पुष्टिमार्ग उत्सव सेवा क्रम , ठकुरानी त्रीज़ के पद , ठकुरानी तीज श्रीनाथजी दर्शन , पुष्टिमार्ग के तीन मुख्य एतिहासिक मिलन मे से एक श्री महाप्रभुजी एवं श्री यमूनाजी का अलौकिक मिलन वार्ता प्रसंग |

तिथि : श्रावण शुक्ल पक्ष तीज

उत्सव से जुड़ा प्रसंग :

वी. सं. १५४९ मे श्री महाप्रभुजी केवल १४ वर्ष की आयु मे जीव के उद्धार हेतु भारत परिक्रमा करने पधारे तब ब्रिज भूमि पधारे वहा गोकुल मे पधारे | आप के साथ आप के शिष्य श्री दमलाजी और श्री कृष्णदास मेघन भी आप के साथ पधारे हते |

श्री महाप्रभुजी विचारमग्न थे की पुरानो मे जिन गोकुल,गोविंद घाट और ठकुरानी घाट का वर्णन है एसे अवशेष चिन्ह तो कही नहीं दिख रहे थे | तब यमुनाजी के जल मे दूर से गतिविधि हुई | तब श्री यमुनाजी के जल मे दूर एक स्वरूप के दर्शन श्री महाप्रभुजी को भए |

अलौकिक श्याम वर्ण युवती धीरे धीरे श्री चरणों की पायल के मधुर स्वर के साथ नजदीक पधार रहे है | मुकुट काछनी के शृंगार धारण किए हुए है | श्री मुख पर दिव्य अलौकिक तेज है | श्री वल्लभ बिना पलके जुकाए दर्शन कर रहे थे |

song credits @PushtiJanKirtan youtube Channel

दोनों श्री हस्त जोड़ के नमन करते है और आपश्री के श्री मुख से स्वर प्रकट होता है “नमामि यमुना महम” और साक्षात श्री यमुनाजी श्री महाप्रभुजी को दर्शन देते है | जैसे जैसे श्री यमुनाजी नजदीक पधार रही है |

वैसे वैसे श्री महाप्रभुजी आप के गुण के वर्णन करते है और कुछ इस तरह महाप्रभुजी ने  षोडसग्रंथ मे सर्व प्रथम ग्रंथ  “श्री यमूनाष्टकम्”  की रचना की | श्री वल्लभ ने यमुनाजी के स्वरूप का वर्णन 8 श्र्लोक मे किया है |

इस कारण से यह अष्टक – यमुनाष्टक ग्रंथ है | और नौवे श्र्लोक मे फल बताया है |  तब श्री यमुनाजी ने ठकुरानी घाट एवं गोविंद घाट के क्षेत्र स्पष्ट किए | यह अलौकिक प्रसंग ठकुरानी घाट पर हुआ है | जहा आज भी श्री महाप्रभुजी की बैठकजी बिराजमान है | यह पवित्र दिन “ठकरानी तीज” है |

ઠકુરાની ઘાટ દર્શન

यमुनाष्टक ग्रंथ अन्य सभी ग्रंथ, नित्य नियम पाठ के साथ हमारी वेबसाइट के अध्ययन सेक्शन के नित्य नियम सेक्शन मे अवेलेबल है | जिसकी लिंक यह है :

नित्य नियम 

श्रीनाथजी दर्शन

ठकुरानी तीज श्रीनाथजी दर्शन नाथद्वारा

सभी द्वार में हल्दी से डेली मंढे,बंदरवाल बंधे। जमना जल की झारीजी ।चारो समय थाली की आरती उतरे।गेंद चौगान,दिवला सोना के।मंगला के दर्शन पीछे प्रभु के अभ्यंग होवे।

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है | गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है | तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है |

वस्त्र:- पिछोड़ा व छज्जेदार पाग लाल चोफुली चुंदड़ी के।चुंदड़ी के वस्त्र आज से ही आरम्भ होवे।ठाड़े वस्त्र पिले।पिछवाई चितराम की।

आभरण:-सब उत्सव के,हीरा के।बनमाला को श्रृंगार।हीरा, पन्ना,मानक मोती के हार,माला,दुलड़ा धरावे।कस्तूरी,कली आदी सब माला आवे।कर्ण फूल चार हीरा के।श्रीमस्तक पे एक मोर चन्द्रिका।वेणु वेत्र तीनो हीरा के।पट उत्सव को,गोटी जड़ाऊ।आरसी चार झाड़ की।

विशेष में गोपी वल्लभ में चिरोंजी के बड़े नग। सकड़ी में केसरी पेठा,मीठी सेव आदी अरोगे।

सायं कलकती कांच के हिंडोलाना में झूले।

मंगला : भींजत कब देखो इन नेना

राजभोग- सारी मेरी भींजत है जु, 

हिंडौरा- सावन तीज सुहाग, नयी ऋतु सावन तीज सुहाई, सावन नीज किशोरी झुलत, सावन तीज हिंडोरे झूलत 

शयन-  प्यारे पिय के संग आज झूली

Seva kram  courtesy: Shrinathji Temple Nathdwara Management | 

राग सोरठ मल्हार

देख सखी तीज महातम आयो ||
श्यामाश्याम परस्पर झूलत निरख परम सुख पायो ॥१ ॥
दिशदिश घोरघोर घन गरजत मंदमंद वरखायो ।।
दादुर मोर पपैया बोलत कोयल शब्द सुनायो ।।२ ।।
ताल मृदंग किन्नरी दुंदुभी प्रेम निसान बजायो ।।
सूरदास प्रभु युगल विराजत अखिल भुवन यशछायो ॥३ ॥

सुर मल्हार

आलीरी सावन तीज सुहाग
देखि बन धन हरित बेली होत है अनुराग || ध्रु. ||
(तहा) लाडिली वृषभान तनया सजे सकल शृंगार | सुभग तन पचरंग चुनरी, केसरी आड़ लिलार ||
मिली खत-दस बरस की सखी बनी एक ही सार | चली बर हिंडोले जुलन, राय के दरबार || 1 ||
कुरंगनेनी चंद बदनी, चलत मद गज चाल | बिहसी मधुरे बोल बोलत, करत बहुबिधी ख्याल ||
गावत सावन गीत प्रमुदित, श्रवण सुनत रसाल | चतुर चपल द्रगंचनिसों, मोह लिए नंदलाल || 2 ||
जुलत नवलकिशोर दोउ, बनी अद्भुत जोरी | देत झोंटा प्रेम रसभरी, सहचरी चउओरी ||
लाल गिरिधर रसभरे अती, केली सिंधु झकोरी | कमललोचन बिहसी चितवत, दास जनकी ओरी || 3 ||

गौड मल्हार

सावन की तीज हिंडोरे झूलें श्यामा प्यारी सुनकें मनमोहन आए हैं झूलन |
सखी भेष किए श्याम आए प्राण प्यारी पास अंग अंग आभूखन बेनी भरी फूलनि ||
नैननि काजर सोहै देखत त्रिभुवन मोहै तापर बेसर के मुक्ता की झूलन |
सूरदास प्रभु नारि रूप किए प्यारी संग झूलत यमुना के कूलन ||

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