कान जगाई 

कान जगाई उत्सव का भाव :

प्रभु दीपावली के दिनों मे गायों को खिलाते है , गाय के शृंगार करते है | प्रभु  श्याम मेहंदी से गाय को  शृंगार करते है |  मेहंदी का केसरिया  रंग खिलता है | यह केसरिया रंग स्वामिनीजी के भाव से है |प्रभु अपने सिर पर लगाए मोरपंख से गायों का शृंगार करते है | गाय  निर्गुण भक्त का भाव है |

कान जगाई का उत्सव अन्नकूट की  पूर्व रात्री को मनाया जाता है | गर्गाचार्यजी ने नंद बाबा से गाय का पूजन कराया | फिर प्रभु बलदाऊ एवं सभी ग्वाल बाल के संग खिरक मे पधारते है |  सभी गायों के नाम पुकार कर उन्हे जगाते है | उनके कान मे गोवर्धन पूजा मे आने का निमंत्रण देते है | फिर गायों के संग खेलते है उन्हे चिढ़ाते है मस्ती करते है |अपने स्वरूप का ज्ञान करवाते है की स्वयं गोवर्धन बनके सभी के मनोरथ स्वरूप सामग्री को अंगीकृत करेंगे | पुष्टिमार्ग मे यह उत्सव बड़े भाव से मनाया जाता है | कान जगाई को गोकर्ण जागरण भी कहते है |

कीर्तन पद :

घरमेंसुं बाहिर उठि आये सब गायनके कान जगावन ॥जेसें भोर हूंकके खेलें लागे लेले नाम बुलावन ॥ ९ ॥

गांग बुलाई धूमर घोरी कारी काजर पीयरी लाल ॥ अपने संग सखासब लीनें लटकत डोलत खरिक गोपाल ॥२ ॥ अ

पनी जगाय दाउकी जगाई ओर जगाई सबकी जाय । श्रीविट्ठलगिरिधर सुखपावत वजनारिन त्योहार मनाय ॥३ ॥

kan jagai | कान जगाई

भावार्थ :

नंदालय मे से खिरक  मे प्रभु पधारकर सभी गायन को जगाते है |

जिस तरह प्रातः सभी गाय हुकार करते हुए खेलती है , उसी तरह अभी सभी गाय के नाम पुकारकर बुलाते है |

गांग , घूमर , कारी , काजर , पीली , लाल सभी के नाम ले ले कर बुलाते है और उनके कान मे आमंत्रण देते है | अपने संग सभी सखाओ को लेकर लटकती डोलती चाल मे गोपाल खिरक मे पधारते है | अपने संग दाऊ की गाय सबकी की गायों को भी  जगाते है | प्रभु की यह लीला का दर्शन करके सभी ब्रिजनारी उत्सव मनाती है |

कान जगाई के पद आपको नीचे दी गई ई-बुक मे से प्राप्त हो शकते है |

धन त्रयोदशी से देव प्रबोधिनी एकादशी के पद