नाग पंचमी – ऊर्ध्व भुजा प्राकट्य

नाग पंचमी भारत वर्ष मे अलग अलग तिथि मे मनाए जाने की मान्यता है | हमारे ब्रिज मे आज के दिवस उत्सव मनाया जाता है | पुष्टिमार्ग मे यह उत्सव गिरीराजजी के भाव से मनाया जाता है | आज का दिवस पुष्टि श्रुष्टी के लिए अत्यंत ही मंगल – उत्साह का दिवस है |

तिथि :  श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी

आज के दिवस ही हमारे श्री गोवर्धनधर श्री गोवर्धननाथजी की ऊर्ध्व भुजा प्राकट्य का दर्शन  हुआ था | आज के दिवस गाय को ढूँढने आए बृजवासी को आपकी ऊर्ध्व भुजा के दर्शन दीए |

द्वापर युग मे भगवान श्री कृष्ण के गुरु महर्षि गर्गाचार्यजी ने हजारों वर्ष पूर्व रचित गर्गसंहिता में गिरिराज खंड का भविष्य लिखा था कि कलयुग में श्री कृष्ण यहाँ प्रकट होंगे |

येन रूपेण कृष्णेन घृतो गोवर्धनो गिरि: l
तद्रूपं विद्यते तत्र, राजन् श्रृंगारमंडले ll
अब्जाश्र्वतु: सहस्त्राणि तथा पंचशतानि च l
गतास्तत्र कलेरादौ क्षेत्रे श्रृंगारमंडले ll
गिरिराज गुहामध्यात् सर्वेषां पश्यंता नृप l
स्वतः सिद्धं च तद्रूपं हरे: प्रादुर्भविष्यति ll
श्रीनाथं देवदमनं च वदिष्यन्ति सज्जना: ll

अर्थात भगवान कृष्ण ने जिस स्वरुप में (बायाँ हाथ उठा) गिरिराज पर्वत उठाया था वह स्वरुप वर्तमान में व्रज में गुप्त रूप में विराजित है | कलियुग के 4500 वर्ष पूर्ण होने के पश्चात | श्रीकृष्ण का स्वयंसिद्ध स्वरूप व्रज में श्री गिरिराज जी के मध्य शीखर देव शीखर की कन्दरा में से स्वतः प्रकट होगा | एवं इस स्वरुप को सज्जन व्यक्ति देव-दमन कह कर पुकारेंगे |

श्री गर्गाचार्यजी की भविष्य वाणी अक्षरक्ष सत्य सिद्ध हुई | वी.सं. 1466 गुर्जर अषाढ़ वद तीज के दिवस गिरीराजजी के मध्य सिखर – देव शिखर से प्रभु की ऊर्ध्व भुजा का प्राकट्य हुआ | फिर श्रावण सूद पाँचम के दिवस एक वृजवासी जो अपनी गाय ढूँढने आया था उसको प्रभु की ऊर्ध्व भुजा के दर्शन हुए |

फिर 69 साल तक भुजा के पूजन का क्रम प्रारंभ हुआ | हर वर्ष नाग पंचमी को यहा मेला लगने लगा | लोग मानता मांगने लगे | फिर विक्रम संवत 1535 की चैत्र कृष्ण एकादशी को प्रभु का मुखारविंद प्रकट हुआ | प्रभु तब मात्र दही दूध की सामग्री आरोगते |

फिर 14 वर्ष पश्चात श्री महाप्रभुजी ने विक्रम संवत 1549 में प्रभु को श्री गिरिराजजी की कन्दरा से बाहर पधराया |

सम्पूर्ण वार्ता प्रसंग आप नीचे दीए गए विडिओ मे से जान सकते है |

श्रीनाथजी के प्राकट्य का धोल आपको हमारे नित्य नियम शेकशन मे गुजराती भाषा मे से प्राप्त हो शकता है | नीचे दी गई लिंक से प्राप्त हो शकता है |

શ્રીનાથજી ના પ્રાકટ્ય નું ધોળ

श्रीनाथजी दर्शन

श्रीनाथजी ऊर्ध्व भुजा प्राकट्य दर्शन

साज – आज श्रीजी में श्री गिरिराजजी की एक ओर आन्योर ग्राम एवं दूसरी ओर जतीपुरा ग्राम | दोनों ग्रामों से व्रजवासी श्रीजी की उर्ध्व भुजा के दर्शन करने जा रहे हैं | ऐसे सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है |

गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है |

वस्त्र:- पिछोड़ा कोयली,सुनहरी पठानी किनारी को।श्रीमस्तक पे कोयली छज्जेदार पाग,सुनहरी जरी की बाहर की खिड़की की।ठाड़े वस्त्र लाल।पिछवाई चितराम की उर्धभुजा प्राकट्य की।

आभरण:- सब मोती के।मध्य को श्रृंगार।चार कर्ण फूल आवे।त्रवल नहीं आवे,बध्धी धरावे।श्रीमस्तक पे जमाव को क़तरा,डाँख को व लूम,तुर्री सुनहरी।कली की माला धरावे।वेणु वेत्र स्याम मीना के।पट कोयली,गोटी चाँदी की।

अनोसर में पाग पे से सुनहरी खिड़की बड़ी करके धरानी।

विशेष में सेव की खीर अरोगे।

मंगला – बोले माई गोवर्धन पर मूरवा

राजभोग – देखो अद्भुत अवगत की गत 

हिंडोरा – झुलत है राधा सुंदर, झुलत लाल गोवर्धनधारी, गृह-गृह ते आई व्रज सुंदर, झुलत रंग हिंडोरे सुंदर 

शयन – माई री झूलत रंग हिंडोरे

Seva kram  courtesy: Shrinathji Temple Nathdwara Management |

नाग पंचमी हिंडोला के पद :

राग  : काफी

नीलांबर पहेर तन गोरें झूलत सुरंग हिंडोरें ॥
मनि मानिक हीरा रतन मुक्ताफल शोभितहे तन गोरें ॥१ ॥
सुद तिथी नागपंचमी दिन दयाल दरस दीवो जोरें ॥
जन्म दिवस जान बलदाऊ को मदन मोहन कृपा करी अतोरें ॥ २ ॥
झुलत रंग बढ्योजु परस्पर झुलावन मिले आय चहुं ओरें ॥
हरिदास प्रभुकी यह शोभा चीत चोर्यो इन नयनकी कोरें ॥३ ॥

राग : बिलावल 

बरसानेकी नारि सबे मिल झूलन आईं॥
नखसीख सबे सिंगार राधिका परम सुहाई ॥
चंद्रावली ललिता सखी जुथ सबे जुर आय॥
गोवरधनकी तरहटी रच्यो हिंडोरो जाय॥ सबेमिलि देखन जेयें ॥१॥
कंचन मनिके खंभ हीरा डांडीजु जराये ॥
चोकी रतन जडाब मरुबे पन्नाजु लगाये ॥
तापर कलसा हेमके उपर ध्वजा फहेराय ॥
मोर पपेया पीठ पीउ करे हो कोयल शब्द सोहाय।॥ सबे मिलि देखन जेयें २ ॥
दिन नागपंचमी जाने सबे व्रजवासी आये ॥
ताल मृदंग उपंग बाजे बहोभांत बजाये॥
नागदमन इंद्रदमन मध देवदमन कहेवाय॥
महामहोच्छव जानकेंहों दई हे भुजा दरसाय॥ सबेमिलि देखन जेयें॥३ ॥
श्री गोवरधन के टादेज सहारन द्रमवेलि॥
गावत ब्रजकी नार सबे नागरिजु नवेली॥
झोटादेत हो मनमें मोद न माय॥
यह सुख शोभा निरखकें हो सूरज बलबल जाय॥ सबेमिलि देखन जेयें ॥४॥

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