कृष्णदास जी अधिकारी – अष्ट छाप कवि

कृष्णदास अधिकारी जी जानकारी

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श्रीनाथजी अष्ट छाप कवि कृष्णदास जी अधिकारी जीवन चरित्र दर्शन

श्रीनाथजी ने लीला रचके पुरणमल क्षत्रिय से मंदिर निर्माण का कार्य प्रारंभ करवाया |

श्रीनाथजी मंदिर निर्माण कार्य

अब पूरे मंदिर का संचालन कर सके | हिसाब किताब करे, मंदिर निर्माण कार्य की देख रेख करे एसा कोई व्यक्तिकी आवश्यकता थी। श्रीजीबावा ने एक और लीला रची |

गुजरात के खेड़ा जिल्ला का चीलोत्रा गाव (अभी का चरोतर) | वहा के मुखी के वहा एक पुत्र का जन्म वीं. सं. १५५४ मे हुआ । पिता ने हरखभेर पुत्र के जनमाक्षर विद्वान पंडित से बनवाए और भविष्य पूछा तब पंडित ने कहा “आप बुरा मत लगाना लेकिन आपका पुत्र प्रभु का परम भक्त होगा, वहीवटी काम मे निपूर्ण होगा. साधु संत का संग करेगा, संगीत विध्या मे भी पारंगत होगा | परंतु आपके साथ नहीं रहेगा।”

पिता को पुत्र का सुख जीवनभर नहीं मिलने का दुख था पर जैसी ईश्वर इच्छा समजके आगे बढ़े | पुत्र का नाम रखा “कृष्णदास” कृष्णदासजी तेरह वर्ष के हुए। एक दिन पिता से हिसाब मे चूक हुई और राजा के समक्ष कृष्णदासजी को साक्षी के रूप मे बुलाया |

तब कृष्णदासजिने सब सच कह दिया की “मेरे पिता जानबूज कर हिसाब में हेराफेरी की है। राजा दयालु थे माफ किया परंतु मुखी का पद ले लिया गया। पिता को गुस्सा आया “यह साधु (पुत्र) की वजह से आया हुआ धन चला गया ।

कृष्णदासजी ने पिता को समजाया की आप आलोक और परलोक दोनों बिगाड़ रहे हो। पिता से कहा मे जीवन भर कभी जूठ नहीं बोलूँगा | साथ रहूँगा तो यही होगा। मुजे हरीनाम की ही धुन है। मुजे घर से जाने की आज्ञा दीजिए। पिताने  मंजूरी दे दी। 

घूमते घूमते मथुरा आए । यमुनाजी मे स्नान किया। फिर कई लोगों से बाते सुनी की गोवर्धन पर पर्वत देव प्रकट हुए है | मंदिर का निर्माण कार्य भी हो रहा है। उत्सुकता वस गोवर्धन की और गए। गिरिराजजी चड़के गोवर्धननाथजीके दर्शन के लिए आए ।

तब श्री महाप्रभुजी श्री गोवर्धनाथजी की आरती उतार रहे थे। कृष्णदासजी प्रभु के दर्शन कर रहे थे। श्री महाप्रभुजी ने आरती के पश्चात पीछे मुड़कर देखा और आज्ञा की “है! कृष्णदास आप आ गए।” कृष्णदासजी सोचमे पड गए |

मे कभी इनसे मिला नहीं. मेने कभी देखा नहीं फिर भी मेरा नाम जान गए। कृष्णदासजी श्री महाप्रभुजीकी शरण में गए। श्रीनाथजीके सन्मुख श्री महाप्रभुजीने नाम मंत्र दिए। बम्हसम्बंध होते ही कृष्णदासजी को प्रभुकी लीला की अनुभूति होने लगि | उन्होंने तुरंत पद की रचना की

“श्री वल्लभ पतित उद्धारन जानो”

श्री महाप्रभुजी कृष्णदासजी को अधिकारी के रूप मे नियुक्त करते हुए

फिर कृष्णदासजिने श्री महाप्रभुजी को बिनती की कृपानाथ कोई सेवा की आज्ञा करो | तब श्री महाप्रभुजी ने आज्ञा की मंदिर का नवनिर्माण कार्य चल रहा है | आप उसमे देख रेख रखो और कृष्णदासजी को अधिकारी बनाया |

कृष्णदास अधिकारी मंदिर के खर्च हिसाब का ध्यान रखते | मंदिर नवनिर्माण की देखरेख रखते और कुंभनदासजी. सुरदासजी के साथ बैठ कर कीर्तन गाते और सत्संग करते। श्रीजीबावा की सेवा मे रखे हुए बंगालीओ भ्रस्टाचार बढ़ रहा था।

उनको श्रीजी की सेवा से दूर करके साँचोरा ब्राम्हणो को श्रीजी की सेवा में नियुक्त करना उसमे मुख्य रामदास साँचोरा को श्रीजी की सेवा नियुक्त श्री कृष्णदास अधिकारी जी ने ही किया था । श्रीजीबावा उनकी कीर्तन सेवा से बहुत प्रसन्न रहते । हमेशा प्रभु के ततसूख का ख्याल रखते |

श्री'कृष्ण के रासलीला के दर्शन

 एक दिन श्रीजी बावा ने उनको स्वप्न मे आज्ञा की आप शयन के पश्चात चंद्र सरोवर आना | वहा हमे रास लीला की इच्छा है | साथ साथ श्याम कुंभार और उनकी पुत्री ललिता को भी लाएगा | वह दोनों पखावज बजाएंगे और आप कीर्तन गाना |

तब श्री कृष्णदासजी दूसरे दिन शयन के पश्चात दोनों को लेकर चंद्रसरोवर पहोचे | तो एक अत्यंत ही अद्भुत दर्शन हो रहे थे। प्रभु पूर्ण श्रींगार धारण करे हुए थे। आसपास स्वामीनिजी और सभी सखिया बिराजमान थी और प्रभु कृष्णदासजी की ही राह देख रहे थे।

क्या अद्भुत द्रश्य है जो प्रभु भक्तों को लंबे समय की प्रतीक्षा के पश्चात दर्शन देते है वह साक्षात भक्त की प्रतीक्षा कर रहे थे। कितने अद्भुत दर्शन है। छोटे बालक की तरह उतावले हो रहे है अपनी लीला को रचने के लिए।

कृष्णदासजी अचंभित हो उठते है। प्रभु के दर्शन करते थक नही रहे थे और फिर चैत्र मास की पूर्णिमा खिली हुई थी मंद मंद पवन लहरा रही थी । कृष्णदासजिने सुर छेड़े प्रभु की सेवा मे कीर्तन गायन कर रहे है।

प्रभु भी कीर्तन का आनंद लेते हुए रासलीला कर रहे है। कृष्णदासजी यह दिव्य रास लीला के दर्शन कर रहे है। उनके कीर्तन से प्रभावित हो कर प्रभुने ने अपने श्रीकण्ठ मे धारण की हुई कुंद (मोगरे) के पुष्प की माला श्री कृष्णदासजी को पहनाई। बड़ा ही दिव्य. अलौकिक दृश्य की जाखि हो रही है।

 श्री कृष्णदासजी ने कई कीर्तन की रचनाए की. भगवद लीला सत्संग भी अत्यंत सुंदर रीत से करते। कई जीवों को प्रभु के सन्मुख किया। श्री गोवर्धननाथजी के अंतरंग सखा है  और  अत्यंत ही कृपापत्र है |

श्री गुसाइजी एवं श्रीनाथजी के विरह का करूण प्रसंग जो कृष्णदासजी से जुड़ा हुआ है | वह प्रसंग को पढ़ने के लिए नीचे दीए लिंक पर टच करे |

“कसुंबा छठ “

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