गोवर्धनवासी साँवरे लाल तुम बिन रह्यो न जाए

श्रीनाथजी के अष्ट छाप कवि श्री चतुर्भुजदास जी रचित ‘ गोवर्धनवासी साँवरे लाल तुम बिन रह्यो न जाए ‘ पद  |

आज नाथद्वारा मे बिराजमान श्री गोवर्धननाथजी – श्रीनाथजी जब व्रज मे बिराज रहे थे | तब  श्री गुसाइजी – विठ्ठलनाथजी के द्वारा स्थापित अष्ट छाप मंडल  के कवि श्री चतुर्भुजदास जी जो बचपन से ही श्रीनाथजी की भक्ति मे समर्पित थे |

एक समय की बात है जब श्रीनाथजी को श्री गुसाइजी के घर सतघरा पधारने का मनोरथ हुआ | तब श्री गुसाइजी के  प्रथम लालन श्री गिरधरजी ने उनको अपने कंधे पर बिराजीत करके सतघरा पधराया |

दो महीने २१ दिन तक प्रभु को खूब लाड़ लड़ाए | इस और गोवर्धन मे प्रभु के सभी सखा की स्थिति प्रभु के विरह के कारण बिगड़ने लगि थी | चतुर्भुजदास जी जो एक दिन भी अगर प्रभु के दर्शन न हो तो व्याकुल हो जाते |

उन्होंने प्रभु के विरह मे यह पद की रचना की है | तब हमारे भक्त वत्सल श्रीनाथजी  ने कैसी अनूठी लीला रची |  पूरा प्रसंग हमारे वार्ता प्रसंग पेज पर अष्ट सखा मे चतुर्भुजदास जी के जीवन चरित्र मे सम्मिलित है |

पूर्ण प्रसंग को विडिओ के रूप मे अनुभव करे  :

govardhan vasi sanware Story | गोवर्धन वासी सावरे लाल से जुड़ी कहानी | Shrinathji Story | Krishna

गोवर्धन वासी सांवरे, तुम बिन रह्यो न जाये ॥

बंके चिते मुसकाय के, सुंदर वदन दिखाय ।

लोचन तलफें मीन ज्यों ही, पलछिन कल्प विहाय ॥१॥ गोवर्धन वासी..

सप्तक स्वर बंधान सों, मोहन वेणु बजाय ।

                                         सुरत सुहाई बांधि के, मधुरे मधुर गाय ॥२॥ गोवर्धन वासी.. 

रसिक रसीली बोलनी, गिरिचढ़ गाय बुलाय ।

गाय बुलाइ धूमरी, ऊँची टेर सुनाय ॥३॥ गोवर्धन वासी..

दृष्टि परी जा दिवस ते, तब तें रुचे नही आन ।

रजनी नींद न आव ही, विसर्यो भोजन और पान ॥४॥ गोवर्धन वासी..

दरसन को नयना तपे, वचन सुनन को कान ।

मिलिवे को हियरा तपे, जियके जीवन प्रान ॥५॥ गोवर्धन वासी..

मन अभि-लाषा यह रहे, लगे ना नयन निमेष ।

इक टक देखौ आवतो, नटवर नागर भेष ॥६॥ गोवर्धन वासी..

पूरण शशिमुख देखके, चित चोट्यो वाहि ओर ।

रूप सुधा रस पान को, जैसे चन्द चकोर ॥७॥ गोवर्धन वासी..

लोक-लाज विधि वेद की, छांड्यो सकल विवेक ।

कमलकली रवि ज्यों बढे, छिन-छिन प्रीति विशेष ॥८॥ गोवर्धन वासी..

मन्मथ कोटिक वारिणे, निरखत डग मगी चाल ।

युवति जन मन फंदना, अंबुज नयन विशाल ॥९॥ गोवर्धन वासी..

कुंज भवन क्रीडा करो, सुख निधि मदन गोपाल ।

हम वृंदावन मालती, तुम भोगी भ्रमर भुवाल ॥१०॥ गोवर्धन वासी..

यह रट लागी लाडिले, जैसे चातक मोर ।

प्रेम नीर बरसा करो, नव घन नंद किशोर ॥१२॥ गोवर्धन वासी..

युग-युग अविचल राखिये, यह सुख शैल निवास ।

श्री गोवर्धन रूप पर, बलजाई चतुर्भुज दास ॥१२॥ गोवर्धन वासी..

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