हटड़ी
हटड़ी मनोरथ का भाव :
हटरी क्या है?
हमारे यहा दीवाली के दिनों में हटरी का उत्सव मनाया जाता है। यह सारस्वत कल्प मे नंदालय की लीला है | दिवाली के दिनों में हटरी की सुन्दर भावात्मक सज्जा की जाती है | “हटरी” यानी हाट (बाजार) | हटरी मे सोने के तराजू रखते थे | दीवाली के दिनों में श्री कृष्ण अपने सखा मंडली के साथ अलग अलग दुकान खोलते | यशोदाजी नंद नंदन को दुकान में बिठाती | शाम को माला सजाती | फिर ठाकोरजी अपने छोटे छोटे हाथो से मेवा मिठाई बैचते | ब्रिज भक्तों को बुलाते | ब्रिज भक्त ठाकोरजि के श्री हस्त से प्रसाद लेने हेतु दौड़े चले आते | ठाकोरजि उन्हें उनके हृदय के भाव के हिसाब से | मिठाई जोख जोख कर देते | आज भी हम ठाकोरजि को वे लीला की अनुभूति हेतु हटरी के मनोरथ करते हैं | यह एक अकेला ही एसा उत्सव हे जिसमें ठाकोरजि सामने से भक्तों बुलाके उनके भाव के अनुसार आपके स्वरुपानंद का दान करते हैं ।
हटरी के पद आपको नीचे दी गई ई-बुक मे से प्राप्त हो शकते है |