ १ ॥
नये बसन मनिगन आभूषण धरत असन नये रुचि उपजाय ।
अचमन करि मुख पोंछ बसनतें बीरीदेत सुगंध मिलाय ॥२ ॥
विविध फूलमंडली मनोहर आंगन मोतिन चोक पुराय ॥
आरती करत जु मात जसोदा न्योछावर करि अति सचुपाय ॥ ३ ॥
नवदल निम्ब मधुर मिश्री ले देत सबनकों मन हरखाय ।।
ब्रह्मदासकों माला बीडा देत प्रभु अति निकट बुलाय ॥४ ॥