वसंतोत्सव की भावना
पुष्टिमार्ग और व्रज में वसंत पंचमी से 40 दिनों तक वसंतोत्सव मनाया जाता है, जिसका भाव पुष्टिमार्ग के अनुसार समजते है । शरद ऋतु के बाद नई ऋतु के आगमन से पूरी प्रकृति खिल उठती है। वैसे तो फागण और चैत्र वसंत ऋतु के मास हैं। लेकिन हमारे पुराणों में एक बात कही गई है कि प्रत्येक ऋतु का गर्भाधान 40 दिन पहले हो जाता है।
इसलिए पुष्टिमार्ग में वसंतोत्सव-होलीखेल होली से 40 दिन पहले वसंत पंचमी से शुरू हो जाता है।
कुल गोपिजन मुख्य रूप से दो प्रकार के होते है
-सगुण
-निर्गुण
सगुण गोपिजन मे मुख्यतवे ३ प्रकार होते है
-राजस
-तामस
–सात्विक
इस तरह सगुण के तीन प्रकार के होते हैं राजस, तमस और सात्विक; और निर्गुण गोपीजन कुल गोपीजनों के गुण के आधार पर 4 यूथ हैं। और होरी खेल-वसंतोत्सव दास्य भाव के स्थान पर सख्य भाव के साथ श्रीनाथजी की सेवा करने का एक अनेरा अवसर है। यह भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने का पर्व है। तो 4 यूथ (रजस, तमस, सात्विक और निर्गुण) के 10-10 दिन, कुल 40 दिन, प्रभु गोपीजनों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए होरीखेल खेलते हैं, यही कारण है कि 40 दिनों तक वसंतोत्सव-होरी खेल मनाया जाता है। और १ दिन डोलोत्सव इस तरह कुल ४१ दिवस होरी खेल के होते है |
इन ४१ दिनों मे,
प्रथम बसंत पंचमी से १० दिन बसंत के खेल नन्द भवन मे होते है , और यह १० दिन श्री यमुनाजी की सेवा के होते है |
फिर होली डांडा रोपण से १० दिन धमार के खेल पोल (पोरी) मे होते है , और यह १० दिन श्री चंद्रावलीजी की सेवा के होते है |
तद पश्चात माघ कृष्ण एकादशी से १० दिन फाग के खेल गलियों मे होते है , और यह १० दिन श्री ललिताजी की सेवा के होते है |
और फाल्गुन शुक्ल षष्ठी से अंतिम ૧૦ दिन होली के खेल गाव के बहार के चोक मे होते हैं , और यह १० दिन श्री राधाजी -स्वामीनिजी की सेवा के होते है |
फिर ४१वा दिन डोलोत्सव मे प्रभु डॉल जुलते है |
वसंत पंचमी के पहले 10 दिन वसंत ऋतु के दिन होते हैं जिसमें वसंत पंचमी के दिन एक कलश में आम के पत्ते, आम्रंजरी, फूल आदि रखे जाते हैं जो प्रेम का प्रतीक है। प्रेम की आराधना होती है | वसंत का कीर्तन गाया जाता है, राग वसंत गाया जाता है और खेल हल्की मात्रा में होता है जो धीरे-धीरे अधिक भारी होता है। इन दस दिनों में प्रिया-प्रीतम को युगल स्वरुप के रूप में पधराकर शांत भाव से सूक्ष्म खेल किया जाता है. प्रकृति के सौन्दर्य के दर्शन का आनंद विशेष प्रकार से लिया जाता है |
महा सुद पूनम को होरिडांडा रोपण उत्सव मनाया जाता है। व्रज रीति के अनुसार श्रीमद् गोकुल के चोहटा पर नंदबाबा पूरे परिकर के साथ कीर्तन करते हुए आते हैं, उत्सव मनाते हैं, लोग खूब नाचते-गाते हैं होरी डांडा रोपण करते हैं। इसमे रहा भाव यह है की इन ४० दिनों मे होने वाले खेल निर्विघ्न हो उस कारण से ब्रामहण से मंत्रोच्चार द्वारा विधि विधान से डंडा लाल ध्वजाजी के साथ रोपा जाता है | आनंद उत्सव होता है और धमार पद का गायन आज से शुरू होता है | आज से प्रतिदिन राजभोग दर्शन में प्रभु के मुखारविंद (कपोल) पर गुलाल लगायी जाती है | प्रभु को गुलाल और अबीर की फेंट (पोटली) भरी जाती है, पुष्प की छड़ी एवं गुलाल पिचकारी धरी जाती है, गुलाल-अबीर का खेल भारी होता जाता है, होली की गालियाँ भी गायीं जाती है | आज से एक मास तक श्रीजी को कुल्हे का श्रृंगार नहीं धराया जाता क्योंकि कुल्हे का श्रृंगार बाल-भाव का श्रृंगार माना जाता है और होली-खेल की लीला किशोर-भावना की है अतः सेहरा, मुकुट, टिपारा आदि के श्रृंगार धराये जाते हैं |
यह ४० दिनों मे प्रभु को केसर(केसुड़ा),अबीर, गुलाल , चोंवा,चंदन और फूल इत्यादि से प्रभु को खिलाया जाता है |
जिसमे,
केसर-केसुडो स्वामीनिजी श्री राधारानी के भाव से है |
अबीर श्री चंद्रावलीजी के भाव से है |


गुलाल श्री ललिताजी के भाव से है |
चोंवा श्री यमुनाजी के भाव से है |
प्रथम १० दिन श्री यमूनाजी के भाव से है |

फूल व्रजभक्तों के भाव से होते है |
इन 40 दिनों के दौरान, प्रभु होरी खेल का आरंभ नंद महल में करते हैं। गोकुल बरसांने की गलियों में खेलते है । होली यमुनाजी के तट पर, गिरिराजजी की तलहटी में भी खेली जाती है। फिर प्रभु होरी बगीचे में खेलने पधारते है। जिसे बगीचा नोम (कुछ घर की सेवा प्रणाली के अनुसार) या बगीचा तेरस (कुछ घर की सेवा प्रणाली के अनुसार) उत्सव के रूप मे मनाया जाता है। और प्रभु होरी खेल के लिए कुंज-निकुंज में आते हैं। जिसे “कुंज एकादशी” के रूप में मनाया जाता है।
इन दिनों भक्तगण वसंत-धमार, रसभरी गाली, रसिया आदि के भजन-कीर्तन करके प्रभु की लीला की सुधि लेते है ।
व्रज में विभिन्न प्रकार की होली खेली जाती है जैसे…
जैसे फूलों की होरी, रंगों की होली, कीचड़-गोबर की होली, केसुडा के पानी के रंग वाली होरी, लठमार होरी, लड्डुमार होरी (जो मुख्य रूप से बरसाना में खेली जाती है) इस तरह होरी विभिन्न प्रकार की होती है।
आइए हम सब हमारे घर में होरी के रसिया रसराज ठाकोरजी से इन खेल के दिनों में बड़े आनंद और उत्साह के साथ प्रभु को होरी खिलाते है ।
वसंत पंचमी के पद, होरी डंडा रोपण के पद, कुंज एकादशी के पद, गुसाइजी की अष्टपदी, डोल के पद, होली खेल के 40 दिवस दरमियान नित्य सेवा के पद नीचे दी गई ई-बुक मे है |
जो हमारे पध्य साहित्य शेकशन मे उपलब्ध है |