स्नान यात्रा – ज्येष्ठाभिषेक – केसर स्नान
स्नान यात्रा पुष्टिमार्ग | ज्येष्ठाभिषेक उत्सव भाव एवं प्रभु श्री कृष्ण की उत्सव से जुड़ी लीला | केसर स्नान श्रीनाथजी दर्शन नाथद्वारा |
तिथि : ज्येष्ठ शुक्लपक्ष पूर्णिमा
स्नान यात्रा उत्सव भाव
आज की तिथि पर व्रजकुंवर का अभिषेक हुआ | व्रजराज नंदराई को लगा अब हमारे कुँवर श्री कृष्ण व्रज के राजा बनने के लिए सज्ज है | इस कारण नंदराइजी ने ब्रिज मे बड़ा उत्सव रखा | फिर विधि विधान से वेदमन्त्रों-पुरुषसूक्त का वांचन होता है |
प्रभु को सर्व प्रथम कुंकूम से तिलक होता है | फिर मंत्रोच्चार, संखनाद, झालर, घंटानाद, के मधुर ध्वनि के मध्य प्रभु श्री कृष्ण का राज्याभिषेक होता है | प्रथम संख से प्रभु का अभिषेक होता है | प्रभु के राज्याभिषेक के दर्शन करने सभी बृजवासी पधारते है |
यह ज्येष्ठ माह मे होने ज्येष्ठाभिषेक कहा जाता है | अभिषेक पश्चात नंदराइजी हमारे व्रजकुंवर श्री कृष्ण को व्रजराज के पद पर आसीन किया | प्रभु के दर्शन करने आये व्रजवासी अपने साथ गर्मी की ऋतुमे रसराज प्रभु के लिए रसयुक्त फल आम ले कर आते है |
भेट स्वरूप आम प्रभु को धरते है | इसी भाव नाथद्वारा मे आजभी इस उत्सव पर प्रभु को सवा लक्ष आम (१,२५,०००) प्रभु को धराए जाते है |

स्नान यात्रा पुष्टिमार्ग व्रज लीला दर्शन
उत्सव के अगले दिन प्रातः प्रभु को ग्वाल भोग धरने के पश्चात वल्लभकुल आचार्य , प्रभु की सेवा के मुख्याजी, भितरिया , सेवक तथा वैष्णव जन के साथ जल भरने पधारेंगे | स्वर्ण एवं रजत पात्र मे जल भर कर मंदिर मे लाया जाएगा |
फिर शयन के समय जल का अधिवासन होता है | पुष्टिमार्ग मे सेवा सभी भावनात्मक है | इसलिए बालक की रक्षा हेतु सभी वस्तु का अधिवासन किया जाता है | जल की गागर का भी चंदन एवं अन्य सामग्री से पूजन किया जाता है | भोग धरा जाता है | देवत्व स्थापित किया जाता है |
अधिवासन में जल की गागर भरकर उसमें कमल, जूही , मोगरा की कली, कदम्ब,निवारा की कली,गुलाब,रायबेली आदि आठ प्रकार के पुष्पों चंदन, केशर, बरास, गुलाबजल, यमुनाजल, आदि पधराये जाते हैं | अधिवासन के समय यह संकल्प किया जाता है |
“श्री भगवतः पुरुषोत्तमस्य श्च: स्नानयात्रोत्सवार्थं ज्येष्ठाभिषेकार्थं जलाधिवासनं अहं करिष्ये l”
स्नान यात्रा पुष्टिमार्ग सेवा क्रम
उत्सव के दिवस मंगला तक की सेवा नित्य अनुसार होती है | आज मंगला दर्शन में श्रीजी को प्रतिदिन की भांति आड़बंद धराया जाता है | मंगला आरती के उपरांत खुले दर्शनों में ही टेरा ले लिया जाता है |
और अनोसर के सभी आभरण व प्रभु का आड़बंद बड़ा (हटा) कर लाल रंग की किनारी से सुसज्जित श्वेत धोती, गाती का पटका एवं स्वर्ण के सात आभरण धराये जाते हैं | उपरांत टेरा हटता है और ज्येष्ठाभिषेक आरंभ होता है |
सर्व प्रथम प्रभु को कुंकुम से तिलक एवं अक्षत किया जाता है | फिर वल्लभकुल स्नान का संकल्प लेते है | फिर रजत की चौकी पर चढ़ कर मंत्रोच्चार, संखनाद, घंटानाद, झालर की मधुर ध्वनि के मध्य पिछली रात्री के अधिवासित जल से प्रथम संख से प्रभु को स्नान कराया जाता है |
इस दौरान पुरुषसूक्त गाये जाते हैं | पुरुषसूक्त पाठ पूर्ण होने पर स्वर्ण कलश मे जल भरके १०८ बार प्रभु का अभिषेक किया जाता है | इन दौरान स्नान यात्रा के – ज्येष्ठाभिषेक के पद गाए जाते है |

स्नान यात्रा पुष्टिमार्ग श्रीनाथजी दर्शन नाथद्वारा
हमने कई एसे वार्ता प्रसंग देखे जहा हमने महाप्रभुजी को ठाकोरजी के रूप मे दर्शन किए | परंतु स्नानयात्रा एक मात्र एसा अवसर है जहा हम ठाकोरजीमे श्री वल्लभ की जांखी कर शकते है |
सभी द्वार में हल्दी की डेली मंढे,बंदरवाल बंधे।सभी समय जमना जल की झारीजी आवे।चार समय थाली की आरती उत्तरे।शयन में आम की मंडली आवे।
मंगला आरती पीछे अनोसर के वस्त्र ,आभरण बड़े होव।धोती,गाती को पटका धरावे।सोना के सात आभरण धरा के दर्शन खुले।तिलकायतश्री अधिवासित जल से स्नान करावे।
साज : आज श्रीजी में श्वेत मलमल की पिछवाई धरायी जाती है जिसमें केशर के छापा व केशर की किनार की गयी है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र:-पिछोड़ा,स्वेत मलमल को,केसर की छाप वालो।श्रीमस्तक पे स्वेत छाप वाली कूल्हे।पिछवाई वस्त्र जेसी।
आभरण:-सब उष्णकाल व उत्सव के मिलमा।बनमाला को श्रृंगार।बद्दी धरावे।कली आदी सब माला आवे।श्रीमस्तक पे तीन चन्द्रिका को जोड़।वेणु वेत्र मोती के।आरसी हरे मखमल की,राजभोग में सोना के डांडी की।गोटी मोती की।
विशेष भोग में हांडी,बड़े टुक, पाटिया,दही भात,श्रीखंडभात,सतुआ,दुधघर को साज,बीज, चारोली के नग, गोपी वल्लभ मे मेवाबाटी,चालनी,अँकुरी, शीतल,सवा लाख आम आदी अरोगे।
मंगला – नमो देवी यमुने
राजभोग – जमुना जल गिरधर करत विहार
आरती – कृपा रस नैन कमल
शयन – सुंदर जमुना तीर री
मान – चारु नट भेख घरे
पोढवे – नवल किशोर नवल नागरी[ स्नान – मंगल ज्येष्ठ ज्येष्ठा पुन्यो करत स्नान गोवर्धनधारी ]
Seva kram courtesy: Shrinathji Temple Nathdwara Management |

स्नान यात्रा पुष्टिमार्ग श्रीनाथजी शृंगार दर्शन
मंगलजेष्ठ जेष्ठा पून्यो करत स्नान गोवर्धनधारी ॥
दधि ओर दूब मधुले सखीरी केसरघट जल डारत प्यारी ॥१ ॥
चोवा चंदन मृगमद सौरभ सरस सुगंध कपूरन न्यारी ॥
अरगजा अंगअंग प्रति लेपन कालिंदी मध्य केलि विहारी ॥ २ ॥
सखियन यूथयूथ मिलि छिरकत गावत तान तरंगन भारी ।
केसो किशोर सकल सुखदाता श्रीवल्लभ नंदनकी बलहारी ॥ ३ ॥
नंदको मन वांछित दिन आयो,
फुली फरत यशोदा रोहिणी, उर आनंद न समायो ||
गाम गाम ते जाति बलाई मोतिन चोक पुरायो ||
व्रज वनिता सब मंल गावत, बाजत घोष बधायो ||
प्रथम रात्रि यमुना जल घट भरि, अधिवासन करवायो ||
उठि प्रातकंचन चोकी धरी ता पर लाल बैठायो ||
राज बेठ अभिषेक करत है विप्रन वेद पठायो ।
जेष्ठ शुकल पून्यो दिन सुर बधु, हरखि फूल बरखायो ||
रंगी कोर धोती उपरणा, आभूषण सब साज, ।
द्वारकेश आनंद भयो प्रभु, नाम धर्यो ब्रजराज ||