अष्टछाप कवि – अष्ट सखा
श्रीनाथजी -श्री कृष्ण के अष्टछाप कवि – अष्ट सखा कौन थे ?
श्री महाप्रभुजी ने पुष्टिमार्ग मे श्रीमद भागवत के अनुसार अष्टयाम सेवा की प्रणालिका का स्थापन किया | श्री महाप्रभुजीने पुष्टिमार्ग के चित्र की रचना की |


तो श्री गुसाईजीने इस चित्र को रंग रूप दिया है। श्री गुसाईजीने पुष्टिमार्ग सेवा प्रणालिका का अद्वितीय विस्तार किया | श्रीजीबावा को लाड़ लड़ाने के लिए पुष्टिमार्ग सेवा को तीन मूलभूत आधारस्तम्भ
- राग,
- भोग,
- शृंगार
से वैभव का अद्भुत. अद्वितीय विस्तार किया। इन्ही तीन स्तम्भ मे से एक “राग” स्तम्भ जिसका न केवल पुष्टिमार्ग मे परंतु भारतीय संस्कृति मे भी बहुत बड़ा योगदान है।
श्री गुसाईजीने श्री महाप्रभुजी के चार सेवक “कुंभनदासजी. सुरदासजी. कृष्णदासजी. और परमानंददासजी और आपश्री के (श्री गुसाईजीके) चार सेवक “नंददासजी. छितस्वामीजी, गोविन्दस्वामीजी और चतुर्भुजदासजी” इस तरह कुल आठ कवि को लेकर पुष्टिमार्ग कीर्तन प्रणालिका एवं हवेली संगीत की स्थापना की। यह आठ कवि “अष्ट छाप कवि के रूप से जाने जाते है। यह अष्ट छाप कवीओ ने विशाल संख्या मे पदों की रचना करके न केवल पुष्टिमार्ग मे परंतु हिन्दी भाषा के साहित्य मे भी अभूतपूर्व योगदान देकर भारी मात्रा मे धनिष्ठ बनाया है।

यह अष्ट छाप कवि ने निरंतर श्रीजीबावा की सन्मुख आपकी सेवा मे कीर्तन गाए है। उनका चरित्र सिर्फ इसलिए रोचक नहीं है की उन्होंने अद्भुत पदों की रचनाकी परंतु सबसे विशेष है उनकी मित्रता | मित्रता किस्से ? साक्षात श्री गोवर्धननाथजी से.. यह अष्ट छाप कवि केवल कवि नहीं परंतु अष्ट सखा से भी प्रचलित है । उनका संबंध केवल कलियुग मे नहीं परंतु सारस्वत कल्प (द्वापरयुग) से भी है। श्री कृष्ण भगवान जब द्वापर युग मे (नित्य लीला) गौचारण के लिए पधारते तब आपके सखाओ के साथ पधारते । यही सखा पूरे दिन भरकी सेवा मे… और रात की सेवा मे सखी के रूप मे है। और यही ग्वाल मंडली जब श्री कृष्ण कलियुगमे श्रीनाथजी रूप से प्रकट हुए तब श्रीनाथजी सखा के रूप मे जनम लिया।
इस तरह यह अष्ट सखा कृष्ण लीला मे दिन मे एक सखा रूप मे है और रात्री मे सखी के रूप मे है। इसलिए जब कलियुग मे जब यह कवि पुष्टिमार्गीय वैष्णव बने तब उनपर श्रीवल्लभकी एवं श्रीनाथजी की अनुपम कृपा हुई और उन्हे भगवद लीला की स्फुरणा हुई और इस वजह से कृष्णलीला मे प्रभु की लीला मे सम्मिलित होने की वजह से अपने नेत्र से लीला का दर्शन करते हुए या लीला का भाग होने से वह सारी लीला का वर्णन करते हुए वह पदों की रचना करते और प्रभु की सेवा मे गा कर प्रभु को भी अत्यंत सुख पहुंचाते ।


श्री कृष्ण के सखा जैसे की सुबल,सुबाहु,श्रीदामा,तोक,ऋषभ,अर्जुन,कृष्ण और भोज नित्य लीला (द्वापर लीला) है | यही सखाओ ने कलियुग मे श्रीनाथजी के प्राकट्य पर पृथ्वी पर जनम लिया था | प्रभु को आपके सखा अत्यंत प्रिय है। इसलिए आज भी प्रभुकी सेवा मे अष्ट छाप कवि के पद ही गाए जाते है। उनके प्रसंग अति रोचक है। वह वैष्णव बने उससे पहले क्या थे. कैसे वैष्णव बने, श्रीजीबावा के साथ उनकी मित्रता के प्रसंग अद्भुत और अलौकिक है। इन महान चरित्रों के दर्शन के साथ साथ उनकी सेवा क्या थी. कृष्णलीला मे दिन मे कोनसे सखा है रात्री लीला मे कॉनसी सखी है प्रभु के किस स्वरूप मे उनकी आसक्ति (आकर्षण) है यह सब जानने के लिए उनके चित्रजी पर स्पर्श करे |
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